माचिस उद्योग के साथ साथ विलुप्त हो रहा है माचिस की डिब्बियों को संग्रह करने का शौक

लखनऊ

 27-04-2020 03:20 PM
ध्वनि 2- भाषायें

कई लोगों को माचिस की डिब्बियों का संग्रह करने का शौक होता है यह शौक लगभग सौ साल से लोकप्रिय रहा है। हालांकि पिछले 20 वर्षों में स्मार्ट-फोन की लत से जूझ रही पीढ़ी के युवाओं में इस शौक की ओर कम दिलचस्पी देखी गई है। फिर भी भारत में दुर्लभ लेबल (Label) वाली माचिस के डिब्बियों की कीमत में तेजी आई है। हमारे रामपुर/बरेली के क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से भारत के सबसे बड़े माचिस की डिब्बी बनाने वाले निर्माता (विम्को फैक्ट्री, बरेली) का घर रहा है। वहीं रोहिलखंड क्षेत्र के अलावा, तमिलनाडु का शिवकाशी क्षेत्र भी पुराने माचिस के डिब्बियों के लेबलों की खोज करने और एक संग्रह बनाने वालों के लिए सबसे अच्छी जगह है। माचिस की डिब्बी तथा इन पर अंकित चित्र, मैचबुक्स (Match books), मैच सेफ (Match safe) इत्यादि माचिस से संबंधित वस्तुओं को इकट्ठा करने के शौक को फिल्लुमेनी (Phillumeny) कहते हैं। 1826 में पहली माचिस और माचिस की डिब्बियों को जनता को बेचना शुरू किया गया था। उस समय से ही अधिकांश लोगों ने इन छोटे, अद्वितीय, विपणन टुकड़ों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था। ये माचिस के डिब्बे इतिहास का एक आशुचित्र बन गए हैं, जो लोगों को अपने अद्वितीय डिजाइन और कलात्मक प्रयासों के साथ पुराने समय पर वापस ले जाते हैं।

कई संग्राहक दुर्लभ लेबल के बड़े संग्रह को एकत्र करने में गर्व महसूस करते हैं, क्योंकि उनका मानना है कि ये एक दिलचस्प संभाषण प्रवर्तक प्रदान करते हैं, साथ ही साथ स्थानों, लोगों और घटनाओं की यादों को वापस लाने का एक शानदार तरीका है। यदि आप भी माचिस के डिब्बी की कला को इकट्ठा करने में दिलचस्पी रखते हैं, तो आप इसकी शुरुआत अपनी यात्रा के दौरान उन्हें इकट्ठा करके कर सकते हैं। मैचबुक संग्रह आपकी यात्रा का एक दृश्य स्मारक बनाने के साथ-साथ उनके कलात्मक डिजाइनों की सराहना करने का एक मजेदार और आसान तरीका है। विश्व प्रसिद्ध कलाकार, जैसे जॉर्ज पेटी, अल्बर्टो वर्गास और एड मोरन, उन महिलाओं की तस्वीरें बनाते हैं, जिन्होंने मेचबूक के कवर (Cover) से इस क्षेत्र में आगमन किया था। एक संग्राहक के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि वे विभिन्न प्रकार के माचिस लेबल को एकत्र कर सकते हैं। और समय के साथ आप उपलब्ध विकल्पों में अधिक अनुभवी हो जाएंगे, जिससे आप एक उस संग्रह का निर्माण कर सकते हैं जो आपके स्वाद, शैली और रुचियों को आकर्षक करता है। निम्न कुछ विकल्प दिए गए हैं जो आपको संग्रह करना शुरू करने के निर्णय पर विचार करने में मदद कर सकते हैं:
1. एकल शीर्ष लेबल :- ये लेबल माचिस के शीर्ष से चिपके एक एकल वर्ग के होते हैं। किसी भी चित्राधार में लगाने के लिए उन्हें निकालना बहुत आसान है। वे संग्राहकों के लिए सबसे लोकप्रिय लेबल बन जाते हैं और आपके लिए शुरुआत करने का एक शानदार तरीका हो सकता है।
2. बहुमुखी लेबल :- एक बहुमुखी लेबल माचिस के चारों तरफ लपेटा जाता है। ये लेबल मूल्यवान तभी माने जाते हैं जब इन्हें संपूर्ण रूप से एक साथ ही निकाला जाता है। अपने स्वयं के बहुमुखी लेबल संग्रह पर काम करने से पहले उपलब्ध विभिन्न प्रदर्शन विकल्पों का अध्ययन कर लें।
3. स्किलेट्स (Skillets) :- स्किलेट्स आधुनिक समय की माचिस है जो आज हमारे समक्ष मौजूद है। वे डिब्बे पर मुद्रित लेबल के साथ छोटे डिब्बे हैं। इसके अलावा, एक विपणन उपकरण के रूप में, वे व्यवसाय और संग्राहकों दोनों के लिए मूल्यवान होते हैं। ये माचिस के डिब्बे कलात्मक रूप से अद्वितीय हो सकते हैं। आज की मुद्रण तकनीक इन डिब्बों को एक तरह से मेल खाने के लिए अधिक विकल्प प्रदान करती है। यह विशिष्टता नए संग्रहकर्ताओं का ध्यान खींचने के लिए एक शानदार तरीका हो सकता है।
4. पैकेट (Packet) के आकार का लेबल :- इस आकार के लेबल काफी दुर्लभ होते हैं और अधिकांश संग्राहक इन्हें अनदेखा कर देते हैं क्योंकि इनका मिलना काफी कठिन होता है। यदि आपको ये मिलता है तो ये याद रखिए कि इनका मूल्य एक डिब्बे के आकार के लेबल से अधिक होता है। हालांकि, ध्यान रखें कि यदि आप इन पैकेट आकार के लेबल का एक संग्रह बनाने की कोशिश कर रहे हैं, तो आपका संग्रह छोटा होना स्वभावी है। इसलिए, एक से अधिक संग्रह पर विचार करना महत्वपूर्ण होता है।

