शिव सनातन परंपरा के आदि पुरुष के रूप में देखे जाते हैं तथा इन्हें सनातन धर्म में एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। आज महाशिवरात्रि का पर्व पूरे भारत में मनाया जा रहा है। यह पर्व शिव और पार्वती माता के विवाह से भी सम्बंधित है तथा इस पर्व के विषय में कई पुराणों में भी उल्लेख मिलता है। रामपुर में भी इस पर्व को बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है और यहाँ के भमरौवा मंदिर, पंजाबनगर शिव मंदिर तथा रठौंडा के शिव मंदिर आदि में भक्तों की एक लम्बी कतार हमें देखने को मिलती है। भमरौवा के पातालेश्वर शिव मंदिर में साम्प्रादायिक सौहार्द भी देखने को मिलता है और यह स्थान एकता की मिसाल के रूप में जाना जाता है। इस मंदिर में हिन्दू ही नहीं बल्कि मुस्लिम भी दर्शन कर प्रसाद ग्रहण करते हैं। यह मंदिर घनी मुस्लिम आबादी में स्थित है तथा इस मंदिर का निर्माण करीब 200 वर्ष पूर्व यहाँ के उस समय के नवाब अहमद अली खान ने करवाया था। महाशिवरात्रि ही नहीं अपितु यहाँ पर सावन के माह में भी लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और शिव का जलाभिषेक करते हैं। एक कथा के अनुसार यहाँ पर शिव लिंग का पता सन 1788 के करीब हुआ था और नवाब अहमद अली खान ने पंडितों आदि से राय लेकर यह मंदिर बनाने की योजना बनायी और 1822 में यह मंदिर बन कर तैयार हुआ।
शिव को आदि गुरु के रूप में भी जाना जाता है तथा उन्हें योग के प्रणेता के रूप में भी जाना जाता है। मूर्तिशास्त्र में शिव को विभिन्न रूपों में देखा जाता है जैसे कि शिव को तीन नेत्रों वाला दिखाया जाता है जिसका दूसरा नाम है ‘त्रयम्बकं’ जो कि एक अत्यंत ही प्रसिद्ध रूप है। शिव को कुछ अन्य रूपों में भी दिखाने की परंपरा है जैसे कि कैलाश पर्वत पर आसीन, नंदी के साथ, माथे पर चन्द्रमा और गंगा के अंकन के साथ। रावण अनुग्रह मुद्रा, नटराज मुद्रा, उमा महेश्वर, जटा जूट के साथ, गजान्तक, गजासुर वध आदि प्रकार से शिव को प्रस्तुत किया जाता है। लिंगम और योनी पीठं के रूप में भी शिव को प्रदर्शित किया जाता है। अर्धनारीश्वर के रूप में शिव और शक्ति का समागम हमें देखने को मिलता है। इन सभी मुद्राओं में शिव के योगी रूप के दर्शन हमें मिल जाते हैं। शिवरात्री की रात भगवान् शिव की पूजा अर्चना के लिए सबसे महत्वपूर्ण रात्री के रूप में देखी जाती है। शिव को योगियों में सबसे आगे रखकर देखा जाता है जैसे कि इस लेख में पहले ही बताया जा चुका है कि शिव को योग के प्रणेता के रूप में देखा जाता है। शास्त्रों की मानें तो भगवान् शिव ने सबसे पहले योग और ध्यान का ज्ञान अपनी अर्धांगिनी पार्वती को दिया। इसे ‘युज्यते अनेन इति योगः’ कहा गया है अर्थात ‘योग वह है जो जोड़ता है’। पार्वती को शिव ने 84 योग आसनों के बारे में बताया था, ये आसन योगिक आसन के रूप में जाने जाते हैं। इस प्रकार से उपरोक्त लिखित बिन्दुओं से यह सिद्ध होता है कि शिवरात्री की महिमा अत्यंत ही उत्तम और प्रकाशमान है।
ॐ नमः शिवाय
सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/2SOJWmh
2. https://bit.ly/2UXlhhT
3. https://bit.ly/2wB7lA7
4. https://bit.ly/2V0cHzc
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Shiva#Yoga
6. https://www.templepurohit.com/adiyogi-lord-shiva-first-teacher-science-yoga/
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