इस पृथ्वी पर उपलब्ध तमाम जीवित वस्तुओं में भावनाएं तथा बुद्धिमत्ता प्रदर्शित करने की समझ पायी जाती हैं चाहे वो कौवे हो जो कि जटिल समस्याओं का भी समाधान खोज लेते हैं या फिर व्हेल (Whale) मछली की जटिल संस्कृति। जीवों पर अनेकों शोधों को किया गया है जिसमे यह सिद्ध हुआ है कि वे अपनी बुद्धिमत्ता तथा समझ का प्रयोग विभिन्न चरणों में करते रहते हैं, इस बिंदु पर कुत्तों का भी उदाहरण लिया जा सकता है।
जीवों के अलावा इस पृथ्वी पर अन्य जीवित कोशिकाओं में वृक्ष हैं। वृक्षों में भावनाओं का पाया जाना एक अकाट्य सत्य है, हालिया हुए अध्ययनों से यह पता चला है कि वृक्ष परोपकारिता प्रदर्शित करते हैं, रिश्तेदारी को समझते हैं तथा उनमे महत्वाकांक्षा भी भरी होती है। पेड़ों में नए वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि वे आपस में बात करते हैं और एक दूसरे पर निर्भर होते हैं उनके जड़ एक दूसरे से संवाद करते हैं तथा उनमे प्रतिस्पर्धा भी देखने को मिलती है। जमीन के नीचे स्थित जड़ पानी से लेकर पोषक तत्वों तक को साझा करती हैं तथा पेड़ इनका उपयोग संचार के लिए भी करते हैं। उनके जुड़ने को भूमिगत फंगल नेटवर्क (Fungal network) के रूप में जाना जाता है। इसे वोह्लबेन (Wohlleben) वुड वाइड वेब (Wood Wide Web) के नाम से भी उच्चारित किया जाता है।
जब भी किसी प्रकार का संकट आता है तथा सूखे का प्रकोप आता है तब पेड़ सूखे और बिमारी आदि के विषय में जड़ों के माध्यम से एक दूसरे को संकेत भेजने का कार्य करते हैं। वैज्ञानिकों ने इसे माईकोर्रहिज़ल नेटवर्क (Mycorrhizal network) का नाम दिया है। पेड़ों में पायी जाने वाली बारीक जड़ें एक सम्बन्ध बनाने के लिए अति सूक्ष्म कवकों के साथ जुडी रहती हैं जो कि पेड़ों और कवक के मध्य में एक सहजीवी सम्बन्ध बनाने का या आर्थिक आदान प्रदान के रूप में कार्य करती हुयी दिखाई देती हैं। इस पूरे सम्बन्ध के लिए कवक पेड़ से करीब 30 फीसद तक सर्करा या चीनी लेता है जो पेड़ सूर्य के साथ प्रकाश संश्लेषण के दौरान बनाने का कार्य करते हैं। यही सर्करा कवकों को जिन्दा रखने का और उनको उचित मात्रा में भोजन देने का कार्य करती हैं। यह पूरा संचार तंत्र किसी भी जंगल में उगने वाले नए पौधों के लिए एक जीवन रेखा का कार्य करता है, ये छोटे पौधे सूर्य से कम प्रकाश संश्लेषण करते हैं बजाय इसके वे सर्करा का उपभोग बड़े पेड़ों से करते हैं जो कि जड़ों के माध्यम से एक दूसरे से जुड़े हुए होते हैं। वोह्लेबन इसमें एक युवा पेड़ और उसकी माँ के मध्य के सम्बन्ध को प्रदर्शित करती हैं।
अपने संचार के माध्यम से पेड़ एक प्रकार का रासायनिक, हार्मोनल (Harmonal) और धीमी गति के विद्युत् के सन्देश भेजते हैं जिनको समझने के लिए वैज्ञानिक अभी कार्यरत हैं। इन पेड़ों के द्वारा भेजा गया विद्युत् प्रणाली तंत्र पशुओं की तंत्रिका की तरह प्रतीत होती है। एक उदाहरण यह भी है कि जब सवाना के मैदान में बबूल के पेड़ों को जिराफ खाने के लिए जाता है तो ऐसे में वे पेड़ एक गैस (Gas) का उत्सर्जन कर के एक प्रकार का सन्देश भेजता है जिससे आस पास के पेड़ एक ख़ास तरल द्रव्य का उत्सर्जन करते हैं जो बड़े शाकाहारी जीवों को मार सकने में सक्षम होते हैं। जब भी किसी पेड़ का एक पत्ता टूटता है तो वह पेड़ अपने घाव को भरने के लिए एक तरल पदार्थ का श्राव करता है, इसमें भी एक भिन्नता है जब भी कोई जीव पेड़ों के पत्तों को खाने के लिए पत्तों को चबाता है तो पेड़ अपने बचाव के लिए रसायन का श्राव करता है और जब मनुष्य तोड़ता है तब वे घाव भरने के लिए ही श्राव करते हैं। इस तथ्य से यह सिद्ध हो जाता है कि अन्य जीवों के साथ ही साथ पेड़ों में भी समझ की भावना का विकास हुआ है। हम मनुष्यों को पेड़ों की आवश्यकता है तथा यदि पेड़ों की भावुकता में कमी आएगी तो उनके संचार तंत्र पर प्रभाव पड़ेगा जो इस वातावरण और समस्त जीवों के लिए सही नहीं होगा।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र - मुख्य चित्र में पेड़ों के मध्य होने वाली बातचीत का सांकेतिक कलात्मक दृश्य है। (Prarang)
2. दूसरा चित्र - दूसरे चित्र में वर्षा वन दिखाई दे रहा है जिनके शोध के आधार पर उपरोक्त प्राप्त हुए हैं। (Wallpaperflare)
3. तीसरा चित्र - तीसरे चित्र में सम शीतोष्ण वर्षा वन का चित्रण है। (Unsplash)
4. अंतिम चित्र - अंतिम चित्र में वृक्षों के मध्य होने वाले संपर्क का कलात्मक चित्रण है। (Youtube)
सन्दर्भ :
1. https://e360.yale.edu/features/are_trees_sentient_peter_wohlleben
2. https://www.smithsonianmag.com/science-nature/the-whispering-trees-180968084/
3. https://bit.ly/3dos6P3
4. https://bit.ly/2CE7FBj
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