हम जब भी मंदिरों में दर्शन या पूजा के लिए गये हैं तो हमें वहां सामान्य रूप से देखी जाने वाली मुख्य प्रतिमा के साथ विभिन्न मातृ देवियों की प्रतिमाएं भी देखने को मिलती हैं। दरसल मातृकाएँ आदि पराशक्ति हैं। मातृकाओं का विभिन्न देवों की शक्तियों से उद्भव हुआ है, जैसे ब्रह्मा से ब्रह्माणी, विष्णु से वैष्णवी, शिव से महेश्वरी, इंद्र से इंद्राणी, स्कंद से कौमारी, वराह से वाराही और देवी से चामुंडा का उद्भव माना जाता है। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार, मातृका पूजन की परंपरा को वैदिक काल और सिंधु घाटी सभ्यता से ही माना जाता था। वैसे ऋग्वेद में सात माताओं का ज़िक्र भी मिलता है जिनकी देखरेख में सोम की तैयारी होती है। साथ ही पांचवीं शताब्दी तक, इन सभी देवियों को तांत्रिक देवियों के रूप में रूढ़िवादी हिंदू धर्म में शामिल किया गया था। कुछ विद्वानों का मानना है कि मातृकाएं अनार्य परंपरा की ग्राम्य देवियां हैं, तो वहीं दूसरी तरफ एक धारणा यह भी है कि यक्ष परंपरा से प्रेरित होकर मातृकाओं का उद्भव हुआ होगा।
इन मातृकाओं की संख्या को लेकर भी अलग-अलग मत हैं, एक मत के अनुसार इनकी संख्या सात है जिनके आधार पर इन्हें सप्तमातृका कहा जाता है। वहीं कुछ स्थानों पर यह अष्टमातृका के रूप में पूजित हैं, विशेषकर नेपाल में। हिन्दू धर्मग्रंथों जैसे महाभारत, पुराणों (जैसे वराह पुराण, अग्नि पुराण, मत्स्य पुराण, विष्णुधर्मोत्तर पुराण) और देवी महात्म्य और आगमों में भी मातृकाओं की प्रतीकात्मक विशेषताओं का वर्णन किया गया है।
मातृकाओं को विभिन्न देशों में पूजा जाता है, जैसे:
1) भारत में : भारत में, सप्तमातृकाओं के तीर्थस्थल "जंगल" में स्थित हैं, जो आमतौर पर झीलों या नदियों के पास मौजूद होते हैं और यहाँ सात देवियों की मूर्तियाँ सिंदूर से लिप्त पत्थरों से बनी होती हैं। महिलाओं द्वारा पिथौरी अमावस्या के दिन सप्तमातृका की पूजा 64 योगिनियों (जिन्हें चावल के आटे की छवियों या सुपारी नट से बनाया जाता है) के साथ की जाती है। देवी की पूजा फल और फूल और मंत्रों के साथ की जाती है।
2) नेपाल में : मान्यताओं के अनुसार मातृका हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म दोनों में शहर की रक्षक और व्यक्तिगत रक्षक के रूप में कार्य करती हैं। काठमांडू और उसके आस-पास बनी अष्टमातृका के मंदिरों को शक्तिशाली पूजा स्थल माना जाता है। इन मंदिरों में, मातृका की पूजा उनके अनुयायियों (गण) के साथ पत्थर की मूर्तियों या प्राकृतिक पत्थरों के रूप में की जाती है। जबकि कस्बों और गांवों में मौजूद मंदिरों में, उन्हें पीतल की छवियों में दर्शाया जाता है।
मातृकाओं के अनुष्ठान और पूजा की विधि निम्न है:
नाट्य शास्त्र में मंच की स्थापना से पहले और नृत्य प्रदर्शन से पहले मातृकाओं की पूजा करने की सलाह दी गयी है। वहीं देवी पुराण के अध्याय 90 में इंद्र द्वारा घोषणा की गई कि सभी देवताओं में मातृकाएँ सर्वश्रेष्ठ हैं और उनकी पूजा शहरों, गाँवों, कस्बों और घरों में की जानी चाहिए। मत्स्य पुराण और देवी पुराण में कहा गया है कि मातृकाओं को उत्तर की दिशा में मुख करके और मंदिर-परिसर के उत्तरी भाग में रखा जाना चाहिए। सप्तमातृका को व्यक्तिगत और आध्यात्मिक नवीकरण के लिए पूजा जाता है जहाँ मुक्ति अंतिम लक्ष्य होती है। इसके साथ-साथ इन्हें शक्तियों और नियंत्रण और सांसारिक इच्छाओं के लिए पूजा जाता है।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Matrikas
2.https://www.templepurohit.com/sapta-matrika-7-incarnation-goddess-shakti/
चित्र सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Matrikas#/media/File:Ashta-Matrika.jpg
2. https://www.wallpaperflare.com/search?wallpaper=durga
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