हर साल आस्तिक लोग, दुनिया भर में नए बढते हुए चंद्रमा के देखे जाने या दर्शन का अनुमान लगाते हैं, जोकि इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने और इस्लामी संस्कृति में सबसे पवित्र महीने जिसे रमजान या रमदान का महीना कहा जाता है, के पहले दिन का आधिकारिक संकेत देता है। मुस्लिम समाज के हर व्यक्ति के लिए यह महीना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है जिस कारण इस महीने में अत्यधिक चहल-पहल होती है। यह उस महीने को दर्शाता है जिसमें इस्लाम धर्म के पवित्र ग्रन्थ कुरान को 610 ई.पू. में स्वर्गदूत आर्क-एंजेल गैब्रियल (Archangel Gabriel) द्वारा पैगंबर मोहम्मद को प्रदर्शित किया गया था। माना जाता है, कि जब पैग़म्बर मोहम्मद चालीस वर्ष के थे, तो उन्होंने एकांत में समय बिताना शुरू कर दिया, और उन सवालों पर विचार करने लगे, जो उन्हें परेशान करते थे। ऐसा करने के लिए, वे एक समय में एक महीने के लिए अल-हीरा (al-Hira) नामक पहाड़ी में स्थित एक गुफा में जाने लगे। एक वर्ष 610 ईसवीं के आसपास, मोहम्मद अन्य दिनों की भाँति अल-हीरा पहाड़ियों के पास गए, लेकिन वहां उनकी मुलाक़ात आर्क-एंजेल गेब्रियल से हुई जिसने मोहम्मद को पकड़ लिया तथा डरे हुए मोहम्मद को कुछ पढ़ने का आदेश दिया। मोहम्मद इतने डर गए थे कि उन्होंने दो बार इनकार भी किया, यह जाने बग़ैर कि आखिर क्या पढ़ना है? तब गेब्रियल ने उत्तर दिया कि मैं गेब्रियल हूँ तथा तुम खुदा के संदेशवाहक हो। मोहम्मद भय के कारण गुफा से भाग गए क्योंकि वे सोचने लगे कि वह एक बुरी आत्मा है। वे पहाड़ से नीचे भागने लगे और गेब्रियल, पूरे आकाश जोकि हरे रंग का हो गया था, को आवरित करते हुए, आकाश में अपने असली रूप में दिखाई देने लगा। संयोगवश, यह वही रंग था जहां इस्लाम अपना आधिकारिक रंग हासिल करता है। जब मोहम्मद घर लौटे, तो उन्होंने यह घटना अपने परिवार को बतायी। जब उन्होंने यह बात अपने धर्मनिष्ठ रिश्तेदार को बतायी तो वह बोला कि उन्हें खुदा के पैगंबर के रूप में चुना गया है।
कुछ ही समय बाद, मोहम्मद को गेब्रियल से और साथ ही अपने स्वयं के दिल की वास्तविकताओं से और भी खुलासे मिलने लगे। माना जाता है कि सभी पवित्र ग्रंथों को रमजान के दौरान ही धरती पर भेजा गया था, जिससे इन 30 दिनों को इस धर्म में सबसे पवित्र माना जाता है। रमदान शब्द की व्युत्पत्ति अरबी भाषा के 'अर्-रमाद' से हुई है, जिसका अर्थ है चिलचिलाती गर्मी। यह रहस्योद्घाटन, 'लयलात अल क़दर-(Laylat Al Qadar)' या ‘शक्ति की रात’ माना जाता है जोकि रमजान के दौरान हुआ था। मुसलमान इस महीने के दौरान उपवास करते हैं, जोकि कुरान के रहस्योद्घाटन को स्मरण करने का एक तरीका है। रमजान के दौरान, मुसलमानों का लक्ष्य आध्यात्मिक रूप से विकसित होना और अल्लाह के साथ मजबूत संबंध बनाना है। वे कुरान की प्रार्थना और पाठ करके, अपने सभी कार्यों को निस्वार्थ भाव से करते हैं, तथा पूरी कोशिश करते हैं कि वे कोई भी गलत कार्य न करें। महीने भर वे कठिन नियमों के साथ उपवास करते हैं। बीमार, गर्भवती महिला, बुजुर्ग आदि को छोड़कर सभी मुसलमानों के लिए उपवास अनिवार्य होता है। वे अपने उपवास को समुदाय में एक-दूसरे के साथ इकट्ठा होकर तोड़ते हैं। सुबह का नाश्ता, या सुहूर (Suhoor), आमतौर पर दिन की पहली प्रार्थना से पहले 4:00 बजे होता है। इसके बाद पूरा दिन उपवास करने के बाद शाम का भोजन या इफ्तार (Iftar), सूर्यास्त की प्रार्थना या मघरेब (Maghreb) के बाद लगभग 7:30 बजे किया जा सकता है। चूंकि पैगंबर मोहम्मद ने खजूर और एक गिलास पानी के साथ अपना उपवास तोड़ा था, इसलिए मुसलमान सुहूर और इफ्तार दोनों समय पर खजूर का सेवन करते हैं। खजूर पोषक तत्वों से भरपूर व पचने में आसान होता है और लंबे उपवास के बाद शरीर को शर्करा प्रदान करता है।
