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देशव्यापी स्तर पर प्रचलित पत्थर के ग्राइंडर (Grinder) या सामान्य तौर पर ‘ सिलबट्टा’ नाम से मशहूर एक तरह का देसी ग्राइंडर कुछ साल पहले तक भारतीय रसोई का अपरिहार्य हिस्सा होता था लेकिन स्वचालित मिक्सर ग्राइंडर के आते ही सिलबट्टा की लोकप्रियता घटने लगी। संपूर्ण भारत में सिलबट्टा के इतिहास और इसकी बनावट में खासी विविधता दिखाई देती है। इस पर उकेरे गए छिद्रों का वैज्ञानिक महत्व तो है ही, विभिन्न मसालों और पत्तों को एक समान पीसकर सिलबट्टा उनका वास्तविक स्वाद भी बरकरार रखता है।
लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिरकार भारतीय रसोई में सदियों से चला आ रहा यह सिलबट्टा किसने डिजाइन किया यह हमारे पूर्वजों में से किसी एक ने महज एक पत्थर को उठाकर दूसरे पत्थर पर किसी चीज को पीसने के लिए प्रयोग किया और शायद यही से यह विचार इंसानी दिमाग में घर कर गया और इसकी तकनीक पर काम हुआ। इसका आकर और डिज़ाइन इतना बेहतरीन होता है कि हाथ में बड़ी सुगमता से सेट हो जाता है, वही सिल की सतह पर जो छोटे-छोटे छेद खुदे होते हैं, वह महज इत्तेफाक नहीं बल्कि घर्षण की मदद से बारीक पीसने के लिए बनाए जाते हैं।लगातार इस्तेमाल होने पर यह छेद घिस जाते हैं, तब इन्हें कारीगर द्वारा खुदवाना होता है। सिल पर ये छोटे छोटे गड्ढे बनाने की प्रक्रिया को सिल खुटाई कहते हैं। सिलबट्टा भी कमाल की चीज़ है, ना मिक्सी की तरह कोई तामझाम, बिजली की बचत, ना कोई रंगा पुता डिजाइन, आसानी से काम आने वाला, हर वक्त प्रयोग के लिए तैयार होता है हमारा देसी सिलबट्टा।
भारत के अलग-अलग प्रांतों में सिलबट्टा अलग-अलग डिजाइन का होता है, इसकी वजह लोगों की व्यक्तिगत पसंद या क्षेत्रीय आवश्यकता भी है। जैसे कि बंगाल में यह बट्टा अंडाकार आकृति का होता है और उत्तर भारत में आते-आते यह हल्का तिकोना हो जाता है। लेकिन हर डिज़ाइन अपने में अनोखी है और उसकी अपनी खास पहचान है। अगर आप एक क्षण रुककर सोचे कि साधारण से दिखने वाले इस सिलबट्टे और मिक्सी में कौन बेहतर है तो आप हैरान हो जाएंगे जब आपको पता चलेगा कि मिक्सी के मुकाबले सदियों से चला आ रहा यह सिलबट्टा ज्यादा प्रगतिशील, आधुनिक और एनवायरनमेंट फ्रेंडली (Environment Friendly) होता है। आज इसको पत्थर से तराशे जाते वक्त भले ही बिजली का प्रयोग होता हो लेकिन इसको बनाने का ज्यादातर काम हाथ से होता है और प्रशिक्षित पत्थर के कारीगर इसे बनाते हैं और इसमें किसी तरह का कोई प्रदूषण नहीं होता। मिक्सी भले सूखे मसालों को जल्दी पीस देती है, लेकिन ज्यादा ऊर्जा के कारण चीजों के स्वाद और पौष्टिक तत्व नष्ट हो जाते हैं। आधुनिक व्यस्तता के अलावा मिक्सी भारतीय समाज में वैसे ही प्रतिष्ठा का प्रतीक (Status Symbol) है जैसे कि पक्का मकान जो भारतीय परिवेश के एकदम अनुपयुक्त है, जाड़े में ठंडा और गर्मियों में गरम।
मासिक बजट में सिलबट्टा के लगातार इस्तेमाल से कई प्रकार की बचत होती है क्योंकि इस पर ताजी चीजें तुरंत पीस सकते हैं, आपको कोई जरूरत नहीं है कि बड़ी मात्रा में फ्रिज में चीजों को भरकर रखें और बासी चीजों का प्रयोग करें। इसमें कोई दो राय नहीं है कि तकनीक ने हमें सरल जीवन जीने के लिए अविश्वसनीय उत्पाद दिए हैं जिनके लिए हमें पहले खुद काम करना पड़ता था। लेकिन जहां तक हो सके हमें आंख मूंदकर टेक्नोलॉजी और गैजेट्स की दुनिया के मार्केटिंग चोचलों (Marketing Gimmick) का शिकार बनने से बचना चाहिए और अपने पारंपरिक उत्पादों का जहां जरूरी हो वहां प्रयोग करना चाहिए।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में सिल बट्टे के साथ चटनी चटनी पीसती हुई एक महिला। (Wikimedia)
2. दूसरे चित्र में सिल बट्टे से पीसी गयी चटनी की बारीकी से ली गयी तस्वीर। (Youtube)
3. तीसरे चित्र में बेलन के आकर के बट्टे के साथ सिल का चित्र है। (Wallmart)
4. चौथे चित्र में साबुत और गरम मसलों को सिल बट्टे का प्रयोग करके पीसा जा रहा है। (Unsplash)
5. अंतिम चित्र में सिल बट्टे के साथ रसोई की सामग्री। (Pixabay)
सन्दर्भ:
1. https://anishashekhar.blogspot.com/2010/06/who-designed-sil-batta.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Batan_(stone)
3. https://bit.ly/2BBYIrC
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