प्रत्येक वर्ष 5 जून को पूरे विश्व भर में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है, जो पर्यावरणीय विविधताओं से हमारे पर्यावरण को बचाने के लिए विश्व भर में लोगों को प्रोत्साहित करता है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस जैव विविधता पर केंद्रित है, यह विषय प्राकृतिक दुनिया में तेजी से होने वाले प्रजातियों के नुकसान और गिरावट से निपटने के लिए एक अभियान है। जहां पृथ्वी पर मानव गतिविधियों के चलते एक मिलियन पौधे और जानवरों की प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर है, ऐसे में कोरोनोवायरस महामारी और चल रहे जलवायु संकट के चलते हुए भी इस मुद्दे से विश्व नजर नहीं हटा सकता है।
भारत, जैव विविधता के संदर्भ में 'महाविविध' देशों में से एक है, यहाँ विश्व की प्रजातियों का लगभग 10% हिस्सा मौजूद है। साथ ही भारत में हजारों वर्षों से चली आ रही समृद्ध सांस्कृतिक विरासत भी है। अधिकांश भारतीय जैव विविधता भूमि के सामाजिक-सांस्कृतिक प्रथाओं से गहन रूप से संबंधित है। उत्तराखंड जैसे कई हिमालयी राज्यों में पारिस्थितिकी प्रचलित धर्मों का पर्याय है। उत्तराखंड के नौ जिलों में, 168 पवित्र प्राकृतिक स्थल हैं जिनमें 75 पवित्र वन, 74 पवित्र घाट, 10 जल निकाय और 9 चरागाह हैं। कुछ मामलों में, पूरे वन क्षेत्र देवताओं को समर्पित हैं, इसलिए यहाँ वनों का दोहन वर्जित माना जाता है। इसके परिणामस्वरूप, वन क्षेत्र अछूते रहते हैं और फलते-फूलते हैं। इन क्षेत्रों में न्यूनतम आक्रमण के साथ ही वार्षिक उत्सवों के दौरान प्रवेश किया जाता है।
भारत में पौधों की लगभग 45,000 प्रजातियां हैं, जो विश्व के लगभग 7% हैं और इनमें से लगभग 33% स्थानिक हैं, जबकि 15,000 फूलों वाले पौधे हैं, जो विश्व के लगभग 6% है। दूसरी ओर 1,500 पौधों की प्रजातियां लुप्तप्राय हैं। 91,000 पशु प्रजातियां हैं, जो दुनिया के 6.5% जीवों का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनमें 60,000 कीट प्रजातियां, 2,456 मछली प्रजातियां, 1,230 पक्षी प्रजातियां, 372 स्तनधारी, 440 से अधिक सरीसृप और 200 उभयचर पश्चिमी घाट और 500 मोलस्क सबसे बड़ी एकाग्रता के साथ शामिल हैं। साथ ही पशुधन की विविधता अधिक है। भारत में भेड़ की 400, मवेशियों की 27 और बकरियों की 22 नस्लें पाई जाती हैं।
यह एशिया के कुछ दुर्लभ जानवरों की वैश्विक रूप से महत्वपूर्ण आबादी भी है, जैसे कि बंगाल लोमड़ी, एशियाई चीता, मार्बल्ड बिल्ली, एशियाई शेर, भारतीय हाथी, एशियाई जंगली गधा, भारतीय गैंडा, मार्खोर (Markhor), गौर, जंगली एशियाई पानी की भैंस आदि। भारत में जैव विविधता का वर्गीकरण निम्नलिखित है:
1. मलायन जैव विविधता :- यह पूर्वी हिमालय के घने जंगलों वाले इलाकों और तटीय इलाकों के साथ है।
2. इथियोपिया की जैव विविधता :- राजस्थान के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में इस तरह की जैव विविधता देखने को मिलती है।
3. यूरोपीय जैव विविधता :- इस तरह की जैव विविधता ऊपरी हिमालय के उन क्षेत्रों में पाई जाती है जहाँ जलवायु की विशेषताएं स्वभाव से अधिक शांत होती हैं।
4. भारतीय जैव विविधता :- भारतीय मैदान के घने वन क्षेत्रों में भी इस तरह की जैव विविधता देखने को मिलती है।
पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव लाने से पहले हमें यह जानना होगा कि वास्तव में हम अपने पर्यावरण को कैसे नुकसान पहुंचा रहे हैं। हम जो खाते हैं, उसका उत्पादन कैसे करते हैं और हम प्रकृति की रक्षा कैसे करते हैं, इन सभी चीजों में बदलाव लाकर हमारे द्वारा जैव विविधता के नुकसान को रोका जा सकता है।
