हिंद महासागर दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा महासागर है, जोकि पृथ्वी की सतह पर पानी के लगभग 70,560,000 वर्ग किलोमीटर या 19.8% भाग को आवरित करता है। यह महासागर जहां जैव विविधता समेत अनेकों विशेषताओं को धारण करता है वहीं व्यापार हेतु समुद्री मार्गों के लिए भी विशेष है। प्राचीन समय से ही हिंद महासागर के समुद्री मार्ग व्यापार के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं। हिंद महासागर के समुद्री मार्गों को रणनीतिक रूप से दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि दुनिया के 80 प्रतिशत से अधिक समुद्री तेल का व्यापार हिंद महासागर और इसके रणनीतिक संकीर्ण मार्गों (40 प्रतिशत होरमुज (Hormuz) जलसंधि, 35 प्रतिशत मलक्का (Malacca) जलसंधि और 8 प्रतिशत बाब अल-मंडब (Bab el-Mandab) जलसंधि के साथ) के माध्यम से होता है। मलक्का जलसंधि, मलक्कामैक्ज (Malaccamax) के विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। मलक्कामैक्ज एक नौसेना वास्तुकला शब्द है, जिसका प्रयोग सबसे बड़े टन (Ton) भार वाले जहाज के लिए किया जाता है, जोकि 25 मीटर गहरे (82 फीट) मलक्का जलसंधि के माध्यम से गुजरने में सक्षम है और इसलिए नौसेना आधारित व्यापार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
हिंद महासागर व्यापार पूरे इतिहास में पूर्व-पश्चिम आदान-प्रदान का प्रमुख कारक रहा है। लंबी दूरी के व्यापार ने इसे पूर्व में जावा से लेकर पश्चिम में ज़ांज़ीबार और मोम्बासा तक फैले लोगों, संस्कृतियों और सभ्यताओं के बीच परस्पर क्रियाओं का एक गतिशील क्षेत्र बना दिया है। इसके अलावा हिंद महासागर के किनारों पर स्थित शहरों और राज्यों ने समुद्र और जमीन दोनों की ओर ध्यान केंद्रित किया है। हिंद महासागर के व्यापार मार्गों ने दक्षिण पूर्व एशिया, भारत, अरब और पूर्वी अफ्रीका के साथ-साथ पूर्वी एशिया (विशेष रूप से चीन) को भी जोड़ा जिसके द्वारा समुद्री व्यापार कम से कम तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में शुरू हुआ। यूरोपीय लोगों द्वारा हिंद महासागर की खोज किये जाने से बहुत पहले अरब, गुजरात और अन्य तटीय क्षेत्रों के व्यापारियों ने मौसमी हवाओं को नियंत्रित करने के लिए त्रिभुजाकार पालयुक्त (Sailed) एक या दो मस्तूलों वाले जहाजों का उपयोग किया तथा ऊंट के पालन ने तटीय व्यापार वस्तुओं जैसे रेशम, चीनी मिट्टी के बरतन, मसाले आदि को लाने में मदद की।
हड़प्पा और मेसोपोटामिया की सभ्यताओं के बीच मध्य हड़प्पा चरण (2600-1900 ईसा पूर्व) के दौरान एक व्यापक समुद्री व्यापार तंत्र फैला हुआ था। हिंद महासागर में पहला वास्तविक समुद्री व्यापार तंत्र, दक्षिण-पूर्व एशिया के ऑस्ट्रोनीशियन (Austronesian) लोगों द्वारा फैलाया गया था, जिन्होंने महासागर में यात्रा करने वाले शुरूआती जहाजों का निर्माण किया। उन्होंने 1500 ईसा पूर्व में दक्षिणी भारत और श्रीलंका के साथ व्यापार मार्ग स्थापित किए तथा नारियल, चंदन, केले, गन्ने आदि के आदान-प्रदान की शुरुआत के साथ-साथ भारत और चीन की भौतिक संस्कृतियों को भी आपस में जोडा। इंडोनेशिया ने हिंद महासागर समुद्री मार्गों की मदद से पूर्वी अफ्रीका के साथ मसालों (मुख्य रूप से दालचीनी और कैसिया- Cassia) का कारोबार किया। यह व्यापार तंत्र मुख्य रूप से अफ्रीका और अरब प्रायद्वीप तक पहुंचने के लिए फैलाया गया था।
