होली का त्यौहार एक अखंड परंपरा का अभिन्न अंग है, जिसमें दो विशेष बोध के साथ जीवन जीने के आदर्श-सूत्र हैं। फाल्गुन (February-March) के मास में पूर्णिमा की रात्रि से एक रात पहले होलिका दहन का उत्सव मनाते हैं, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा के माध्यम से हमें यही बोध दिया जाता रहा है। मनुष्य जीवन में ही यह सम्भावना है कि हम अपने भीतर रही बुराइयों, कमियों, दोषों को देखें, समझे और उनकी व्यर्थता समझ कर उनसे मुक्त हों। अवलोकन की अग्नि में हम जैसे-जैसे प्रवेश करते हैं, वैसे-वैसे हमारे भीतर के दोष समाप्त होते हैं और अच्छाई प्रकटती है। होलिका दहन के सामूहिक उत्सव का भी यही प्रतीक है कि हमारे भीतर रची बसी शुद्धि अब हमारी अशुद्धियों पर विजय प्राप्त करेगी।
होली के इस त्यौहार का दूसरा पहलू भी उत्सव से भरपूर है। होलिका दहन में अच्छाई की जब बुराई पर जीत हो जाती है तो अग्नि के सन्मुख और अग्नि की साक्षी में साधक यह प्रतिज्ञा लेता है कि अच्छाई के इस रंग में अब अपने साथ-साथ सभी को रंगने की समग्र कोशिश करेंगें। मनुष्य जीवन का यही सर्वशास्त्रमान्य उद्देश्य है कि पहले स्वयं अपने भीतर शुद्धता प्रकटाना और फिर उस शुद्धि के रंग में सभी को रंगना। इसलिए होली के दिन हम सभी को रंग में रंगते हैं। यह सभी आयोजन प्रतीकात्मक है — भारत की अध्यात्म परम्परा ईश्वर के रंग में रंगने की ही कोई न कोई उत्सवात्मक घोषणा है।
होली के पहलुओं के साथ ही साथ आज प्रारंग लेकर आया है एक ऐसा चलचित्र जो भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम की साक्षी वृन्दावन की धरती पर होली के रंगारंग उत्सव और लोगों के सौहार्दपूर्ण व्यवहार को प्रस्तुत किया गया है। इस चलचित्र को मिगेल सलस (Miguel salas) द्वारा प्रसारित किया गया है।
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