मानव के मस्तिष्क में कैसे पैदा होता है भय?

लखनऊ

 31-03-2020 03:45 PM
विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

।।यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः। एवा मे प्राण मा विभेः।।- अथर्ववेद

अर्थ : जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो। उपरोक्त कथन वर्तमान समाज के लिए अत्यंत ही महत्वपूर्ण है और यह मनुष्य के जीवन को एक ही पंक्ति मं पिरो कर प्रस्तुत कर रहा है। डर या भय दर्द को बढ़ाने वाला होता है, यह मनुष्य को एक स्थान पर बाँध कर रख देता है तथा उसे विचलित कर देता है। डर की कई कल्पनाएँ हैं जो कि मनुष्य जीवन के लिए कतई ही उचित नहीं हैं और उसी परिकल्पना के विषय में हम इस लेख में पढ़ेंगे।

चेतना का उत्तम रहना मनुष्य के लिए एक अत्यंत ही सुखद विषय है। डर क्या है, इसे हमें समझने की आवश्यकता है और हमारे डर की वजह क्या है इसे भी हमें समझने की आवश्यकता है। डर एक ऐसी मनोधारणा है जो कि हमें कई सारी मानसिक परेशानियां प्रदान कर देती है और ऐसी ही परेशानियों में से एक है ‘एमिगडाला हाइजैक’ (Amygdala Hijack)। इसका मतलब है कि यह मनुष्य को तर्कविहीन दृश्य प्रस्तुत करता है और यह इसलिए होता है क्यूंकि व्यक्ति अपने दिमाग को इस कदर भय ग्रस्त कर देता है कि उसका मस्तिष्क पूर्ण रूप से शून्य की तरह व्यवहार करने लगता है। यह डर ही है जो कि लोगों को कई बार कुछ विनाशकारी कदम उठाने के लिए मजबूर कर देता है। मनुष्य एक भावनात्मक प्राणी है जो कि अत्यंत ही शीघ्र प्रतिक्रिया देने लगता है और यही प्रतिक्रिया दुःख और डर को जन्म देती है।

वर्तमान समय में जिस प्रकार से दुनिया का माहौल कोरोना (Corona) की वजह से बिगड़ा हुआ है, यह भी हमें एक प्रकार के डर की ओर भेज रहा है और इस कारण कई लोग डर के वशीभूत होकर ऐसे कदम उठाने को मजबूर हो जा रहे हैं जो कि उन्हें ही नहीं बल्कि और सैकड़ों लोगों को दिक्कत प्रदान कर सकते हैं। हम जब किसी वस्तु को बिना समझे उसका अध्ययन करना शुरू करते हैं तो एक ऐसी धारणा हमारे जीवन में तैयार होना शुरू हो जाती है जो कि हमको डर के माहौल की ओर धकेलती है और यही डर हमें नियंत्रित करना शुरू कर देता है जिस कारण से हमारा मस्तिष्क सिकुड़ना शुरू हो जाता है और हम अपने परिवेश को जेल (Jail) रुपी बना लेते हैं। लेकिन जब हम शांत भाव से बैठते हैं और इस डर के बारे में सोचते हैं तो हमें फिर महसूस होता है कि जिस डर की हम परिकल्पना कर रहे थे वह तो निराधार है और यह मात्र हमारी नकारत्मक कल्पनाओं की ही उपज है।

वैसे यदि देखा जाए तो एमिगडाला हमारे मस्तिष्क से जुड़ा हुआ होता है तथा यह तब कार्यान्वित होता है जब हम किसी खतरे का सामना कर रहे होते हैं और यह तेज़ी से स्वचालित होकर ऐसा निष्कर्ष निकालता है कि यहाँ कोई डर नहीं है। परन्तु जब हम गहराई में बात करते हैं तो यह सत्य है कि एमिग्डाला डर से जुड़ा हुआ है, क्यूंकि इसकी प्रक्रिया में कई पुराने दर्द आदि भी दिखाई दे जाते हैं जो कि व्यक्ति को और डर के अँधेरे में धकेल देते हैं। डर के समय बचने के लिए एक सबसे उत्तम उपाय है कि संयम और शान्ति से विचार करें और जीवन की शैली को बिना डर के चलने के लिए प्रेरित करें।

सन्दर्भ:
1.
https://www.patrickwanis.com/antidote-fear/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Amygdala_hijack



RECENT POST

  • होबिनहियन संस्कृति: प्रागैतिहासिक शिकारी-संग्राहकों की अद्भुत जीवनी
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:30 AM


  • अद्वैत आश्रम: स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं का आध्यात्मिक एवं प्रसार केंद्र
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:32 AM


  • जानें, ताज महल की अद्भुत वास्तुकला में क्यों दिखती है स्वर्ग की छवि
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:25 AM


  • सांस्कृतिक विरासत और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध अमेठी ज़िले की करें यथार्थ सैर
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:34 AM


  • इस अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस पर जानें, केम्ब्रिज और कोलंबिया विश्वविद्यालयों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:33 AM


  • क्या आप जानते हैं, मायोटोनिक बकरियाँ और अन्य जानवर, कैसे करते हैं तनाव का सामना ?
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:20 AM


  • आधुनिक समय में भी प्रासंगिक हैं, गुरु नानक द्वारा दी गईं शिक्षाएं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:32 AM


  • भारत के सबसे बड़े व्यावसायिक क्षेत्रों में से एक बन गया है स्वास्थ्य देखभाल उद्योग
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:22 AM


  • आइए जानें, लखनऊ के कारीगरों के लिए रीसाइकल्ड रेशम का महत्व
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:26 AM


  • वर्तमान उदाहरणों से समझें, प्रोटोप्लैनेटों के निर्माण और उनसे जुड़े सिद्धांतों के बारे में
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:32 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id