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विश्वभर में ऐसे कई जंतु हैं, जिन्हें मानव द्वारा उपयोग में लाया जाता है तथा घोड़ा भी इन्हीं में से एक है। लगभग दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य से घोड़ा भारतीय उपमहाद्वीप में मौजूद रहा है, तथा भारतीय उपमहाद्वीप में प्रारंभिक स्वात संस्कृति (लगभग 1600 ईसा पूर्व) के दौरान घोड़े के सबसे पहले मौजूद होने के निर्विवाद प्रमाण हैं। घोडा महत्वपूर्ण जानवरों में से एक है, तथा इसके संदर्भ कई हिंदू धर्मग्रंथों में भी मिलते हैं, ऋग्वेद, यजुर्वेद आदि इसके प्रमाण हैं। अश्वमेध या अश्व यज्ञ, यजुर्वेद का एक उल्लेखनीय अनुष्ठान है, जिसमें अश्व अर्थात घोड़े का उपयोग किया जाता है।
इसके अलावा हयाग्रीव (Hayagriva) विष्णु के प्रसिद्ध अवतारों में से एक है, जिन्हें घोड़े के सिर के साथ चित्रित किया गया है। हयाग्रीव को ज्ञान के देवता के रूप में पूजा जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार पहला घोड़ा महासागरों के मंथन के दौरान समुद्र की गहराई से उभरा था। यह सफेद रंग का घोड़ा था जिसके दो पंख भी थे। इसे उच्छैहिराश्व (Uchchaihshraswa) के नाम से जाना जाता था। किंवदंती के अनुसार इस घोड़े को हिंदुओं के देवता इंद्र, अपने आकाशीय निवास या स्वर्ग में ले गए। इसके बाद, इंद्र ने घोड़े के पंखों को काट दिया और इसे मानव जाति के लिए धरती पर भेजा। यह सुनिश्चित करने के लिए कि घोड़ा धरती को छोड़कर वापस स्वर्ग न आये इसलिए इंद्र ने उसके पंखों को काट दिया। अरबिंदो के अनुसार अश्व और अश्वावती ऊर्जा के प्रतीक हैं। अथर्ववेद में भी अश्व व्यापारियों का उल्लेख किया गया है। अजंता में पाए गए एक चित्र में घोड़ों और हाथियों को दिखाया गया है, जिन्हें जहाज द्वारा ले जाया जाता है। रामपुर-स्वार और आस-पास के क्षेत्रों में भी घोड़े पाले जाते हंर तथा साथ ही उनका कारोबार भी किया जाता है।
रामपुर की स्थापना करने वाले रोहिल्ला मुगलों के लिए भाड़े के सैनिक के रूप में कार्य करते थे तथा घोड़ों को मध्य एशिया से यहां लाते और फिर उनका व्यापार करते। रामपुर स्टेट गजेटियर (State Gazetteer) के अनुसार, रामपुर भी लंबे समय से घोड़ों और हाथियों के व्यापार के लिए जाना जाता था। भूतिया (Bhutia), चुम्मारती (Chummarti), डेक्कानी (Deccani), काठियावाड़ी (Kathiawari), मणिपुरी पोनी (Manipuri Pony), मारवाड़ी (Marwari), सिकांग (Sikang), जंस्कारी (Zanskari), स्पीति (Spiti) भारत में मुख्य देसी घोड़ों की नस्लें हैं। इनमें से, मारवाड़ी और काठियावाड़ी सबसे प्रसिद्ध हैं, उनके कान अंदर की ओर झुक सकते हैं तथा 180 अंश तक घुमाए जा सकते हैं। ये दुनिया भर में घोड़े की नस्लों में एकमात्र प्रकार है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये जीव दुबले, पुष्ट, मजबूत, वफादार और सभी मौसम की स्थिति के अनुकूल हैं। मणिपुरी घोड़ा सर्वोत्कृष्ट पोलो (Polo-खेल) घोड़ा है, जबकि ज़ांस्करी और स्पीति नस्ल पहाड़ी इलाकों में काम करने के लिए मजबूत छोटे घोडे हैं।
