इस्लाम में कदर की अवधारणा और इससे जुड़े विभिन्न मत

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
14-03-2020 10:00 AM
इस्लाम में कदर की अवधारणा और इससे जुड़े विभिन्न मत

इस्लाम वर्तमान समय में एक ऐसे धर्म के रूप में निखर कर सामने आया है जो कि एक अल्पकाल में ही विश्व के एक बड़े स्थान पर प्रसार कर गया। आज वर्तमान समय में इस्लाम एक मुख्य धर्म के रूप में उभर रहा है। इस्लाम की मुख्य पुस्तक कुरान है जिसमें कई शिक्षाएं दी गयी हैं। इसी के आधार पर इस्लाम की रूपरेखा लिखी गयी है। इस्लाम में ‘कदर’ की धारणा का प्रतिपादन किया गया है। इस लेख में हम कदर के विषय में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।

कदर का अर्थ है भाग्य, दिव्य आज्ञा, पूर्वनियति आदि। इस्लाम में ईश्वरीय भाग्य की धारणा एक बड़े पैमाने पर प्रचलित है तथा यह इस्लाम के 6 प्रमुख लेखों में से एक है। कदर को एक और शब्द से मापा जाता है और वह है अल-कद्र। अल-कद्र का शाब्दिक अर्थ है दिव्य शक्ति। कुरान या इस्लाम में माना जाता है कि सम्पूर्ण सृष्टि के रचनाकार और उसकी सम्पूर्ण शक्ति को समेट कर रखने वाले अल्लाह हैं। परन्तु साथ ही यह भी माना जाता है कि मनुष्य अपने कर्मों के लिए स्वयं ज़िम्मेदार है। यह एक विवाद का विषय बन गया क्योंकि यदि अल्लाह के पास हमारे ऊपर काबू नहीं है, तो उन्हें क्यों पूजा जाये और यदि हमारे पास अपने कर्मों पर कोई काबू नहीं है, तो कोई भी व्यक्ति कुछ अच्छा करने का ज़िम्मा क्यों ले? प्रारंभिक इस्लामी इतिहास की बात की जाए तो यह प्रश्न एक अत्यंत ही विवाद का विषय था तथा धार्मिक और धर्मनिर्पेक्ष्य दोनों कारणों से इतिहास का भी एक मुद्दा रहा था। प्राचीन काल में अरस्तु ने दो हज़ार साल पहले इस विषय को गंभीरता से लिखा था क्यूंकि ब्रह्माण्ड और उसकी उत्पत्ति, ख़ुशी, मानव स्वतंत्रता आदि को समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है।

दुनिया भर में इस विषय को लेकर कई संदेह हैं और इस्लाम में भी इस विषय को लेकर संदेह हुआ। इस्लाम में अल कद्र को विद्वानों ने अलग-अलग तरह से परिभाषित किया है। हांलाकि ये एक दूसरे के विरोधाभास लगते हैं परन्तु ये अलग-अलग कथन एक ही वास्तविकता के भिन्न पहलू हैं। कदर अकीदह के पहलुओं में से एक है, इसमें कहा जाता है कि अल्लाह ने सभी के अच्छे बुरे कर्मों को मापा है और इससे यह भी सत्य होता है कि अल्लाह किसी को अपनी इच्छा से हस्तक्षेप नहीं करता और मनुष्यों को वह मजबूर भी नहीं करता किसी कार्य को करने के लिए। वह सिर्फ यह मापता है कि एक व्यक्ति किस प्रकार के कार्य करता है। कुरान में इस विषय पर कई आयतें मौजूद हैं जो कि इस विषय पर विस्तार से प्रकाश डालती हैं। कदर को लेकर दो समूह प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से जबरिया का मत है कि मनुष्यों का अपने कार्य पर कोई नियंत्रण नहीं है और सब कुछ अल्लाह द्वारा निर्धारित होता है। वहीं दूसरा समूह जो कि कदरिया है, वे कहते हैं कि जो भी कार्य मनुष्य करता है वह उसका अपना निर्णय होता है और उसमें अल्लाह का कोई हस्तक्षेप नहीं होता। इस विषय पर सुन्नी और शिया दोनों समुदायों के अपने मत हैं। कदर को लेकर चार प्रमुख बाते हैं- अल-इल्म, किताबत, मशियत और अल-खलक। इन्हीं के आधार पर कदर की पूरी धारणा की पृष्ठभूमि तैयार की जाती है।

इस्लाम में ‘तकदीर’ का भी एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण बिंदु है। तकदीर की धारणा के विषय में यदि हम देखें तो इसके अनुसार ईश्वर के पास ही सारी रचना की निपुणता है। तकदीर इस्लाम की मान्यता का एक अभिन्न अंग है तथा इसे कदर के ही एक हिस्से के रूप में देखा जा सकता है। इसी के कारण कई मुस्लिम यह मानते हैं कि जो भी हो रहा है और जो भी होगा वह अल्लाह के हाथ में है और वही सब कार्य करेगा। कुरान में भी इस विषय पर कई आयतें हैं जो तकदीर के विषय में ज्ञान प्रदान करती हैं।

सन्दर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Predestination_in_Islam
2. https://bit.ly/38O5JjU
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Taqdir
चित्र सन्दर्भ:
1.
https://www.needpix.com/photo/490219/away-junction-direction-fork-in-the-road
2. https://pixabay.com/it/photos/uomo-porta-fantasia-strada-3618420/