शिव सनातन संप्रदाय के सबसे महानतम भगवानों में से एक हैं। शिव को आदि देव के रूप में जाना जाता है। शिव के सबसे प्राचीनतम साक्ष्य को यदि देखा जाए तो वे सिन्धु सभ्यता में भी पूजे जाते थे। इस तथ्य के पुरातात्विक प्रमाण भी मिले हैं। इन साक्ष्यों में पशुपति की सील (Seal), और शिवलिंग आदि हैं जो कि भारत के विभिन्न संग्रहालयों में आज भी पाए जाते हैं। सनातन धर्म में विभिन्न प्रकार के सम्प्रदाय निवास करते हैं और उन्हीं सम्प्रदायों में से एक है शैव संप्रदाय। यह संप्रदाय भारत के प्राचीनतम संप्रदायों में से एक है। भारत में प्राप्त अन्य सम्प्रदायों में शाक्त संप्रदाय, वैष्णव संप्रदाय आदि हैं।
आज महाशिवरात्रि का दिन है। यह भगवान् शिव के सम्मान में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक सनातनी त्यौहार है। यह त्यौहार सकल भारत में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्यौहार शिव के विवाह के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि का उल्लेख कई पुराणों में वृहद् रूप से किया गया है और विशेष रूप से इसका उल्लेख स्कन्द पुराण, लिंग पुराण, और पद्म पुराण में देखने को मिलता है। महाशिवरात्रि को कई विभिन्न किंवदंतियों में भी प्रस्तुत किया गया है। एक कथा के अनुसार यह वह रात्री है जब शिव ब्रह्माण्ड के संरक्षण और विनाश के लिए नृत्य करते हैं। अन्य कथा के अनुसार यह वह रात्री भी है जब शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। यह त्यौहार नृत्य से भी जुड़ा हुआ है और यही कारण है कि महाशिवारात्रि के समय कोणार्क, खजुराहो, मोढेरा आदि जैसे मंदिरों में नृत्य के समारोह किये जाते हैं। कुछ मंदिरों में नृत्य को नाट्यान्जली भी कहा जाता है। 1864 में एलेग्जेंडर कन्निंघम (Alexander Cunningham) ने खजुराहो में इस अवसर पर होने वाले नृत्य पर भी प्रकाश डाला।
यह त्यौहार अज्ञानता और अन्धकार को दूर करने की प्रेरणा देता है। यह त्यौहार भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व भर में धूम-धाम से मनाया जाता है जैसे नेपाल और बांग्लादेश में भी। लखनऊ में इस त्यौहार का अपना एक अलग ही महत्व है। यहाँ का मनकामेश्वर मंदिर शिवरात्री पर अपनी एक अलग ही अलौकिक छटा बिखेरता है। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो कहा जाता है कि यह मंदिर प्राचीन काल में बनाया गया था। यह मंदिर डालीगंज में गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है। देखने में यह मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करता है। ऐसी मान्यता है कि दिल में जो कोई भी मनोकामना हो वह यहाँ पर आकर पूर्ण होती है। मनोकामना पूर्ण होने के कारण ही इस मंदिर का नाम मनकामेश्वर मंदिर पड़ा। इस मंदिर के आराध्य देव शिव और पार्वती हैं। रामायण में वर्णित कथा के अनुसार जब माता सीता को वन में छोड़ने के बाद लक्ष्मण लौट रहे थे तो उन्होंने इसी मंदिर में शिव की अराधना की थी जिसके बाद लक्षमण के विचलित मन को एक अभूतपूर्व शान्ति मिली थी। इसके बाद से ही इस मंदिर में भक्तों का तांता लगना शुरू हुआ और वर्तमान समय तक यहाँ पर भक्त बड़ी संख्या में आकर पुष्पांजलि समर्पित करते हैं।
सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/2v3jihA
2. https://www.patrika.com/lucknow-news/mahashivratri-2019-lucknow-mandir-program-4225585/
3. https://www.amarujala.com/photo-gallery/lucknow/story-of-mankameshwar-mahadev-mandir?pageId=4
4. https://www.patrika.com/temples/mankameshwar-mandir-in-lucknow-uttar-pradesh-3196272/
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Maha_Shivaratri
6. https://defimedia.info/maha-shivratri-mauritius-india-and-couple-other-countries
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