अपने दैनिक जीवन में हम कॉपर (Copper) या तांबे या कांस्य से बनी हुई कई वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। इन वस्तुओं का प्रयोग आज से नहीं बल्कि वर्षों पहले से किया जा रहा है, जिसका मुख्य कारण इसकी आसानी से उपलब्धता तथा इसमें लाभदायक गुणों की उपस्थिति है। माना जाता है कि यह मनुष्य द्वारा उपयोग में लायी गयी प्रथम धातु है। पहले मानव विभिन्न प्रकार के उपकरण बनाने के लिए पत्थरों का इस्तेमाल करता था किंतु जब उसे तांबे का ज्ञान हुआ तब कांस्य युग की शुरूआत हुई। यूं तो प्राचीन काल में सोने और चांदी जैसी धातुएं भी धरती पर मौजूद थी किंतु कम उपलब्धता के कारण इनका बहुत अधिक प्रयोग नहीं किया जा सका। तांबे की सबसे खास बात यह है कि इसे आसानी से मोड़ा जा सकता है और किसी भी आकार में ढाला जा सकता है। दुनिया के सात अजूबों में से एक अजूबा मिस्र का तीसरी सहस्राब्दी ई.पू. पुराना फराओ खुफु (Pharaoh Khufu) का पिरामिड (Pyramid) है। फराओ का मकबरा 23,00,000 पत्थर के ब्लॉक (Block) से बनाया गया था तथा इन पत्थरों को फिनिशिंग (Finishing) तांबे के औजारों से दी गई थी।
तांबे की खोज के बाद लोगों ने सीखा कि अयस्कों से तांबा कैसे निकाला जाता है। धीरे-धीरे आभूषणों और अन्य वस्तुओं के निर्माण के लिए तांबा तथा जस्ता को मिलाकार मिश्र धातुएं तैयार की गयीं। कुछ ऐसी पांडुलिपियों की भी खोज की गयी, जिनमें तांबे से सोना बनाने के रहस्यों से संबंधित जानकारियों का उल्लेख प्राप्त हुआ। दरअसल तांबे और जस्ते के मिश्रण से पीतल प्राप्त होता है, जो कि सोने जैसा प्रतीत होता है। समय के साथ-साथ तांबे की मांग बढ़ती गयी जिससे इसका खनन भी बढ़ा। औद्योगिक तौर पर तांबे को गलाने का पहला प्रयास 8वीं शताब्दी की शुरुआत में किया गया था, जब तांबे के अयस्क की खोज रूस के यूरोपीय भाग के उत्तर में की गई थी। भारत में तांबे का उत्पादन वैश्विक उत्पादन का केवल 2% है। इसकी संभावित आरक्षित सीमा 60,000 वर्ग किमी (विश्व रिज़र्व का 2%) तक सीमित है, जिसमें 20,000 वर्ग किमी क्षेत्र अन्वेषण के अधीन है। चीन, जापान (Japan), दक्षिण कोरिया (South Korea) और जर्मनी (Germany) के साथ भारत तांबे के सबसे बड़े आयातकों में से एक है।
भारत में तांबे का खनन ऐतिहासिक रूप से 2000 वर्ष से अधिक पुराना है, किंतु औद्योगिक मांग को पूरा करने के लिए इसका उत्पादन 1960 के दशक के मध्य से किया जा रहा है। आंध्र प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मेघालय, उड़ीसा, राजस्थान आदि में तांबे की प्रमुख खदानें पायी जाती हैं। तांबे का महत्वपूर्ण गुण ये है कि यह रोगाणुरोधी है। यह जीवाणु और विषाणु को कभी-कभी कुछ पल में ही आसानी से मार देता है। हाथों को लगातार तांबे के सम्पर्क में रखने से हाथों को साफ रखा जा सकता है। एक अध्ययन के अनुसार 1832, 1849 और 1852 में पेरिस (Paris) में फैले कोलेरा (Cholera) से वे 400 से 500 लोग अप्रभावित थे जो तांबे के कारखानों में काम कर रहे थे। इसके अलावा वे लोग भी सुरक्षित बचे थे जो तांबे के वाद्ययंत्र बजाते थे। यदि तांबे की वस्तुओं का प्रयोग अस्पताल, भारी ट्रेफिक (Traffic) वाले क्षेत्रों आदि में किया जाता है, तो लोगों के स्वास्थ्य सुधार में सहायता की जा सकती है। रोग़ाणु कठोर सतह पर 4 से 5 दिन तक ज़िन्दा रहते हैं। जब हम सतह को छूते हैं तो यह हमारी नाक, मुंह, आंख के द्वारा शरीर में प्रवेश कर जाते है तथा हमें प्रभावित करते हैं। जब रोगाणु तांबे की सतह पर आता है, तब तांबा विद्युत आवेशित आयन (Ion) उत्सर्जित करता है, जोकि रोगाणु की बाह्य झिल्ली को नष्ट कर उसके डीएनए (DNA) या आरएनए (RNA) को भी नष्ट कर देते हैं।
तांबे का पहला दर्ज चिकित्सा उपयोग सबसे पुरानी पुस्तकों में से एक स्मिथ पैपिरस (Smith Papyrus) में मिलता है, जिसे 2600 और 2200 ई.पू. के बीच लिखा गया था। इसमें यह उल्लेखित है कि तांबे का उपयोग सीने के घावों और पीने के पानी को कीट-मुक्त करने के लिए किया जाता था। मिस्र और बेबीलोन (Babylon) के सैनिक संक्रमण को कम करने के लिए अपने खुले घावों की सतह को कांसे की तलवारों (जोकि तांबे और टिन से बनी होती थी) से छीलते थे। अध्ययनों से पता चला है कि तांबा उन रोगाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है जो हमारे जीवन को सबसे अधिक खतरे में डालते हैं। यह कई रोगाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है, जिनमें नोरोवायरस (Norovirus), एमआरएसए (MRSA), ई कोलाई (E. coli) के विषाणुयुक्त प्रकार (Virulent strains), तथा कोरोना वायरस (Coronaviruses) – (संभवतः वो नया प्रकार जो वर्तमान में COVID-19 महामारी का कारण बन रहा है), शामिल हैं। अध्ययन के अनुसार तांबे की सतह SARS-CoV2 को लगभग चार घंटे में ही मार सकती है। यह कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है। प्राचीन काल के दौरान भी, भारतीय पुजारी पानी का भंडारण अपने तांबे के कमंडल में करते थे जिससे पानी लंबे समय तक ताज़ा रहता था। इस पानी को ताम्र जल के रूप में जाना जाता है। भारत सहस्राब्दियों से तांबे के बर्तनों का उपयोग कर रहा है। अब भी, भारतीय दैनिक अनुष्ठान करने के लिए ताम्बा पंचपात्र का उपयोग करते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, तांबा तीन दोषों- वात, कफ और पित्त के बीच संतुलन बनाए रखने तथा बढ़ती उम्र के लक्षणों को नियंत्रित करने में भी मदद करता है।
संदर्भ:
1. https://archive.org/details/VenetskyTalesAboutMetals/page/n100/mode/2up)
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Copper_production_in_India
3. https://bit.ly/2U2mQu2
4. https://lucknow.prarang.in/posts/2509/Use-of-copper-from-eras
5. https://www.vice.com/en_us/article/xgqkyw/copper-destroys-viruses-and-bacteria-why-isnt-it-everywhere
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