लखनऊ वैसे तो अपने कई अंदाजों के लिए जाना जाता है जैसे की यहाँ का कबाब, यहाँ की नवाबियत, यहाँ के वास्तु के नमूने परन्तु एक और ऐसी बात है लखनऊ में जो की इसे सबसे भिन्न बनाती है और वह है यहाँ पर पास में ही बसे चिनहट के बर्तन। चिनहट के बर्तन आज दुनिया भर में जाने जाते हैं। यहाँ पर मिटटी के बर्तनों को बनाया जाता है। जैसे की हम सब जानते हैं की भारत में बर्तन बनाने की परंपरा ताम्र पाशाणिक काल से ही आ चुकी थी। उस समय से लेकर हड़प्पा काल तक भारत ही नहीं बल्कि विश्व भर में बर्तन बनाने की परंपरा का सूत्रपात हो चुका था। हड़प्पा काल के बाद गंगा के मैदानी भाग में कई और प्रकार के बर्तनों ने जन्म लिया जैसे की उत्तरी काली लेपित मृद्भांड और धूसर मृद्भांड परंपरा आदि। इस लेख में हम चिनहट के मिटटी के बर्तनों के विषय में पढेंगे और साथ ही में इसके व्यापार और चीनी मिटटी के बर्तनों के विषय में भी जानकारी इकट्ठी करेंगे।
चिनहट के विषय में जानने से पहले हमें चीनी मिटटी के बर्तन के विषय में जानना अत्यंत आवश्यक है। चीनी मिटटी के विषय में यदि हम पढ़ते हैं तो हमें पता चलता है की इसका जन्म चीन से सम्बंधित है। इस बर्तन का इतिहास शंग राजवंश से जुड़ा हुआ है जिसे की प्रारम्भिक बर्तन बनाने वाला माना जाता है। कालांतर में हान राजवंश ने इस कला को और निखारा तथा परिक्रिष्ट चीनी मिटटी के बर्तनों को जन्म दिया। यह कला चीन में विभिन्न राजवंशों के साथ बढती गयी और परिक्रिष्ट होती गयी। कालांतर के राजवंशों में मुख्य सुई और तांग राजवंश थें। 10 वीं शताब्दी में एक अन्य राजवंश का सूत्रपात हुआ जिसे की सांग राजवंश के रूप में जाना जाता है इस राजवंश ने चीनी मिटटी के बर्तनों को कला का ओहदा प्रदान किया और इसे सम्मानित करने का भी कार्य किया। सिल्क रूट से इस बर्तन का प्रसार बड़ी संख्या में होना शुरू हुआ था तथा भारत में भी यह इसी प्रकार से आया था। यह बर्तन सिल्क रूट के माध्यम से भी निर्यातित किया जाने लगा और इसी प्रकार से चीनी मिटटी की पहुँच पूरे यूरोप में भी पहुँच गयी तथा भारत में भी। तमाम देशों में यह बर्तन ही नहीं पहुंचा बल्कि इसको बनाने की विधि भी और इसी के साथ यह पूरे विश्व भर में फ़ैल गयी।
चिनहट मिटटी के बर्तन बनाने के केंद्र के रूप में 1970 के दशक में उभर कर सामने आया था, यहाँ पर कई दशकों से यह मिटटी के बर्तन बनाने का कारोबार पनप रहा था लेकिन यह 70 के बाद ही एक पहचान बनाने में सफल हो पाया। चिनहट आज वर्तमान में भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने का कार्य कर रहा है। यहाँ की बनी हुयी मिटटी के बर्तन अपनी एक अलग ही कहानी प्रस्तुत करते हैं यह कहानी है खूबसूरती की यह कहानी है कलाकारी की। यह व्यापार ही यहाँ के कुम्भारों के रोजी रोटी का इन्तेजाम करता है। चिनहट के मिटटी के बर्तन की विशेषता यह है की यह पूर्ण रूप से हस्तनिर्मित होता है तथा इसे बनाने में किसी भी प्रकार के संयंत्र का प्रयोग नहीं किया जाता है। यहाँ के बर्तन बड़े नाजों से सजाये और सवारे जाते हैं जिसकी चमक इन बर्तनों पर हमें देखने को मिल जाती है। चिनहट में विभिन्न प्रकार के बर्तनों को बनाया जाता है। पूरे विश्व भर में चीनी मिटटी के बर्तन तीन तरीकों से बनाए जाते हैं जिसमे गाढ़ा घोल, मुलायम घोल और बोन चाइना शामिल हैं। इन बर्तनों को बनाने के मुख्य रूप से चार चरण होते हैं जैसे की बर्तन का निर्माण करना, दूसरा है उस बर्तन पर चमक के लिए मिटटी का लेप लगाना, तीसरा चरण है उस बर्तन को सजाना तथा उसमे रंग भरना तथा अंतिम चरण है उसको भट्टी में पकाना। इतनी लम्बी प्रक्रिया के बाद ही एक चीनी मिटटी का बर्तन तैयार होता है।
सन्दर्भ :
1. https://www.swadesi.com/news/chinhat-pottery/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Porcelain
3. http://www.arthistory.net/porcelain/
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