शास्त्रीय युग (4 वीं शताब्दी ईसा पूर्व – तीसरी शताब्दी) की यदि बात करें तो इस दौरान हिंद महासागर व्यापार में अनेक प्रमुख साम्राज्य जैसे - फारस में आचमेनिड (Achaemenid) साम्राज्य, भारत में मौर्य साम्राज्य, चीन में हान राजवंश, रोमन साम्राज्य आदि शामिल थे। इसके अलावा बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और जैन धर्म भी भारत से दक्षिण-पूर्व एशिया में व्यापारियों द्वारा ही फैलाये गये थे। मध्ययुगीन युग (400-1450 ईस्वी) के दौरान, व्यापार हिंद महासागर के बेसिन (Basin) में पनपा। अरब प्रायद्वीप पर उमय्यद और अब्बासिद ख़लीफ़ाओं के उदय ने व्यापार मार्गों के लिए एक शक्तिशाली पश्चिमी आसंधि (नोड - Node) प्रदान की। इस्लाम ने इन व्यापारियों को अत्यधिक महत्व दिया, यहां तक कि पैगंबर मुहम्मद खुद एक व्यापारी और कारवां नेता थे। अमीर मुस्लिम शहरों ने बहुमूल्य वस्तुओं की भारी मांग पैदा की। इस बीच, चीन में तांग और सांग राजवंशों ने भी भूमि आधारित रेशम मार्गों के साथ मजबूत व्यापार संबंध विकसित करके और समुद्री व्यापार को प्रोत्साहित करके व्यापार और उद्योग पर जोर दिया। सोंग शासकों ने मार्ग के पूर्वी छोर पर समुद्री डकैती को नियंत्रित करने के लिए एक शक्तिशाली शाही नौसेना भी बनाई थी। अरबों और चीनियों के बीच, कई प्रमुख साम्राज्य बड़े पैमाने पर समुद्री व्यापार पर आधारित थे।
1497–98 के दौरान वास्को डी गामा के तहत पुर्तगालियों ने अफ्रीका के दक्षिणी सिरे से हिंद महासागर के लिए एक नौसैनिक मार्ग की खोज की। प्रारंभ में, पुर्तगाली मुख्य रूप से कालीकट में सक्रिय थे, लेकिन गुजरात का उत्तरी क्षेत्र उनके व्यापार के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में उभरा जोकि पूर्व-पश्चिम व्यापार में एक आवश्यक मध्यस्थ भी था। पुर्तगाली हिंद महासागर के व्यापार में शामिल होने के लिए उत्सुक थे क्योंकि एशियाई विलासिता की वस्तुओं की मांग यूरोप में बहुत अधिक थी। पुर्तगालियों ने व्यापारियों के बजाय समुद्री डाकुओं के रूप में हिंद महासागर के व्यापार में प्रवेश किया। उन्होंने भारत के पश्चिमी तट पर कालीकट और दक्षिणी चीन में मकाऊ जैसे बंदरगाह शहरों को जब्त किया। 1602 में, हिंद महासागर में एक और क्रूर यूरोपीय शक्ति दिखाई दी जिसे डच ईस्ट इंडिया कंपनी (Dutch East India Company) के नाम से जाना गया। 1680 में, ब्रिटिश अपनी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के साथ जुड़ गए, जिसने व्यापार मार्गों पर नियंत्रण के लिए डच ईस्ट इंडिया कंपनी को भारी चुनौती दी। जैसे ही यूरोपीय शक्तियों ने एशिया के महत्वपूर्ण हिस्सों इंडोनेशिया, भारत, मलाया और दक्षिण-पूर्व एशिया पर राजनीतिक नियंत्रण स्थापित कर उन्हें उपनिवेशों में बदला वैसे-वैसे पारस्परिक व्यापार भंग होता गया। जहां माल तेजी से यूरोप में जाने लगा वहीं पूर्व एशियाई व्यापारिक साम्राज्य खराब होता गया। वर्तमान भारत के दक्षिणी सिरे पर बर्बरिकम (Barbaricum - आधुनिक कराची), सौनागौरा (Sounagoura - मध्य बांग्लादेश) बर्यगजा (Barygaza), केरल में मुज़िरिस (Muziris), कोरकाई (Korkai), कावेरीपट्ट्नम (Kaveripattinam) और अरीकामेदू (Arikamedu) के क्षेत्रीय बंदरगाह एक अंतर्देशीय शहर कोडुमानल (Kodumanal) के साथ हिंद महासागर व्यापार के मुख्य केंद्र थे।
