वर्तमान संकट हमें हमारे भूगोल पर पूर्णविचार करने का समय दे रहा है, जैसा कि हम जानते ही हैं कि वैश्वीकरण के प्रारूप ने न केवल विनिर्माण, जलयात्रा और विक्रय में तेजी लाई है, बल्कि इसने बड़े बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा उपयोग किए जाने वाले तेजी से बिकने वाली उपभोक्ता वस्तुओं में भी भारी लाभ और सम्पूर्ण समाज को पसंद की स्वतंत्रता प्रदान की है। वहीं अनिवार्य रूप से, विनिर्माण के लिए आवश्यक कच्चे माल को भी उनके मूल स्थान से बहुत अधिक खनिजों और कच्चे माल की निकासी के कारण पारिस्थितिक असंतुलन की चिंता किए बिना बड़ी मात्रा में उनके मूल स्थान से स्थानांतरित किया जाता रहा था। तो क्या पूंजीवाद में विकास की कोई सीमा नहीं है?
वहीं जहां 1970 के दशक में, विश्व भर में विस्तार और सहयोग करने वाले सभी प्रकार के व्यवसायों में तेजी देखी गई थी। यह विस्तार स्थानीय बाजारों को जोड़ने के दौरान राष्ट्रीय सीमाओं को पार कर रहा था और इसे वैश्वीकरण कहा जाता था। लेकिन वर्तमान समय में, हाइपरलोकल (Hyperlocal) नया वैश्विकी (Globalization) है!
पूंजीवाद का एक और सीमा संचालित मॉडल है, हाइपरलोकल। जैसे-जैसे स्मार्टफोन (smartphone) और इंटरनेट (internet) के विकास में विस्तार हुआ, वैसे-वैसे हाइपरलोकल संचलन का भी महत्व सामने आया है। जैसा कि आप जानते हैं, हम प्रारंग (Prarang) में लंबे समय से रामपुर, जौनपुर, मेरठ और लखनऊ में अपने पाठकों के लिए हाइपरलोकल प्रयासों की अधिवक्तान कर रहे हैं। हाइपरलोकल किसी भी स्थानीय संचालन पर लागू होता है जिसके उदाहरण आजकल ऑनलाइन (online) जगत में भी देखे जा सकते है।
वहीं जहां वर्तमान समय में सभी विपणन में व्यवसाय हाइपरलोकल हो रहे है, लेकिन इसके साथ ही यह बड़े व्यवसायों को इस बात पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है कि स्थानीय व्यवसायों में निवेश करके और अंततः समुदाय का समर्थन करके प्रत्येक भौगोलिक क्षेत्र के बारे में बता सकता है। यह न केवल उपभोक्ताओं, बल्कि कर्मचारियों, मित्रों और पड़ोसियों को यह बताने में मदद कर सकती है कि वे जिस समुदाय में रहते हैं, उसमें निवेश भी किया जाता है।
एक व्यवसाय के लिए ऑनलाइन मंच में शामिल होना भी एक शानदार तरीका है, इससे वे स्थानीय समुदाय को दर्शा सकते हैं कि वे उनके समुदाय में रुचि रखते हैं। हाइपरलोकल मीडिया (media) में पारंपरिक पत्रकारिता, ब्लॉगर्स (bloggers), नागरिक पत्रकार और वीडियो (vedio) और तस्वीरें साझा करने वाले लोग ऑनलाइन ग्रेपवाइन (online grapevine) में शामिल हैं। इसके दो प्रमुख आयाम - समय और भूगोल, जो उस समुदाय में रहने वाले लोगों की चिंताओं की ओर ध्यान केंद्रित करते हैं। आयाम सामग्री उपभोक्ता द्वारा समय और स्थान में कथित प्रासंगिकता या मूल्य के उपाय हैं। इन आयामों पर सामग्री का अंक जितना अधिक होता है, सामग्री उतनी ही प्रासंगिक हो जाती है और यह सामग्री व्यक्ति के लिए कम हो जाती है।
हाइपरलोकल सामग्री को उन लोगों या संस्थाओं द्वारा लक्षित या उपभोग किया जाता है जो आमतौर पर सड़क, पड़ोस, समुदाय या शहर के पैमाने पर एक अच्छी तरह से परिभाषित क्षेत्र के भीतर स्थित हैं। वहीं हाइपरलोकल सामग्री भी उचित समय में प्रासंगिक होनी चाहिए। हाइपरलोकल सामग्री के विकास की प्रकृति इन दो आयामों का अनुसरण करती है, इन दोनों आयामों को जोड़कर हमारे द्वारा पूरे इतिहास में हाइपरलोकल सामग्री के प्रकारों की पहचान की जा सकती है। अतीत में, हाइपरलोकल सामग्री भौगोलिक आयाम पर कम थी, जिसका अर्थ है कि सामग्री बड़े क्षेत्रों में बड़ी आबादी की केवल व्यापक जरूरतों को पूरा करती थी और समय के आयाम पर भी काफी कम थी।
संदर्भ :-
https://en.wikipedia.org/wiki/Hyperlocal
http://bit.ly/2PjAe9q
चित्र सन्दर्भ:
ऊपर दिए गए सभी चित्र प्रारंग के द्वारा लिए गए रामपुर शहर के दृश्य हैं।
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