लखनऊ शहर नवाबों के शहर के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ के पहले नवाब प्रथम सादत अली खां से लेकर वाजिद अली शाह तक अनेक नवाबों ने शासन किया। अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह का विवाह 1837 में पंद्रह वर्ष की आयु में आलम आरा बेगम से हुआ था। 1847 में वाजिद अली को अवध के शाह के रूप में स्वीकार किया गया, तब आलम आरा बेगम को खास महल के रूप में जाना जाने लगा। वाजिद अली द्वारा आरा बेगम के लिए दो मंजिला महल बनवाया गया ओर ऐसा भी कहा जाता है कि अफ़जल बेगम (नासिर-उद-दिन हैदर के बेटे फरदीन बख्त उर्फ़ मुन्ना जान की मां) भी आलम बाग में रही थी। प्रारंभ में आलमबाग एक सुन्दर महल था जिसमें ऊँची दीवारों वाले कक्ष थे जिनकी दीवारे सुन्दर भित्ति चित्रों से सजे हुए थे, इसे एक रानी के निवास योग्य बनाया गया था। इसमें एक मस्जिद तथा कुछ अन्य इमारतों के साथ एक सुन्दर सा बगीचा भी था। महल के निर्माण के तुरंत बाद ही नवाब को ब्रिटिश द्वारा निर्वासन में भेज दिया गया। 1857 की क्रांति में जब लखनऊ क्रांति का केंद्र बना तब इस महल को क्रांतिकारियों द्वारा एक दुर्ग में तब्दील कर दिया गया।
इतिहासकर रोशन तकी के अनुसार आलमबाग में स्वतंत्रता सेनानियों ने प्रवेश लिया, जिन्होंने इसे सैन्य पद में बदल दिया और 23 सितम्बर 1857 तक इसे आयोजित किया। बाद में मेजर जनरल सर हेनरी हैवलाक (Major General Sir Henry Havelock) द्वारा इस पर अधिकार किया गया और घायल तथा बीमार सैनिकों के लिए इसे एक अस्पताल में परिवर्तित कर दिया। यह क्षेत्र भारतियों और अंग्रेजों के मध्य भयंकर युद्ध का साक्षी रहा है। इस परिसर में जनरल हैवलाक की समाधी है, जिसे उसके परिवार के सदस्यों द्वारा बनवाया गया है। शाही निवास स्थान होने से लेकर एक सैन्य दुर्ग तथा एक अस्पताल के रूप में कोठी आलम आरा का विभिन्न उदेश्यों के लिये प्रयोग किया गया, यहाँ तक की 1947 में विभाजन के समय में भी पाकिस्तान से भारत आने वाले शरणार्थियों के लिए यह स्थान स्वर्ग समान सिद्ध हुआ था।
आलमबाग महल और आलमबाग गेट की वर्तमान स्थिति सोचनीय है। दोनों ही इमारतों का रखरखाव बहुत ही लापरवाही के साथ किया जा रहा है। इसके अतिरिक्त इन तथाकथित संरक्षित स्थानों पर असंख्य दुकानों का अतिक्रमण हो गया है। आलमबाग कोठी के समान ही लखनऊ के अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों की स्तिथि विचारणीय है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण तथा राज्य पुरातत्व विभाग की सहायता के आभाव में कई स्मारकों का संरक्षण न होने से उनकी स्तिथि अत्यधिक चिंतनीय हो गई है। अकबरी दरवाजा, गोल दरवाजा, बटलर पैलेस, आर्ट एंड क्राफ्ट कॉलेज, आदि अनेक स्मारकों की स्तिथि काफी बुरी है। अनेक स्मारकों को तो लोगों द्वारा पुस्तक भंडार, मकान तथा वस्तु संग्रह आदि के लिए प्रयोग किया जा रहा है। अभी हाल ही में शिवताबाद इमामबाडा के प्रवेश द्वार का एक बड़ा भाग टूट कर गिर गया क्योंकि इसका प्रयोग कार्यालय व दुकानों के रूप में प्रारंभ हो गया था। हमारे लिए यह विचारणीय है कि यदि सामान्य मनुष्यों द्वारा इसी प्रकार की लापरवाही और इसके लिए उत्तरदाई विभागों द्वार इसी प्रकार की अनदेखी की जाती रही तो हम अपनी ऐतिहासिक धरोहर को जल्द ही खो देंगे और वो मात्र कुछ किताबों और तस्वीरों में ही जीवित रह जाएगी।
चित्र(सन्दर्भ):
1. आलम बाग के बागानों में ब्रिटिश, क्रिसमस दिवस 1857, लेफ्टिनेंट सी. मेखम द्वारा, Wikipedia
2. दूसरा चित्र आलम बाग़ पैलेस का 19वीं शताब्दी का चित्र है।, artsatWikipedia
3. तीसरा चित्र आलमबाग का पुराण दृस्य है।
सन्दर्भ :
1. https://www.knocksense.com/lucknow/kothi-alamara
2. https://bit.ly/2KsQGCz
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Alambagh
4. http://saveourheritage.in/alambagh-palace-kothi-alamara/
5. https://lucknow.prarang.in/posts/2164/alam-bagh-of-lucknow
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