बर्बरिकम में ग्रीक-रोमन व्यापारियों ने कोस्टस (Costus - पौधे), बडेलियम (Bdellium- राल), लिसीयम (Lyceum-पौधा), नार्ड (Nard-तेल), सूती कपडे, रेशम के धागे, ईंडिगो डाई (Indigo dye) आदि के बदले में पतले कपड़े, लिनन (Linens), पुखराज, मूंगा, कांच, चांदी और सोने के बर्तन, शराब आदि बेचे। बर्यगजा में वे गेहूँ, चावल, तिल का तेल, कपास और कपड़ा खरीदते थे। मुज़िरिस भारत के दक्षिण-पश्चिमी तट पर एक विलुप्त बंदरगाह शहर है, जो चेरा साम्राज्य और रोमन साम्राज्य के बीच प्राचीन तमिल भूमि में व्यापार का एक प्रमुख केंद्र था। इसका स्थान आम तौर पर आधुनिक मध्य केरल के साथ पहचाना जाता है। पट्ट्नम शहर में पाये गये सिक्कों के बडे ढेरों और असंख्य एम्फोरे (Amphorae - एक लंबा प्राचीन ग्रीक या रोमन जग जिसकी संकीर्ण गर्दन और दो हैंडल होते हैं) के टुकडों ने इस बंदरगाह शहर के संभावित स्थान को खोजने के लिए हाल ही में पुरातत्व रुचि प्राप्त की है। अरीकामेदू आधुनिक पांडिचेरी से लगभग 3 किलोमीटर (1.9 मील) पहले तमिलनाडु में, चोल व्यापार का एक केंद्र है। 1937 में अरीकामेदू में रोमन बर्तनों को पाया गया था, और 1944 और 1949 के बीच पुरातत्व उत्खनन से पता चला कि यह एक व्यापारिक केंद्र था, जिसमें पहली शताब्दी ईस्वी की पहली छमाही के दौरान रोमन निर्माण का सामान आयात किया गया था।
हिंद महासागर मध्य पूर्व, अफ्रीका और पूर्वी एशिया को यूरोप और अमेरिका से जोड़ने वाले प्रमुख समुद्री मार्ग प्रदान करता है। यह फारस की खाड़ी और इंडोनेशिया के तेल क्षेत्रों से पेट्रोलियम (Petroleum) और पेट्रोलियम उत्पादों का विशेष रूप से भारी यातायात करता है। सऊदी अरब, ईरान, भारत और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के अपतटीय क्षेत्रों में हाइड्रोकार्बन के बड़े भंडार का दोहन किया जा रहा है। दुनिया के अपतटीय तेल उत्पादन का अनुमानित 40% हिंद महासागर से आता है।
चित्र सन्दर्भ:
1. मुख्य चित्र में डच ईस्ट इंडिया कंपनी का बम्बई के रास्ते भारत में प्रवेश चित्रित है। (Wikimedia)
2. दूसरे चित्र में मालक्का स्ट्रेट (Malacca Strait) में मालवाहक जहाजों का चित्र है। (Youtube)
3. तीसरे चित्र में मालक्का स्ट्रेट के जरिये भारत आते हुए व्यापारियों का चित्रण है। (BritishMuseum)
4. चौथे चित्र में भारतीय मालवाहक जहाज को दिखाया गया है। (Wikimedia)
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_Ocean
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_Ocean_trade
3. https://www.thoughtco.com/indian-ocean-trade-routes-195514
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