जैव विविधता की हानि के पांच मुख्य चालक निम्नलिखित है :-
• भूमि-उपयोग परिवर्तन :- भोजन और संसाधनों की हमारी मांग के चलते हमारे द्वारा वनों की कटाई, भूमि उपयोग के बदलते पैटर्न और दुनिया भर में प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर दिया गया है। धरती में बर्फ से मुक्त भूमि का 26 प्रतिशत पशुधन चराई के लिए उपयोग किया जाता है और 33 प्रतिशत फसली पशुधन चारा के लिए उपयोग किया जाता है। आज, विश्व के एक तिहाई ऊपरी मृदा को अम्लीकरण, प्रदूषण और अन्य सतत भूमि प्रबंधन अभ्यास ने हटा दिया है।
• पौधों और जानवरों का दोहन :- लोगों द्वारा संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जिसमें मछली पकड़ना, लकड़ी काटना और छोटे और बड़े वन्यजीवों का अवैध शिकार शामिल है; पैंगोलिन जैसे प्रतिष्ठित वन्यजीव, की सबसे व्यापक रूप में अवैध तस्करी की जाती है। गरीबी लोगों को अवैध रूप से शिकार और पेड़ काटने जैसी गतिविधियों के लिए मजबूर कर देती है, जबकि वन्य क्षेत्रों पर अरक्षणीय विकास और वन्यजीव उत्पादों के लिए ईंधन की मांग अतिक्रमण का कारण बनती है।
• जलवायु आपातकाल :- जलवायु परिवर्तन और मौसम में वृद्धि निवास स्थान की हानि और गिरावट को बढ़ाती है। उदाहरण के लिए, गर्मी में वृद्धि के कारण समुद्र की बर्फ भारी मात्रा में पिघल रही है, जबकि ध्रुवीय भालू, सील (Seals) और मछली पकड़ने वाले पक्षियों को जीवित रहने के लिए लगातार बर्फ के प्रवाह की जरूरत होती है, दूसरी ओर अम्लीय महासागर प्रवाल भित्तियों को विलुप्त कर रहे हैं।
• प्रदूषण :- ताजे पानी और समुद्री आवास पर विनाशकारी प्रभाव के साथ प्रदूषण जैव विविधता के लिए एक बड़ा और तेज़ी से बढ़ता खतरा है। वर्तमान समय में समुद्र में लगभग 5 ट्रिलियन मैक्रो और माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े हो सकते हैं, जो लगभग 60 से 90 फीसदी समुद्री मलबे का कारण बनते हैं। वहीं खुले कचरे से पौधों और जानवरों पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है, जबकि कीटनाशक, उर्वरक और अन्य रसायन कीटों के प्राकृतिक शिकारी मधुमक्खियों और चमगादड़ों जैसे परागणकों को काफी नुकसान पहुंचाते हैं।
• आक्रामक विदेशी प्रजातियां :- आक्रामक विदेशी प्रजातियां परजीवियों या प्रतिस्पर्धियों के रूप में कार्य करके जैव विविधता को खतरे में डालती हैं। वैश्वीकरण के चलते लोगों द्वारा व्यापार और पर्यटन के माध्यम से अपनी मूल सीमाओं से परे आवाजाही और विदेशी प्रजातियों से परिचय में काफी वृद्धि हुई है।
हममें से प्रत्येक जैव विविधता हानि को समाप्त करने और मानव कल्याण के लिए प्रकृति को संरक्षित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं के द्वारा खरीदी और उपयोग की जाने वाली चीजों पर पुनर्विचार करना चाहिए, जिससे वे एक जागरूक उपभोक्ता बनते हैं। वहीं यदि हमें प्रकृति को नष्ट करने वाली अपनी गतिविधि को बदलना है तो, हमें पहले यह पता होना चाहिए कि इसके लिए हमें कौन से कदम उठाने चाहिए। सबसे पहले हमें यह सीखना होगा कि हम क्या कर सकते हैं; फिर प्राप्त किए गए पर्यावरण सुरक्षा के ज्ञान को हमारे परिवार और दोस्तों के साथ साझा करना है और अन्तः जिन चीजों को हमें बदलने की जरूरत है उन पर कार्य करना है।
निम्न पंक्तियों से आप यह जान सकते हैं कि हमारे द्वारा प्रकृति की रक्षा कैसे की जा सकती है:
• आप यह पता कर सकते हैं कि पर्यावरण की रक्षा के लिए आपका शहर और राष्ट्रीय सरकार क्या कर रही है।
• आप अर्थ स्कूल (Earth School) में शामिल हो सकते हैं और टेड-एड (TED-Ed) द्वारा आयोजित पर्यावरण पर 30 पाठों में भाग ले सकते हैं।
