लखनऊ, चिकनकारी के प्रमुख केंद्र के रूप में जाना जाता है। यदि चिकनकारी के रूप पर ध्यान दें तो यह पता चलता है कि- चिकनकारी की सुंदरता इसके महीन टाँकों पर निर्भर करती है। चिकनकारी की कढाई की विशेष बात यह है कि यह हाँथ में उठाकर अच्छी तरीके से बनती है ना की किसी साँचे में डालकर।
चिकनकारी का काम सफेद कच्चे धागों से किया जाता है ना कि किसी अन्य रंगीन धागे से। कच्चा धागा प्रयोग करने से कई फायदे हैं पहला तो यह की धागा सिकुड़ता या फैलता नही है और दूसरा यह की धुलाई के बाद कच्चे धागे में चमक आ जाती है।
यदि चिकनकारी की तकनीकी पर नजर डालें तो यह पता चलता है कि चिकनकारी में सूई-धागे के अतिरिक्त यदि कुछ और प्रयोग है तो वह है कारीगर की आँखों की रौशनी और उच्चस्तरीय कार्यकुशलता का बोध। चिकनकारी में कई प्रकार की जटिल जालियों का निर्माण होता है जो तरह-तरह के टाँको के संयोग से बनती है। विभिन्न जालियों व प्रकारों के अपने नाम होते हैं। मुर्रे, बखिया, जाली, तेपची, फंदा आदि 36 प्रकार चिकन की शैलियों में शामिल हैं।
चिकन की 36सों प्रकार निम्नलिखित हैं- मुर्री, बखिया, जाली, तेपची, फंदा, जंजीरा, स्टेम स्टिच, दरज, तुरपाई, कंगन, जोड़ा, चने की पत्ती, धूम, गोल मुर्री का टाँका, काज का स्टिच, घास पत्ती टाँका, धनिया पत्ती टाँका, कील टाँका, चाँद, रोजन, करन टाँका, फूलचमेंली, कौड़ी टाँका, बाल्दा, पेंचनी टाँका, करन फूल, कपकपी, माहरकी, बाँक जाली, हथकटी, सिधौल, मकड़ा, मन्दराजी, बुलबुल, ताजमहल, फूलबाजी इत्यादि। यह सभी चिकनकारी के विविध प्रकार हैं।
चिकनकारी का प्रत्येक प्रकार अपनी निर्माण शैली पर आधारित है तथा यह अपनी जाली के आकार पर भी टिके होते हैं। जैसे की चाँद, धनिया पत्ती या चने की पत्ती आदि का आकार चने की पत्ती और धनिया के पत्ती की तरह होता है तथा इनकी महीन व उत्कृष्ट आकृतियाँ कपड़ों पर बनाई जाती हैं।
1. लखनऊ के चिकन कारीगरों का जीवन: सीमा अवस्थी
2. एशियन एम्ब्रायडरी: जसलीन धमीजा
3. मार्ग- लखनऊ- देन एंड नाउ, संस्करण 55-1, 2003