वर्तमान समय में मुद्रणालय या प्रिंटिग प्रेस (Printing press) समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह ऐसा माध्यम है जो सूचनाओं या ज्ञान का विस्तार करने में एक अहम भूमिका निभा रहा है। माना जाता है कि विलियम कैक्सटन (William Caxton - 1422–1491) ने 1426 में पहली बार इंग्लैंड में छपाई का काम शुरू किया था, तथा वे मुद्रित पुस्तकों के पहले खुदरा विक्रेता थे। लखनऊ में भी मुंशी नवल किशोर ने 1858 में एशिया का पहला मुद्रणालय शुरू किया था और तब उनकी आयु केवल 22 वर्ष की थी। लखनऊ में स्थित नवल किशोर प्रेस एंड बुक डिपो (Naval Kishore Press & Book Depot) एशिया का सबसे पुराना मुद्रण और प्रकाशन व्यवसाय माना जाता है। इस मुद्रणालय में 5000 से भी अधिक किताबें मुद्रित और प्रकाशित की गयी, जिनमें अरबी, बंगाली, हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, पंजाबी, संस्कृत, फारसी आदि भाषाओं की किताबें भी शामिल हैं। अलम्मा सईद शम्शुल्ला कादरी जी ने अपनी कई क़िताबें इसी मुद्रणालय से छपवाई।
इसी प्रकार शेख सदुल्लाह मसीह पानीपती द्वारा फारसी में लिखी गयी रामायण-ए-मसीह भी यही से प्रकाशित की गयी। इसके अतिरिक्त तुलसीदास की दोहावली, गोमती-लहरी, मार्कंडेय पुराण, दिवान-ए-ग़ाफिल, निति सुधार तरंगिणी जैसी क़िताबें और ग्रन्थ इसी मुद्रणालय में छापे गए थे। मुद्रणालय एक ऐसी यांत्रिक युक्ति है, जो दाब डालकर कागज, कपड़े आदि पर छपाई करने के काम आती है। इस प्रक्रिया में कपड़े या कागज आदि पर एक स्याही-युक्त सतह को रखकर उस पर दाब डाला जाता है। इससे स्याही-युक्त सतह पर बनी उल्टी छवि कागज या कपड़े पर सीधे रूप में छप जाती है। इसका आविष्कार और वैश्विक प्रसार दूसरी सहस्राब्दी में सबसे प्रभावशाली घटनाओं में से एक था।
जर्मनी में, लगभग 1440 में, सुनार जोहान्स गुटेनबर्ग (Johannes Gutenberg) ने प्रिंटिंग प्रेस का आविष्कार किया, जिसने प्रिंटिंग क्रांति की शुरुआत की। मुद्रणालय का आविष्कार होने से पहले, किसी भी लेखन और चित्र को हाथ से श्रमसाध्य रूप से पूरा करना पड़ता था। पुस्तकों का अनुलेखन करने या प्रतिलिपि बनाने के लिए कई अलग-अलग सामग्रियों जैसे- मिट्टी और पेपिरस (Papyrus), मोम, चर्मपत्र इत्यादि का उपयोग किया जाता था। यह काम केवल उन प्रतिलिपिकारों के लिए आरक्षित था, जो मठों में रहते थे और काम करते थे। मठों में एक विशेष कमरा था जिसे 'स्क्रिप्टोरियम (Scriptorium)' कहा जाता था। वहां, प्रतिलिपि बनाने वाला चुपचाप काम करता था। वह पहले पृष्ठ लेआउट (Layouts) को मापता और रेखांकित करता और फिर ध्यान से किसी अन्य पुस्तक के पाठ की प्रतिलिपि बनाता। बाद में, प्रकाशक ने पन्नों में डिजाइन (Design) और अलंकरण जोड़ने का काम संभाला। गुप्त काल और मध्य काल में, किताबें आमतौर पर केवल मठों, शैक्षणिक संस्थानों या अत्यंत समृद्ध लोगों के स्वामित्व में होती थीं तथा अधिकांश पुस्तकें स्वभाव से धार्मिक थीं। 1300 से 1400 के दशक के दौरान, लोगों ने मुद्रण का एक बहुत ही मूल रूप विकसित किया था। इसमें लकड़ी के ब्लॉक (Block) पर काटे गए अक्षर या चित्र शामिल थे। ब्लॉक को स्याही में डुबोया जाता था और फिर उससे कागज पर मुहर लगाई जाती थी। गुटेनबर्ग को पहले से ही इस तरह का काम करने का अनुभव था, और उन्होंने महसूस किया कि यदि वह मशीन के साथ कट (Cut) ब्लॉक का उपयोग करे तो, मुद्रण प्रक्रिया को बहुत तेज किया जा सकता है। इससे भी बेहतर, वह बड़ी संख्या में ग्रंथों को पुन: पेश करने में सक्षम होगा।
