भगवान श्री कृष्ण कैसे बने भगवान जगन्नाथ ?

लखनऊ

 22-06-2020 02:05 PM
विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

उत्तर प्रदेश और श्री कृष्ण भगवान् का एक अत्यंत ही दुर्लभ रिश्ता है, यहीं के मथुरा में भगवान् कृष्ण का जन्म हुआ, यहीं के नन्द गाँव में भगवान का लालन पालन किया गया, यहीं कृष्ण अपनी गायों के साथ यमुना जी के किनारे विचरण किया करते थे। उत्तर भारत के मथुरा, हस्तिनापुर आदि स्थलों पर कृष्ण भगवान् से जुडी कई कहानिया और घटनाएं मौजूद हैं जिन्हें हम महाभारत से लेकर अन्य धर्मग्रंथों के माध्यम से पढ़ते हैं। उत्तर प्रदेश में ही मीरा बाई ने कृष्ण भक्ति से जुड़े कितने ही काव्यों की रचनाएं की यह किसी से छिपा हुआ नहीं है। भगवान् कृष्ण की राजधानी पश्चिम भारत के द्धारका नामक शहर में थी जो एक द्वीप था। द्धारका से कितने ही पुरातात्विक उत्खननों से मंदिरों आदि के भवनावशेषों की प्राप्ति भी हुयी है। उत्तर भारत के कृष्ण को दक्षिण भारत में जगन्नाथ भगवान् के रूप में पूजा जाता है।

भगवान् जगन्नाथ की रथ यात्रा सम्पूर्ण विश्व भर में जानी जाती है, यह रथ यात्रा भारत के उड़ीसा राज्य के पुरी में स्थित प्राचीन जगन्नाथ मंदिर के प्रांगण से शुरू होती है। इस रथ यात्रा को देखने के लिए दुनिया भर से लोग इकट्ठे होते हैं। यह रथयात्रा एक अत्यंत ही दुर्लभ रथयात्रा के रूप में जानी जाती है। इस रथयात्रा में भगवान् जगन्नाथ, भगवान् बालभद्र और देवी शुभद्रा को तीन परस्पर रथों में बैठाया जाता है तथा यह रथ यात्रा पुरी के जगन्नाथ के मंदिर से शुरू होकर श्री गुण्डिचा मंदिर तक जाती है। यह रथयात्रा समय के साथ साथ भारत भर में विभिन्न स्थानों पर उद्घोषित होना शुरू हो गयी है तथा हमारे रामपुर में भी यह रथयात्रा विगत कई वर्षों से संपन्न की जाती है।

रामपुर में यह रथयात्रा ठाकुरद्वार मंदिर से शुरू होकर शहर के विभिन्न स्थानों तक जाती है। इस रथयात्रा के दौरान रथों को विभिन्न श्रद्धालु खींचने का कार्य करते हैं। कृष्ण को भगवान् जगन्नाथ के रूप में मानने के पीछे कई कहानियाँ हैं। माना जाता है कि हजारों साल पहले उड़ीसा के पुरी के शासक राजा इन्द्रद्युम्न थे जिन्होंने एक रात सपने में अपने आप को पुरी के समुद्र तट पर चलते हुए पाया उनको ऐसा प्रतीत हुआ कि यह अजीब घटना है अतः उनकी नींद खुल गयी और वो रात में ही समुद्र तट पर चले गए, समुद्र तट पर ही उन्हें समुद्र में तैरती हुयी एक लकड़ी मिली जिसे वे अपने महल में लेकर आ गये। उसी समय भगवान् विश्वकर्मा एक 80 वर्षीय पुरुष के वेश में आये और उन्होंने राजा को बताया की इस लकड़ी में भगवान् श्री कृष्ण का दिल है। इस पर राजा ने पूछा कि इस लकड़ी के कुंदे में भगवान् का दिल कैसे आया तब विश्वकर्मा ने बताया कि, एक शिकारी ने जब जंगल में सोते हुए श्री कृष्ण भगवान् को कोई जीव समझ के उन पर तीर चलाया तो तीर जाकर श्री कृष्ण के तलवे में लगा जिसके कारण श्री कृष्ण की मृत्यु हो गयी। उस शिकारी को जब अपनी गलती का एहसास हुआ तब उसने भगवान् के शरीर का अंतिम संस्कार किया जिसमें भगवान् का दिल नहीं जला और उसने एक लकड़ी में उनके दिल को रख कर पानी में प्रवाहित कर दिया था। इसी प्रकार से वह कुंदा राजा को मिला, इस बात को सुन कर राजा ने विश्वकर्मा के निर्देशों का पालन किया तथा विश्वकर्मा की मांग के अनुसार उनको एक कक्ष दिया जिसमें 21 दिन तक बिना खाना खाए और किसी के हस्तक्षेप के बिना विश्वकर्मा भगवान् ने कार्य करना शुरू किया। हांलाकि भगवान् विश्वकर्मा ने 21 दिन का समय माँगा था परन्तु 14 दिन में द्वारपाल ने यह बताया कि उस कक्ष से किसी भी प्रकार के हथौड़े की आवाज नहीं आ रही है।