• आप संयुक्त राष्ट्र के एक्ट नाउ (Act Now) अभियान के माध्यम से जलवायु परिवर्तन से लड़ने में कैसे मदद कर सकते हैं।
• लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में पता करें, जो अवैध वन्यजीव व्यापार में तस्करी के शिकार हो जाते हैं।
• एनाटॉमी ऑफ एक्शन (Anatomy of Action) से आप यह जान सकते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति द्वारा कार्बन उत्सर्जन को कैसे कम किया जा सकता है।
• द नेचर कंजरवेंसी (The Nature Conservancy) एक वैश्विक गैर-लाभकारी संस्था है जो एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए काम कर रही है जहाँ लोग और प्रकृति एक साथ उन्नत हों।
विश्व पर्यावरण दिवस पर आप लोगों इन सब चीजों के बारे में जागरूक कैसे कर सकते हैं, निम्न कुछ सुझाव हैं:
• सिटीज फॉर फॉरेस्ट्स (Cities for Forests) द्वारा एक वन प्रतियोगिता लॉन्च की गयी है। फोटो प्रतियोगिता में शामिल हों और एक पेड़ लगाएं। सम्मानित स्रोतों का उपयोग सुनिश्चित करते हुए ही चीजों को साझा करें।
उपरोक्त बताए गए सभी संस्थान नीचे दिए गए लिंक में पाए जा सकते हैं।
निम्न कुछ कदमों को उठाकर आप प्रकृति का बचाव कर सकते हैं:
• अपने आहार को अधिक पर्यावरण के अनुकूल खाद्य पदार्थों में बदलें, विशेष रूप से आपके मुख्य प्रोटीन स्रोतों को।
• यात्रा कम करें – कोरोनावायरस की महामारी के बाद जब चीजें सामान्य हो जाएंगी तो अपनी यात्रा को सीमित करें।
• अपने बगीचे में कुछ स्थानों को छोड़ दें जहां परागणक और जमीन पर रहने वाले कीड़े बढ़ सकें।
• अपने शहर और राष्ट्रीय सरकार को बताएं कि यह महत्वपूर्ण है कि वे पर्यावरण के लक्ष्यों को पूरा करें जो उन्होंने प्रतिज्ञा की है।
• एकल उपयोग वाले प्लास्टिक को खरीदने से बचें। प्रकृति में फेंके जाने वाले प्लास्टिक के कचरे अक्सर भूमि और समुद्री जानवरों द्वारा भोजन समझ कर सेवन कर लिए जाते हैं। कई जानवर इससे गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं और अन्तः उनकी मृत्यु हो जाती है।
• जितना हो सके उतना पुनरावृत्ति (Recycle & Recap) करें।
• घरेलू रसायनों का उपयोग कम से कम करें जो मिट्टी और भूजल पर विषाक्त प्रभाव डाल सकते हैं। इसके बजाय, प्राकृतिक उत्पादों, जैसे सिरका और सादे पुराने साबुन को पानी के साथ प्रयोग में लाएं।
• स्थानीय रूप से उत्पादित उत्पादों और खाद्य पदार्थों को खरीदें।
मानव अस्तित्व के लिए जैव विविधता से समृद्ध, स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र आवश्यक है। पारिस्थितिक तंत्र हमारी हवा को साफ करता है, पानी को शुद्ध करता है, पौष्टिक खाद्य पदार्थों, प्रकृति आधारित दवाओं और कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित करता है और आपदाओं की घटना को कम करते हुए मानव जीवन को असंख्य तरीकों से बनाए रखने में हमारी मदद करता है। लेकिन हमारे द्वारा क्या प्रकृति का ध्यान रखा गया है? इसका उत्तर हमें अद्वितीय जंगलों की आग, टिड्डी आक्रमण और प्रवाल भित्तियों का विनाश और चक्रवात से प्राप्त होता है। साथ ही हाल ही में चल रही कोरोनावायरस महामारी हमें यह दर्शाती है कि पृथ्वी के स्वस्थ्य से ही मानव का स्वास्थ्य जुड़ा हुआ है।
चित्र सन्दर्भ:
1. सभी चित्रों में जैव विविधता का कलात्मक अंकन किया गया है। (Prarang)
संदर्भ :-
1. https://p.widencdn.net/e2n0wj/WED_SimpleToolkit
2. https://www.worldenvironmentday.global/what-covid-19-means-ecotourism
3. https://bit.ly/370or8E
4. https://www.biodiversityofindia.org/
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