भारत में भी कई फिल्लुमेनिसट हैं जिनको माचिस से संबंधित वस्तुओं को इकट्ठा करने का शोक है। जिनमें से एक दिल्ली की श्रेया कातुरी, दिल्ली में स्थित गौतम हेममाडी और चेन्नई के रोहित कश्यप शामिल हैं। दिल्ली की श्रेया कत्युरी के पास वर्तमान में 900 से अधिक माचिस के डिब्बे और उनमें अंकित चित्रों का संग्रह है। साथ ही गौतम हेममाडी के पास अब तक संरक्षित की गई 25,000 माचिस के डिब्बे, उसमें अंकित चित्र और कवर उनके संग्रह में शामिल हैं। वहीं रोहित कश्यप ने पांचवी कक्षा की ऊमर से ही माचिस से संबंधित वस्तुओं को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था, और उनके 30 साल से अधिक के संरक्षण में 108 विभिन्न देशों से 80,000 माचिस के डिब्बे, उसमें अंकित चित्र और कवर शामिल है।

जिस निश्चितता के साथ एक माचिस की तीली जलती है, उसी तरह से 1,500 करोड़ रुपये के माचिस उद्योग का भविष्य धीरे-धीरे खत्म हो रहा है। वर्तमान समय में घर पर गैस लाइटर (Gas lighter) के व्यापक उपयोग और धूम्रपान के लिए लाइटर के उपयोग ने माचिस को स्थानंतरित कर दिया है। जिसके चलते उत्पादन की बढ़ती लागत ने सभी संपन्न उद्योग को अंतिम चरण पर ला खड़ा कर दिया है। इन सभी कारकों के चलते उत्तर प्रदेश के बरेली में अंतिम इकाई को बंद करने का निर्णय लिया गया। साथ ही देश के सबसे पुराने माचिस के डिब्बे के निर्माता में से एक, दक्षिणी तमिलनाडु का शिवकाशी शहर, अब एक तीव्र गिरावट पर है। माचिस की डब्बियों को इकट्ठा करना काफी मनोरंजक, सस्ता और बहुत अधिक स्थान न लेने वाला शोक है। हालांकि वर्तमान समय में लोग फिल्लुमेनी के इतने दीवाने नहीं हैं, लेकिन विश्व भर के संग्राहक इंटरनेट पर (खासकर सोशल मीडिया पर) सक्रिय रहते हुए अपने संग्रह को लोगों के साथ साझा करते हैं। जहां अब इंटरनेट पर अधिक से अधिक लोग अपने संग्रह को प्रदर्शित करने के लिए सक्रिय हो रहे हैं, वहीं संग्राहकों के मध्य प्रतिस्पर्धा में भी वृद्धि होना स्वाभाविक है। जिस वजह से ही लोगों के समक्ष माचिस के डब्बों को इकट्ठा करने के बारे में जागरूकता कम है। जानकारी आसानी से उपलब्ध न होने के बावजूद भी फिल्लुमेनी बना हुआ है।

चित्र (सन्दर्भ):
सभी चित्रों में माचिस के लेबल का संग्रह है।
1. चित्र 1- Prarang
2. चित्र 2, 3 - Peakpx
2. चित्र 4 - Youtube

संदर्भ :-
1.
https://bit.ly/2Y5jysE
2. https://wagnermatch.com/facts-about-matchbox-collecting/
3. https://bit.ly/3cDXWaK
4. https://bit.ly/353lt2c
5. https://bit.ly/2zuY9yJ
6. https://bit.ly/3eLNXlw



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