भारत की आध्यात्मिक भूमि ने कई धर्मों को जन्म दिया है, जैसे हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म। इन सभी धर्मों के अलावा भारत में इस्लाम और ईसाई धर्म भी आए, जिससे भारत एक विविध धर्मों वाला देश बन गया। हालांकि विगत कुछ समय से हिन्दू-मुस्लिम एकता एक चिंता का विषय बना रहा है क्योंकि समय के साथ विचारों के न मिलने के कारण इन दोनों धर्मों के बीच आपसी द्वेष और शत्रुता उत्पन्न होने लगी थी। तभी मानवीय अज्ञानता और आपसी द्वेष और शत्रुता को हटाने के लिए गंभीर धार्मिक विचारकों के समूह ने सूफी और भक्ति आंदोलन से लोगों को भगवान और धर्म के बारे में जागृत किया। उन्होंने हिंदुओं और मुसलमानों के बीच भाईचारा, प्रेम और दोस्ती स्थापित करने के लिए हर संभव प्रयास करे। सूफी आंदोलन 14वीं से 16वीं शताब्दी का सामाजिक-धार्मिक आंदोलन था। इस आंदोलन के प्रतिपादक अपरंपरागत मुस्लिम संत थे जिन्होंने भारत के वेदांत दर्शन और बौद्ध धर्म का गहन अध्ययन किया था।
उन्होंने भारत के विभिन्न धार्मिक ग्रंथों को पढ़ा और भारत के महान संतों और सिद्ध पुरुषों के संपर्क में आए। साथ ही उन्होंने भारतीय धर्म को बहुत निकटता से देखने का प्रयास किया और इसके आंतरिक मूल्यों को भी महसूस किया। तदनुसार उन्होंने इस्लामिक दर्शन का विकास किया जिसने अंत में सूफी आंदोलन को जन्म दिया। सूफी आंदोलन इसलिए इस्लाम पर हिंदू प्रभाव का परिणाम था। इस आंदोलन ने मुसलमानों और हिंदुओं दोनों को प्रभावित किया और इस प्रकार, दोनों के लिए एक सामान्य मंच भी प्रदान किया। उन्हें सूफी इसलिए कहा जाता था क्योंकि वे अपनी गरीबी के कारण ‘सूफ’ (ऊन) के वस्त्र पहनते थे। इस प्रकार सूफी नाम सूफ शब्द से लिया गया। वे प्रेम को ईश्वर तक पहुंचने का एकमात्र साधन मानते हैं। पाकिस्तान और भारत में सूफी और भक्ति परंपरा क्रमशः इस्लाम और हिंदू धर्म के भीतर से दो ऐसी प्रवृत्तियाँ हैं, जो संप्रदायों के बंटवारे से ऊपर उठकर मानवता की एकता पर केंद्रित हैं। हमने कबीर, तुकाराम, नरसी मेहता, शंकर देव, लाल डेढ़ जैसे लोगों की समृद्ध परंपराओं को स्पष्ट रूप से हिंदू परंपरा के भीतर से देखा है, जबकि निज़ामुद्दीन औलिया, मोइनुद्दीन चिश्ती, ताजुद्दीन बाबा औलिया अजान पीर, नूरुद्दीन नूरानी (जिन्हें नंद ऋषि भी कहा जाता है) एक स्पष्ट सूफी परंपरा के विचारधारक थे और अन्य ऐसे ही कई महान व्यक्तियों से भक्ति और सूफी स्वयं गहरे रूप से जुड़े हुए हैं।
वहीं संत गुरु नानक देव जी द्वारा भी हिन्दू-मुस्लिम धर्म की एकता को बनाने के लिए विभिन्न प्रयास किए गए थे। उन्होंने इस्लाम के ज्ञान को जानने के लिए मक्का तक की यात्रा की और हिंदू धर्म के आध्यात्मिक नैतिक पहलुओं को जानने के लिए काशी गए थे। उनके पहले अनुयायी भाई मर्दाना थे और मियाँ मीर को पवित्र सिख तीर्थ के स्वर्ण मंदिर की नींव रखने के लिए सम्मानपूर्वक आमंत्रित किया गया था। सूफीवाद ने दक्षिण एशिया में धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन पर एक प्रचलित प्रभाव छोड़ा था। इस्लाम के रहस्यमयी रूप को सूफी संतों द्वारा पेश किया गया था। पूरे महाद्वीपीय एशिया से यात्रा करने वाले सूफी विद्वानों ने भारत के सामाजिक, आर्थिक और दार्शनिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वहीं सूफीवाद एक "नैतिक और व्यापक सामाजिक-धार्मिक शक्ति" के रूप में उभरा, जिसने हिंदू धर्म जैसी अन्य धार्मिक परंपराओं को भी प्रभावित किया था।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/3chPIWq
2. https://www.dawn.com/news/1179527
3. https://dharmadeen.com/2015/08/20/bhaktsufiunity/
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Sufism_in_India
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