ऐसे में राजा ने उन द्वारपालों को डांटते हुए कहा कि कक्ष का दरवाजा 21 दिन के बाद ही खोला जाएगा परन्तु रानी के अनुनय-विनय के कारण और विश्वकर्मा की मृत्यु से आशंकित होकर राजा ने यह दरवाजा खोल दिया जिसके कारण भगवान् विश्वकर्मा क्रुद्ध हो गए और वह जगन्नाथ भगवान् की मूर्ती को पूर्ण किये बिना ही अंतर्ध्यान हो गए। यही एक कारण है कि जगन्नाथ भगवान् की मूर्ती आज तक पूर्ण नहीं हो सकी। आज भी माना जाता है कि भगवान् जगन्नाथ की मूर्ती में कृष्ण भगवान् का दिल स्थित है, इसे तत्वा के नाम से जाना जाता है। हर 12 वर्षों में भगवान् जगन्नाथ की मूर्ती को बदलने का कार्य किया जाता है तथा इसे नाबाकलेरब के रूप में जाना जाता है। इस कहानी के अलावा कई अन्य कहानियां भी पुरी की रथयात्रा से जुडी हुयी हैं। इस मंदिर में प्रवेश करने के लिए कई कानून भी व्याप्त हैं, इस मंदिर में सिर्फ हिन्दू धर्म के लोग ही जा सकते हैं, कई महान लोगों को भी इस मंदिर में प्रवेश नहीं दिया गया था जिसमें संत कबीर और गुरु नानक देव भी शामिल हैं। हांलाकि रथयात्रा में सभी को शामिल होने की अनुमति है। रथ यात्रा का महत्व प्रत्येक मनुष्य के लिए अपार है जो कि आध्यात्मिक योग्यता और अंतिम मुक्ति को चाहता है। ऐसा माना जाता है कि जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में रस्से को खींचता है या छूता मात्र है तो उसे कई तपस्याओं का गुण प्राप्त होता है। इसके अलावा गुण्डिचा मंदिर में भगवान् जगन्नाथ और अन्य देवों का दर्शन करता है उसे 100 घोड़ों के बलिदान के जितना वरदान प्राप्त होता है।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में एक अनजान कलाकार द्वारा कांगड़ा की लघु चित्र शैली में बनाया गया जगन्नाथ रथयात्रा का चित्र है। (publicdomainpictures)
2. द्वितीय चित्र में जगन्नाथ मंदिर पुरी के निर्माणकर्ता माने जाने वाले राजा इन्द्रद्युम्न का चित्र है। (wikipedia)
3. तीसरा चित्र जगन्नाथ स्वामी के अंदर भगवान् श्री कृष्ण के दिल को प्रदर्शित कर रहा है। (Prarang)

सन्दर्भ :
1. https://bit.ly/2Cr2m7X
2. https://rgyan.com/blogs/mythology-jagannath-puri-temple-lord-krishnas-heart/
3. https://bit.ly/2NkQkiS
4. https://bit.ly/2V6V67Q



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