लकड़ी के ब्लॉकों का उपयोग करने के बजाय, गुटेनबर्ग ने धातु का उपयोग किया। इसे गतिशील प्रकार की मशीन के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि नए शब्दों और वाक्यों को बनाने के लिए धातु ब्लॉक अक्षरों को चलाया जा सकता था। इस मशीन के साथ, गुटेनबर्ग ने पहली मुद्रित पुस्तक बनाई, जो स्वाभाविक रूप से बाइबल का पुनरुत्पादन थी। आज गुटेनबर्ग बाइबिल अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए एक अविश्वसनीय रूप से मूल्यवान, क़ीमती वस्तु है। मूल प्रिंटिंग प्रेस के साथ, एक फ्रेम (Frame) का उपयोग विभिन्न प्रकार के ब्लॉक समूहों को व्यवस्थित करने के लिए किया जाता है। एक साथ, ये ब्लॉक शब्द और वाक्य बनाते हैं। हालाँकि, वे सभी ब्लॉक में उल्टे होते हैं। सभी ब्लॉक में स्याही लगी होती है, और फिर कागज की एक शीट ब्लॉकों पर रखी जाती है। यह सब एक रोलर (Roller) से होकर गुजरता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि स्याही कागज पर स्थानांतरित हो गई है। अंत में, कागज को उठा लिया जाता है, और पाठक स्याही वाले अक्षरों को देख सकता है जो अब कागज पर सामान्य रूप से दिखाई देते हैं। ये प्रिंटिंग प्रेस हाथ से संचालित होते थे। 19 वीं शताब्दी के दौरान अन्य आविष्कारकों ने भाप से चलने वाले प्रिंटिंग प्रेस बनाए, जिन्हें हाथ से कार्य करने वाले श्रमिकों की आवश्यकता नहीं थी। इसकी तुलना में, आज के प्रिंटिंग प्रेस विद्युत् से चलने वाले तथा स्वचालित हैं, और पहले से कहीं अधिक तेजी से छपाई कर सकते हैं।
आज, कई प्रकार के प्रिंटिंग प्रेस उपलब्ध हैं, तथा प्रत्येक को एक विशिष्ट प्रकार की छपाई के लिए जाना जाता है। इनमें लेटरप्रेस (Letterpress), ऑफसेट प्रेस (Offset Press), डिजिटल प्रेस (Digital Press) आदि शामिल हैं। जनता के बीच पहुँचने पर गुटेनबर्ग के आविष्कार ने एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला। पहले तो, कुलीन वर्गों ने इस पर ध्यान दिया किन्तु उनके लिए, हाथ से लिखी गई किताबें ही अमूल्य और भव्यता का संकेत थीं, और इसका सस्ती, बड़े पैमाने पर उत्पादित पुस्तकों के साथ कोई मेल नहीं था। इस प्रकार, निचले वर्ग के साथ प्रेस-मुद्रित सामग्री पहले से अधिक लोकप्रिय हो गयी। जब प्रिंटिंग प्रेस का विस्तार होने लगा तो अन्य प्रिंट दुकानें खुल गईं और जल्द ही यह पूरी तरह से नए व्यापार में विकसित हो गया। मुद्रित विषय जल्दी और सस्ते में दर्शकों तक जानकारी फैलाने का एक नया तरीका बन गया।
इस प्रसार से शिक्षाविदों और विद्वानों के विचारों को फायदा हुआ। राजनेताओं को भी यह लगने लगा कि वे मुद्रित पुस्तिकाओं के माध्यम से जनता को अपनी ओर प्रभावित कर सकते हैं। एक महत्वपूर्ण प्रभाव यह था कि लोग ज्ञान को अब और अधिक आसानी से पढ़ और बढ़ा सकते थे, जबकि अतीत में लोगों का अशिक्षित होना आम बात थी। इससे नए विचारों की चर्चा और विकास बढ़ा। प्रिंटिंग प्रेस के विकास से लैटिन भाषा के उपयोग में गिरावट आने लगी क्योंकि अन्य क्षेत्रीय भाषाएं स्थानीय रूप से मुद्रित सामग्री में आदर्श बन गई थीं। इसने भाषा, व्याकरण और वर्तनी को मानकीकृत करने में भी मदद की। आधुनिक प्रिंट तकनीक ने मुद्रण को पहले से अधिक सस्ता और सुलभ बना दिया है। उद्योग ने डिजिटल (Digital) युग को भी गले लगा लिया है, जिससे ऑनलाइन (Online) मुद्रण संगठनों का जन्म हुआ है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में प्राचीन मुद्रण प्रणाली से लेकर आधुनिक प्रिंटिंग मशीन तक सभी को दिखाया गया है।
2. भारतीय डाक द्वारा मुंशी नवल किशोर के सम्मान में जारी डाक टिकट (Wikipedia)
3. दवाब प्रणाली द्वारा चलने वाली मुद्रण मशीन
4. धातु के प्रिंटिंग ब्लॉक्स जिन्हे अपने अनुसार स्थानांतरित किया जा सकता है।
5. पुराने समय के मुद्रण संस्था का दृस्य
6. आधुनिक स्वचालित विद्युत मुद्रण मशीन
सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Printing_press
2. https://lucknow.prarang.in/posts/798/postname
3. https://www.psprint.com/resources/printing-press/
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