रमजान के दौरान लोग अपने घरों को लालटेन या कंदील, तारों (Decorative Lights), अर्धचन्द्रमा, रोशनी इत्यादि से सजाते हैं। आधा चाँद इस्लाम धर्म से महत्वपूर्ण रूप से जुड़ा हुआ है क्योंकि यह इस्लाम धर्म का प्रतीक है। रमजान के दौरान कंदील या लालटेन लगाने की परंपरा की उत्पति फातिमिद कैलिफेट (fatimid califate) के दौरान मिस्र से हुई है, जब ख़लीफ़ा अल-मुइज़-दीन अल्लाह (caliph al-Mu'izz-din Allah) की सत्ता का जश्न मनाने के लिए लोगों ने उनको बधाई देने के तौर पर कंदील या लालटेन का प्रयोग किया। इसी प्रकार से सितारों और अर्ध चाँद की रचना अल्लाह के द्वारा मानी जाती है। इसलिए इनका प्रयोग घरों और मस्जिदों को सजाने के लिए किया जाता है। हिन्दू तथा मुस्लिम धर्म में रखे जाने वाले उपवासों में काफी समानताएँ होती हैं। हिंदू धर्म में उपवास के 3 विकल्प होते हैं। पहला उपवास के दिन न तो पानी पीना और न ही कुछ खाद्य पदार्थ ग्रहण करना। दूसरा उपवास के समय जल पीना किन्तु भोजन न करना और तीसरा उपवास के समय फल, दूध जैसे साधारण खाद्य पदार्थों को या तो सुबह खाना या फिर शाम के समय खाना। कुछ उपवासों में केवल सुबह और शाम के समय ही कुछ खाने की अनुमति होती है। दोनों ही धर्मों के उपवासों में सतर्कता बरतनी होती है। हिन्दू धर्म में भी पहले अमावस्या के दिन से लेकर अगली अमावस्या तक मासिक उपवास किया जाता था। पहले दिन एक निवाला, दूसरे दिन 2 निवाला, तीसरे दिन तीसरा निवाला, इस तरह से 15 दिन तक भोजन किया जाता था। 16 वें दिन फिर 14 निवाले, फिर अगले दिन 13 निवाले इस तरह का क्रम चलता रहता था। अब ऐसा बहुत कम ही किया जाता है। मुसलमानों और हिंदुओं दोनों के लिए उपवास के नियमों में भी समानता होती है। जैसे यदि कोई सक्षम नहीं है, या छोटे, बूढ़े, बीमार, गर्भवती महिला के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वह उपवास करे। ब्रश या मुंह धोते समय जो पानी गलती से गले से नीचे उतर जाता है, उसे व्रत तोड़ने के रूप में नहीं गिना जाता। उपवास तोड़ने का एक समय होता है जिसकी गणना चंद्रमा के आधार पर की जाती है।
दुनिया के अनेक हिस्सों में रमजान के पवित्र महीने को विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। इंडोनेशिया में रमजान के एक दिन पहले लोग एक सफाई अनुष्ठान करते हैं जिसमें वे खुद को साफ़ करने के लिए पदुसन (padusan) नामक परम्परा को निभाते हैं जिसमें वे पवित्र झरनों में सिर से लेकर पैर तक डुबकी लगाते हैं। मध्य पूर्व के कई देशों में, रमजान के महीने के दौरान उपवास के अंत का संकेत देने के लिए तोपें चलाई जाती हैं। कई खाड़ी देशों में हक अल-लैला (haq al laila) की परंपरा रमजान से एक महीने पहले शाबन (sha’ban) की 15 वीं तारीख को होती है, जिसमें बच्चे चमकीले कपड़ों में सजे हुए अपने पड़ोस में घूमते हुए और मिठाई आदि एकत्रित करते हुए पारंपरिक स्थानीय गीत गाते हैं। पाकिस्तान में रमजान के महीने के अंत और ईद अल-फितर (Eid-al-Fitr) को मनाने के लिए चाँद रात उत्सव मनाया जाता है। अपने अंतिम इफ्तार (iftar) के बाद, महिलाओं और लड़कियों का झुंड रंगीन चूडि़यों को खरीदता है और जटिल मेहंदी डिजाइनों (designs) के साथ अपने हाथों और पैरों को चित्रित करने के लिए स्थानीय बाज़ारों में जाता है। मिस्र में रमजान का स्वागत करने के लिए लोग रंगीन कंदील या लालटेन जलाते हैं, जो पवित्र महीने में एकता और खुशी का प्रतीक है। यद्यपि यह परंपरा धार्मिक होने की तुलना में अधिक सांस्कृतिक है, लेकिन यह आध्यात्मिक महत्व के साथ रमजान के पवित्र महीने के साथ दृढ़ता से जुड़ा हुआ है।
चित्र (सन्दर्भ):
1. मुख्य चित्र में रामजानकी पवित्र चाँद के समक्ष एक रमजानी को नमाज अदा करते हुए दिखाया गया है।, Prarang
2. दूसरे चित्र में रमजान और कुरान के पवित्र बंधन को उद्धृत करता हुआ एक चित्र है, जिसमें कुरान दिखाई गयी है।, Pexels
संदर्भ:
1. https://www.beliefnet.com/faiths/islam/the-origins-of-ramadan.aspx
2. https://www.nationalgeographic.com/culture/holidays/reference/ramadan/
3. https://www.marhaba.qa/the-origins-of-ramadan-traditions/
4. https://bit.ly/3cGSWCg
5. https://bit.ly/3cFZtgk
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