मानव विकास सूचकांक का एक महत्वपूर्ण घटक है, शिक्षा सूचकांक

लखनऊ

 17-06-2020 12:40 PM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

किसी भी देश के विकास में उसकी साक्षरता दर महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। भारत सरकार ने साक्षरता को पढ़ने और लिखने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया है, जो संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन फ़ंड (United Nations International Children's Emergency Fund) की परिभाषा के समान है। पिछले दो शताब्दियों में वैश्विक साक्षरता में काफी सुधार हुआ है जिसके चलते कनाडा एक ऐसा देश बना है जहां स्नातकोत्तर आबादी की संख्या पूरे विश्व में सबसे अधिक है। वहीं 191 देशों में से भारत इस मामले में 145 वें स्थान पर है। साक्षरता दर जहां मूल रूप से पढ़ने और लिखने की क्षमता को संदर्भित करती है वहीं शिक्षा सूचकांक शैक्षिक प्राप्ति, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद और जीवन प्रत्याशा की माप को संदर्भित करता है।

शिक्षा सूचकांक, मानव विकास सूचकांक का एक महत्वपूर्ण घटक है जिसे हर साल संयुक्त राष्ट्र द्वारा सकल घरेलू सूचकांक और जीवन प्रत्याशा सूचकांक के साथ प्रकाशित किया जाता है, ताकि शैक्षिक प्राप्ति, प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद और जीवन प्रत्याशा को मापा जा सके। 2010 के बाद से, स्कूली शिक्षा के औसत वयस्क वर्षों और बच्चों के लिए स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष के संयोजन से शिक्षा सूचकांक को मापा जाता है। 2010 से पहले, शिक्षा सूचकांक को वयस्क साक्षरता दर (दो-तिहाई भार के साथ) और संयुक्त प्राथमिक, माध्यमिक और तृतीयक सकल नामांकन अनुपात (एक तिहाई भार के साथ) द्वारा मापा जाता था। वयस्क साक्षरता दर पढ़ने और लिखने की क्षमता का संकेत देती है, जबकि सकल नामांकन अनुपात बालवाड़ी (kindergarten) से स्नातकोत्तर शिक्षा तक शिक्षा के स्तर का संकेत देता है। शिक्षा मानव हितों का एक प्रमुख घटक है और इसका उपयोग आर्थिक विकास और जीवन की गुणवत्ता को मापने में किया जाता है, जोकि यह निर्धारित करता है कि कोई देश विकसित है, विकासशील है या अविकसित है।

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जहां भारत को अपने इंजीनियरों के लिए सम्मानित किया गया है वहीं दुनिया की निरक्षर आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा यहां निवास करता है। यह अनुमान लगाया गया था कि 2020 तक, भारत दुनिया की सबसे बड़ी कामकाजी आबादी (8,690 लाख) का घर होगा लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि भारत अपनी युवा आबादी को शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए अभी तैयार नहीं है। कुल मिलाकर, जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, 2001 और 2011 के बीच भारत की साक्षरता दर 8.66 प्रतिशत से बढ़कर 74.04% हुई, लेकिन राज्यों की यदि बात करें तो राज्यों में व्यापक विविधताएं देखने को मिलती हैं। जनगणना 2011 के अनुसार, भारत में सबसे कम साक्षरता दर वाले चार राज्य बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश हैं, जहां शिक्षा का संकट विशेष रूप से स्पष्ट है। देश की कुल 120 करोड आबादी में से 44.51 करोड आबादी इन चार राज्यों में निवास करती है। 2011 में बिहार, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में साक्षरता दर क्रमशः 61.8%, 67.1%, 67.7%, 70.6% थी, जोकि देश की कुल साक्षरता दर के औसत (74%) से कम है। 94% के साथ केरल की साक्षरता दर देश में सर्वाधिक आंकी गयी। वहीं अगर सीखने के स्तर की बात की जाये तो इन राज्यों में वह भी अपेक्षाकृत कम है। 2014-15 में उत्तर प्रदेश में 79.1% की स्थानांतरण दर के साथ, केवल कुछ ही बच्चे कक्षा 5 से कक्षा 6 में स्थानांतरित हुए। मध्य प्रदेश के कक्षा 5 में पढने वाले केवल 34.1% बच्चे ही कक्षा 2 का पाठ पढ़ सकते थे।

द इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली (The Economic and Political Weekly) द्वारा प्रकाशित 2003 के एक अध्ययन के अनुसार अगली शताब्दी में, भारत में 60% आबादी चार राज्यों मध्य प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान से आएंगी, जबकि केवल 22% आबादी केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र जैसे अधिक विकसित राज्यों से आएंगी। एक रिपोर्ट के अनुसार अगले 10 वर्षों में उत्तर प्रदेश और बिहार में भारत की सबसे युवा आबादी होगी। भारत की युवा आबादी की उत्पादकता इस बात पर निर्भर करेगी कि ये राज्य स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार के अवसरों को कैसे बेहतर बनाते हैं। भारत के राज्यों में भिन्नता न केवल साक्षरता और नामांकन में, बल्कि उन कारकों में भी मौजूद है जो भविष्य में नामांकन और सीखने को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, भारत में साक्षरता को प्रभावित करने वाले कारकों में से एक है जो राज्यों में भिन्न - भिन्न है। उदाहरण के लिए 2011 में महाराष्ट्र (साक्षरता दर 82.3%) में 2011-16 के लिए जन्म के समय अनुमानित जीवन प्रत्याशा 70.4 वर्ष थी। इसकी तुलना में, मध्यप्रदेश (निम्न साक्षरता दर -70.6%) में 2011-16 के लिए जन्म के समय अनुमानित जीवन प्रत्याशा 61.5 वर्ष (अपेक्षाकृत कम) थी। स्कूल नामांकन भी माता-पिता की शिक्षा, घर की संपत्ति, दोपहर के भोजन, बुनियादी ढांचे सहित अन्य कई कारकों से प्रभावित होता है। फिर भी बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश राज्य अपने अधिक साक्षर समकक्षों की तुलना में शिक्षा पर कम खर्च करते हैं। उदाहरण के लिए मध्य प्रदेश प्रति छात्र 11,927 रुपये खर्च करता है, जबकि तमिलनाडु प्रति छात्र 16,914 रुपये खर्च करता है।

बिहार में प्रति छात्र खर्च (5,298 रुपये) और भी कम है। एक अन्य महत्वपूर्ण कारक जो स्कूली शिक्षा को प्रभावित करता है वह माता-पिता की शिक्षा है। उदाहरण के लिए 2014 में राजस्थान में 30.3% शिक्षित माताओं की तुलना में केरल (सबसे अधिक साक्षरता वाला राज्य) में 99.1% माताएँ शिक्षित थीं। इसके अलावा, धन जैसे कारकों का भी गरीब राज्यों में नामांकन पर अधिक प्रभाव पड़ता है। कुल मिलाकर, भारत में गरीब परिवारों के बच्चों की तुलना में अमीर परिवारों के बच्चे स्कूल में अधिक दाखिला लेते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार में यह अंतर केरल की तुलना में अधिक है। इन सभी बातों से यह ज्ञात होता है कि जन्म के समय जीवन प्रत्याशा, माताओं का शिक्षा स्तर और प्रति छात्र पर सरकारी खर्च, बच्चे की साक्षरता दर के समानुपाती होते हैं।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत और उत्तर प्रदेश की साक्षरता दर का तुलनात्मक अध्ययन निम्नलिखित सारणी के माध्यम से किया जा सकता है:


उपरोक्त सारणी से यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश की कुल साक्षरता दर (67.68%) भारत की औसत साक्षरता दर (72.98%) से कम है। राज्य में पुरुष साक्षरता दर 77.28% जबकि महिला साक्षरता दर 57.18% है।

चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में एक राजकीय प्राथमिक विद्यालय में छात्रों को दिखाया गया है। (Prarang)
2. दूसरे चित्र में एक खाके द्वारा वैश्विक साक्षरता दर को प्रस्तुत किया गया है। (Wikipedia/Prarang)
3. तीसरे चित्र में बग़दाद में छात्रों को दिखाया गया है। (Flickr)

संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Education_Index
2. https://www.censusindia.co.in/states/uttar-pradesh
3. https://gojiberries.io/2006/07/03/literacy-in-india-can-india-spell-success/
4. https://bit.ly/2Y5DQBM



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