शंख का धार्मिक महत्व आज तक हमने आते जाते कई बार शंख की ध्वनि को सुन होगा, शंख को विभिन्न पूजा और अनुष्ठानों में बजाया जाता है। भारतीय धर्म ग्रंथों में शंख को अत्यंत ही महत्वपूर्ण दर्जा प्राप्त है और यही कारण है कि इसे तमाम धार्मिक क्रियाकलापों में प्रयोग किया जाता है। अब जब हम शंख की बात कर रहे हैं तो यह जानना भी अत्यंत जरूरी हो जाता है कि शंख को भगवान् विष्णु के पवित्र प्रतीक के रूप में देखा जाता है।
विष्णु की प्रतिमाओं में शंख का अंकन बहुतायत मात्रा में किया जाता है। तमाम प्राचीन मूर्तियों में हम विष्णु के हाथ में शंख का अंकन देखते हैं, शिल्पशास्त्र में भी विष्णु को शंख के साथ ही प्रदर्शित किया गया है। शंख को पानी के प्रतीक के रूप में, महिला और मातृत्व के रूप में तथा नागों के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह माना जाता है कि शंख से जो ध्वनि निकलती है वह अलौकिक ॐ का जाप करती है।शंखधारी विष्णु को ध्वनि के देवता के रूप में भी देखा जाता है। अगर हम ब्रह्म वैवर्त पुराण की बात करें तो उसमे यह उल्लिखित है कि विष्णु और लक्ष्मी दोनों का निवास स्थान शंख के मध्य में ही है। शंख सागर में प्राप्त होता है और यह माना जाता है कि सागर भगवान विष्णु का घर है और वहीँ पर विष्णु शेषनाग पर सवार होकर पूरे विश्व का कल्याण करते हैं। शंख की पवित्रता इसी मान्यता से पता चल जाती है कि यदि कोई व्यक्ति शंख में जल रख कर, उस जल से स्नान कर ले तो वह दुनिया भर के तमाम पापों से मुक्त हो सकता है।
हमें शंख की महत्ता हिन्दू व बौद्ध दोनों धर्मों में देखने को मिलती है। यह हिन्द महासागर में बहुतायत मात्रा में पाये जाते हैं। शंख एक बड़े विशालकाय शिकारी घोंघे का खोल होता है, शंख ऊपर से देखने में चीनी मिट्टी के बर्तन की तरह प्रतीत होती है। शंख का प्रयोग मात्र धार्मिक अनुष्ठानों में ना होकर युद्ध के दौरान भी सुबह और शाम के समय में होता था।
वर्तमान समय में यदि देखा जाए तो शंख केरल राज्य का राजकीय प्रतीक है और प्राचीन काल में त्रावणकोर रियासत और कोचीन साम्राज्य का राष्ट्रीय प्रतीक भी था। शंख बौद्ध धर्म के अष्ठ मंगल के आठ शुभ प्रतीकों में से भी एक है। शंख का प्रयोग आयुर्वेद में भी बड़े पैमाने पर किया जाता है, इसका चूर्ण पेट सम्बन्धी बीमारियों को ठीक करने में किया जाता है। शंख को दो प्रमुख भागों में बांटा गया है- प्रथम है वामवर्त तथा दूसरी है दक्षिणावर्ती। वामवर्त शंख एक सामान्य रूप से पाया जाने वाला शंख है तथा यह शिव से सम्बंधित है और दक्षिणावर्ती शंख विष्णु से जुड़ा हुआ है तथा इसका स्थान सर्वोपरि माना जाता है। दक्षिणावर्ती शंख को लक्ष्मी से भी जोड़ कर देखा जाता है और माना जाता है यह औषधीय उपयोग के लिए अत्यंत ही व्यवस्थित है। वराह पुराण और स्कन्द पुराण भी दक्षिणावर्ती शंख को अत्यंत ही उत्तम शंख का दर्जा देते हैं।
श्रीमद भगवत गीता में भी इस शंख के विषय में एक वाकिया दर्ज है। दक्षिणावर्ती शंख एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण और मूल्यवान शंख है तथा यह हजारों रूपए प्रतिग्राम के भाव से बाजार में बिकता है। यह शंख समुद्र में पाए जाने वाले विशालतम घोंघे का कवच होता है, यह घोंघा हिन्द महासागर में ही प्राप्त होता है। जिस घोंघे से यह शंख प्राप्त होता है उसे टर्बिनेला पाईरम (Turbinella Pyrum) प्रजाति के नाम से जाना जाता है। इसमें से कुछ शंख पर उल्टी दिशा में घूमने वाले सर्पिल बने हुए होते हैं जो की अत्यंत ही दुर्लभ होता है कारण की दक्षिणावर्ती शंखोपर दाहिने तरफ के सर्पिल आकृतियां बनी होती हैं जबकि वामवर्ती शंखों में बायीं ओर से सर्पिल आकृतियाँ बनी होती है।
चित्र (संदर्भ):
1. शंख बजाता एक हिन्दू उपासक (Flickr)
2. प्राचीन काल में शंख वादन करता एक पुजारी (Prarang)
3. क्षीर सागर में हाथ में शंख के साथ भगवान् विष्णु (Wallpaperflare)
4. बौद्ध शंख (Unsplash)
5. शंख के संकेत के साथ केरल राज्य का राजकीय चिन्ह (Wikimedia)
6. महाभारत युद्ध के दौरान शंख फूकते श्रीकृष्ण और अर्जुन (Wallpaperflare)
सन्दर्भ
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Shankha
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Dakshinavarti_Shankh
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