भारत में लंबे मारवाड़ी और काठियावाड़ी घोड़े सभी उपयोग में लाए जाते हैं, जिन्हें आमतौर पर शादियों में भी दूल्हे के साथ देखा जाता है। विदेशियों द्वारा घोड़े की सफारी (Safaris) में उनके उपयोग ने उन्हें विदेशों में भी प्रतिष्ठा दिलाई। वे टेंट-पेगिंग (Tent-pegging) के खेल में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं, और विभिन्न राज्यों में घुड़सवार पुलिस ने इन नस्लों को इस उद्देश्य के लिए हासिल किया है। भारतीय घोड़े अब दुनिया के जाने-माने घोड़े की नस्लों के बीच अपना उचित स्थान प्राप्त कर रहे हैं। हालांकि, सरकार को लगता है कि मारवाड़ी और काठियावाड़ी नस्लें लुप्तप्राय हैं और उनके निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। 2007 की सरकारी पशु जनगणना में दावा किया गया था कि देश में 24,000 मारवाड़ी और 44,000 काठियावाड़ियाँ हैं। हालांकि, उनका कहना है कि ये सभी शुद्ध नहीं हैं और इसलिए इन सभी पर प्रतिबंध विदेशों में भारतीय घोड़े को बढ़ावा दे रहा है। दुनिया भर में, घोड़े मानव संस्कृतियों के भीतर एक भूमिका निभाते हैं और सदियों से ऐसा करते आए हैं। खाद्य और कृषि संगठन का अनुमान है कि 2008 में, दुनिया में लगभग 59,000,000 घोड़े थे, जिनमें से अमेरिका में लगभग 33,500,000, एशिया में 13,800,000 और यूरोप में 6,300,000 तथा अन्य विभिन्न भागों में थे। संयुक्त राज्य अमेरिका में 9,500,000 घोड़े होने का अनुमान है।
घोड़े का उपयोग विभिन्न गतिविधियों, कार्यों और खेल के उद्देश्यों के लिए किया जाता है। मानव और घोड़े के बीच संचार किसी भी घुड़सवारी गतिविधि में सर्वोपरि है। कई खेल, जैसे कि ड्रेसेज (Dressage), इवेंटिंग (Eventing ) और शो जंपिंग (Show jumping), सैन्य प्रशिक्षण में उत्पन्न हुए, जो घोड़े और सवार दोनों के नियंत्रण और संतुलन पर केंद्रित थे। इसी प्रकार से विभिन्न कार्यों की बात की जाए तो ऐसे कुछ रोजगार हैं जिनमें घोड़े की आवश्यकता पड़ती है। जैसे घुड़सवार पुलिस गश्त लगाने और भीड़ नियंत्रण के लिए इनका प्रयोग करते हैं। कुछ देशों में खोज और बचाव संगठन के लोग आपदा राहत सहायता प्रदान करने के लिए घुड़सवार समूहों पर निर्भर होते हैं। इतिहास को देखें तो घोड़ों का उपयोग युद्ध में भी अक्सर किया गया। युद्ध में घोड़ों का उपयोग कांस्य युग के अंत तक व्यापक था। घोड़ों को आज भी सीमित सैन्य उपयोगों में देखा जाता है। जिन क्षेत्रों में मोटर (Motor) वाहन उपलब्ध नहीं होते वहां आज भी घोड़े पर बैठकर गंतव्य स्थान तक पहुंचा जाता है।

चित्र (सन्दर्भ):
1. पहले चित्र में भारतीय घोड़े की मारवाड़ी नस्ल को दिखाया गया है।
2. दूसरे चित्र में सात घोड़ों की एक मनोरम चित्र कला को दिखाया गया है।
3. तीसरे चित्र में काठियावाड़ी घोड़े को दिखाया गया है।
4. चौथे चित्र में हिन्दू विवाह में घोड़े पर दूल्हे के साथ बारात को दिखाया गया है।
5. पांचवे चित्र में घोड़े के ऊपर योद्धा को युद्ध में घोड़े को महत्व को प्रदर्शित किया गया है।
6. छटे चित्र में भारतीय घोड़े की मणिपुरी नस्ल है।
संदर्भ:
1. https://www.business-standard.com/article/beyond-business/horse-the-indian-story-113092001165_1.html
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Horse#Interaction_with_humans
3. https://en.wikipedia.org/wiki/List_of_Indian_horse_breeds
4. https://en.wikipedia.org/wiki/History_of_the_horse_in_the_Indian_subcontinent
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