उत्तर भारत का सबसे पुराना जीवित संगीतमय रूप है, ध्रुपद

लखनऊ

 02-05-2020 07:30 AM
ध्वनि 1- स्पन्दन से ध्वनि

लखनऊ के ठुमरी घराने ने संगीत की ठुमरी शैली के विकास में एक बहुत बड़ी भूमिका निभाई। इस घराने के ज्यादातर संगीतकारों ने वाजिद अली शाह के दरबार में काम किया। वास्तव में ठुमरी शैली संगीत की ‘ख़याल’ शैली से विकसित हुई, तथा ख़याल भारतीय शास्त्रीय संगीत शैलियों का उद्भव करने वाली संगीत शैली ‘ध्रुपद’ से विकसित हुई। ध्रुपद हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, हवेली संगीत से जुड़ी प्रमुख मुखर शैलियों की सबसे पुरानी शैली है, जोकि दक्षिण भारतीय कर्नाटक परंपरा से भी संबंधित है। ध्रुपद एक संस्कृत शब्द है, जो ध्रुव (अचल, स्थायी) और पद (पद्य) शब्दों से मिलकर बना एक संयोजन है जिसका अर्थ है "स्तंभ (Pillar)"। ध्रुपद का मूल बहुत प्राचीन है, और इसका उल्लेख हिंदू संस्कृत पाठ्य नाट्यशास्त्र (लगभग 200 ईसा पूर्व - 200 ईसा पूर्व) में किया गया है। यह गीत-संगीत संयोजन की आध्यात्मिक, वीर, विचारशील, सदाचारी, अंतर्निहित नैतिक ज्ञान का एक रूप है। निम्बार्क सम्प्रदाय में श्रीभट्ट की युगल शतक 1294 ईसवीं में लिखी गयी तथा इसमें ध्रुपद के बोल शामिल हैं। अबू फ़ज़ल (1593) की आइन-ए-अकबरी (Ain-e-Akbari) ध्रुपद नामक संगीत शैली का सबसे पुराना स्रोत है। बाद में ग्वालियर के मान सिंह तोमर (1486-1516) के दरबार के संगीतकारों की रचनाओं में इस शैली का उल्लेख मिलता है।

मुगल दरबार में ध्रुपद को एक ऐसी संगीत शैली के रूप में चित्रित किया गया जोकि अपेक्षाकृत नयी थी। अधिकांश स्रोत यह इंगित करते हैं कि, ध्रुपद की उत्पत्ति मान सिंह तोमर के दरबार से हुई है। माना जाता है कि यह शैली पंद्रहवीं शताब्दी में प्रबन्ध (Prabandha) से एक विकास के रूप में उत्पन्न हुई जिसे इसने प्रतिस्थापित किया। 16 वीं शताब्दी के भक्ति संत और कवि-संगीतकार स्वामी हरिदास, जाने-माने ध्रुपद गायक थे जो कृष्ण को समर्पित गीत गाते थे। ध्रुपद स्वामी हरिदास के शिष्य तानसेन के साथ मुगल दरबार का दरबार संगीत बन गया तथा तानसेन अपनी अन्य चीजों के अलावा ध्रुपद रचनाओं के लिए भी जाना जाने लगा। ध्रुपद प्राचीन है, और खयाल नामक संगीत की शैली से विकसित हुआ है। डॉ. पुरु दधीच द्वारा हाल के समय में ध्रुपद पर नृत्य करने की प्राचीन प्रथा को फिर से प्रस्तुत किया गया है। ध्रुपद में पद या शब्द निश्चित संरचना या प्रतिमान में निर्धारित होते हैं। यदि कोई इस रूप की जड़ों की खोज करे तो वह पायेगा कि यह शैली तब से मौजूद है जब से वेद मंत्रों का जाप होता चला आ रहा है। ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि इसके विकास की प्रक्रिया एक क्रमिक विकास प्रक्रिया है। भारतीय परंपरा में, ईश्वर के साथ सत्य और सत्य के साथ संगीत की समानता थी। इस समृद्ध विद्या से ध्रुपद की उत्पत्ति हुई, जिसके मूल का वर्णन साम वेद में भी है। यह भी कहा जाता है कि ऋषियों द्वारा महाभारत और रामायण जैसे महाकाव्यों के जाप ने ध्रुपद को रंग दिया और लयबद्ध किया। यह स्वभाव से भक्तिपूर्ण थी, जोकि पूजा स्थलों में देवताओं के लिए एक आराधना के रूप में गायी जाती थी। इसने जल्द ही योग-नाद ब्रह्म (ध्वनि) की स्थिति ग्रहण की। ऋषियों द्वारा ध्वनि की शुद्धता प्राप्त करने के लिए एक योगिक साधना भी की गई। माना जाता है कि ध्रुपद सभी रचनाओं का स्रोत माने जाने वाले पवित्र शब्दांश ओम के पहले जप से विकसित हुआ है।

