औषधीय पौधे मनुष्य को प्रकृति की देन हैं जो हमें रोगमुक्त स्वस्थ जीवन जीने में मदद करते हैं। हजारों वर्ष पहले से पौधों को मनुष्यों द्वारा औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। पिछली पीढ़ियों से संचित अनुभव के परिणामस्वरूप, आज विश्व की सभी संस्कृतियों को जड़ी बूटी सम्बन्धी चिकित्सा का व्यापक ज्ञान है। वार्षिक रूप से पहचाने जाने वाले नए रसायनों में से दो तिहाई उच्च पौधों से निकाले जाते हैं और विश्व की 75% आबादी द्वारा चिकित्सा और रोकथाम के लिए पौधों का इस्तेमाल किया जाता है।
पौधे माध्यमिक चयापचयों की एक विस्तृत श्रृंखला का एक मूल्यवान स्रोत होते हैं, जिनका उपयोग औषधीय, एग्रोकेमिकल्स (agrochemicals), स्वाद, सुगंध, रंग, जैव कीटनाशक और खाद्य योजक के रूप में किया जाता है। ऐसे ही लखनऊ में पाए जाने वाले लसोड़ा पेड़ के फल की प्रारंभिक फाइटोकेमिकल स्क्रीनिंग (phytochemical screening) करके इसमें तेल, ग्लाइकोसाइड, फ्लेवोनोइड्स, स्टेरोल्स, सैपोनिन, टेरानोइड्स, क्षाराभ, फेनोलिक एसिड, कौमारिन, टैनिन, रेजिन, गोंद और म्यूसिलेज की उपस्थिति का पता चला था। वहीं औषधीय अध्ययनों से पता चलता है कि लसोड़ा में पीड़ाहर, अनुत्तेजक, इम्यूनोमॉड्यूलेटरी (immunomodulatory), सूक्ष्मजीवनिवारक, एंटीपैरासिटिक (antiparasitic), कीटनाशक, हृदय, श्वसन, जठरांत्र और सुरक्षात्मक प्रभाव देखे जाते हैं।
लसोड़ा के पेड़ मुख्य रूप से एशिया में, साथ ही विश्व भर में विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उचित प्रकार के भूभौतिकीय वातावरण में पाया जाता है। दक्षिण एशिया में, यह प्राकृतिक रूप से उगता है और पूर्व म्यांमार से पश्चिम अफगानिस्तान तक देखा जा सकता है। इसका निवास स्थान मैदानी इलाकों में समुद्र तल से लगभग 200 मीटर ऊपर से शुरू होता है और पहाड़ियों में लगभग 1,500 मीटर की ऊँचाई तक बढ़ता है। लसोड़ा पेड़ की छाल भूरे रंग की होती है जिसमें अनुदैर्ध्य और ऊर्ध्वाधर दरारे होते हैं। इस पेड़ को दूर से ही आसानी से इसकी दरारें देख कर पहचाना जा सकता है। वहीं मार्च-अप्रैल के दौरान लसोड़ा के पेड़ में फूल खिलने लग जाते हैं, जो ज्यादातर सफेद रंग के होते हैं। अलग-अलग फूल लगभग 5 मिमी व्यास के होते हैं। वहीं इसके ताजे पत्तियों को मवेशियों के लिए चारे के रूप में उपयोग किया जाता है। साथ ही इस पेड़ में फल आमतौर पर जुलाई-अगस्त के दौरान दिखाई देने लगता है, जो अधिकांश हल्का पीला-भूरा या यहां तक कि गुलाबी रंग के होते हैं।
लसोड़ा पेड़ का खाद्य उपयोग:
1. इसके परिपक्व फल में एक मीठा, चिपचिपा, श्लेष्मयुक्त गूदा होता है, जिसका उपयोग शहद को मीठा बनाने के लिए किया जाता है। वहीं बिना पके हुए फल सब्जी के रूप में खाए जाते हैं।
2. इसके बीज का स्वाद कुछ हद तक पहाड़ी बादाम की तरह होता है।
3. इसके फूलों को सब्जी की तरह बना कर सेवन किया जाता है।
लसोड़ा पेड़ का औषधीय उपयोग:
1. छाल, पत्तियों और फलों में औषधीय गुण होते हैं, इनका उपयोग विभिन्न प्रकार से मूत्रवर्धक, जननाशक के रूप में और पेट में दर्द, खांसी और छाती की शिकायतों के उपचार में किया जाता है।
2. बुखार के उपचार में छाल के रस का सेवन किया जाता है। वहीं नारियल के तेल के साथ मिलाकर इसे पेट के दर्द के इलाज में उपयोग किया जाता है।
3. हड्डियों के टूट जाने पर प्लास्टर लगाने से पहले लसोड़ा की छाल को पीसकर त्वचा पर लगाया जाता है, ताकि जल्दी सुधार हो सके। त्वचा रोगों के उपचार में पीसी हुई छाल को बाहरी रूप से उपयोग किया जाता है।
4. इसके पत्तों का उपयोग नींद की बीमारी के उपचार के रूप में किया जाता है और किसी कीट के काटने पर लोशन के रूप में लगाया जा सकता है।
5. वहीं पत्तियों के रस को सिरदर्द से राहत दिलाने के लिए माथे पर लगाया जाता है। साथ ही पत्तियों को घावों, दाग और व्रण पर भी लगाया जा सकता है।
लसोड़ा में एक विषैला पदार्थ ट्यूमरजेनिक पाइरोलिज़िडिन (tumorigenic pyrrolizidine) क्षाराभ पाया जाता है। इसलिए किसी भी प्रकार के रोग में लसोड़ा का उपयोग करने से पहले चिकित्सक से सलह जरूर लें।
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Cordia_myxa#Fruit
2. http://tropical.theferns.info/viewtropical.php?id=Cordia+myxa
3. https://bit.ly/2V3a9yi
चित्र सन्दर्भ:
1. New York Public Library – Cordia myxa
2. Pexels – Cordia Myxa
3. Pexels – Cordia Myxa
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