11 वीं शताब्दी के संगीत ग्रंथ, जैसे 'संगीत मकरंद', और 14 वीं शताब्दी के 'रागतरंगिणी' जैसे ग्रंथ ध्रुव और ध्रुव-प्रबंध दोनों पर चर्चा करते हैं। 17 वीं शताब्दी के भवभट्ट जैसे विभिन्न विद्वानों ने ध्रुपद और उस समय के रागों का वर्णन किया है। ध्रुपद का एक मजबूत शास्त्रीय आधार था क्योंकि वे सलग सुदा प्रबन्ध से विकसित हुआ था। सलग सुदा प्रबन्ध, प्रबन्ध का एक ऐसा रूप था जिसमें धातु (विभाजन) अंतरा गाया जाता था। सलग सुदा प्रबन्ध में पाँच धातु अर्थात् उदग्रह, मेलपका, ध्रुव, अंतरा और अभोग थे। कुछ समय बाद ध्रुवप्रबंध की धातुएँ उदग्रह, मेलपका, अंतरा, संचारी और अभोग बन गए। बाद में उदग्रह और मेलपका आपस में मिलकर एक खंड बन गए जिसे स्थायी कहा गया। इस प्रकार आधुनिक ध्रुपद चार छन्दों में आया - स्थाई, अंतरा, संचारी और अभोग। ध्रुपद गायक डगर घराने से संबंधित हैं तथा वे ध्रुपद गायन के दौरान हारमोनियम या सारंगी जैसे वाद्ययंत्रों का उपयोग नहीं करते, केवल तम्बूरा ही पृष्ठभूमि में बजाया जाता है। हालांकि, दरभंगा परंपरा से संबंधित लोग सारंगी का सहारा लेते हैं। पंडित भातखंडे के सैकड़ों ध्रुपद-धमार बंदिशों का संग्रह हमारी समृद्ध परंपरा का एक बहुत अच्छा अनुस्मारक है। यह माना जाता है कि ध्रुपद और अनुष्ठान पूजा के बीच जुड़ाव तब बढ़ गया था जब मध्यकाल में भक्ति आंदोलन ने गति पकड़ी। इस प्रकार ध्रुपद और पूजा के बीच का संबंध एक लंबा इतिहास रहा है, जो कम से कम सात शताब्दियों में वापस आया है।

एक ध्रुपद में कम से कम चार छंद होते हैं, जिन्हें स्थायी या अस्थायी, अंतरा, संचारी और अभोग कहा जाता है। स्थायी भाग एक माधुर्य भाग है, जो मध्य सप्टक (Octave) के पहले टेट्राकोर्ड और निचले सप्टक के नोट्स (Notes) का उपयोग करता है। अंतरा भाग मध्य सप्टक के दूसरे टेट्राकोर्ड और उच्च सप्टक नोट्स का उपयोग करता है। संचारी हिस्सा विकास का चरण है, जो पहले से ही उपयोग किये गए स्थायी और अंतरा के हिस्सों का उपयोग करता है। अभोग एक समापन खंड है, जो श्रोता को लयबद्ध रूपांतरों, निम्न नोट्स के साथ स्थायी के परिचित शुरुआती बिंदु पर वापस लाता है, जोकि आदर्श रूप से गणितीय भाग है जैसे- दगुन, तिगुन चौगुन । कभी-कभी भोग नामक पांचवे छंद का भी उपयोग किया जाता है। हालाँकि आमतौर पर ध्रुपद दार्शनिक या भक्ति (किसी ईश्वर या देवी की भावनात्मक भक्ति) से संबंधित थे, लेकिन कुछ ध्रुपद राजाओं की प्रशंसा करने के लिए भी बनाए गए थे। इस प्राचीन परंपरा अर्थात भारतीय संस्कृति के आंतरिक भाग के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए बहुत कुछ किए जाने की आवश्यकता है।

चित्र (सन्दर्भ):
1.
अकबर और तानसेन का हरिदास से मिलन (Wikimedia)
2. ध्रुपद और रुद्र वीणा वादक (Wikipedai Commons)
3. ध्रुपद संगीत का कलात्मक प्रदर्शन (Facebook)
सन्दर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Dhrupad
2. https://bit.ly/2Ss0DnZ
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_classical_music



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id