संग्रहालय एक ऐसा स्थान है, जहां विभिन्न सांस्कृतिक धरोहरों को संरक्षित रूप प्रदान किया जाता है। दुनिया तथा भारत के कई हिस्सों में ऐसे संग्रहालय मौजूद हैं, जहां इतिहास की उन अमूल्य वस्तुओं को संग्रहित किया गया है, जो अब मुश्किल से ही देखने को मिलती हैं। राजस्थान स्थित अल्बर्ट हॉल संग्रहालय (Albert Hall Museum) भी एक ऐसा ही सबसे पुराना संग्रहालय है, जहां आज मुश्किल से मिलने वाली वस्तुओं को संग्रहित किया गया है। यह संग्रहालय राजस्थान का राज्य संग्रहालय भी है, जो कि राम निवास उद्यान के बाहरी ओर सीटी वॉल (city wall) के नये द्वार के सामने है। यह संग्रहालय इंडो-सरैसेनिक (Indo-Saracenic) वास्तुकला का सबसे अच्छा उदाहरण है, जिसे प्रायः ‘सरकारी केंद्रीय संग्रहालय’ भी कहा जाता है। संग्रहालय की इमारत को सैमुअल स्विंटन जैकब (Samuel Swinton Jacob) द्वारा डिजाइन किया गया था तथा 1887 में सार्वजनिक संग्रहालय के रूप में खोला गया था।
भारत में प्राचीन काल से ही मिट्टी के बर्तन बनाने की परंपरा चली आ रही है। समय के साथ-साथ इसमें काफी बदलाव हुए, जिसके परिणामस्वरूप आज विभिन्न प्रकार के मृणपात्र (पॉटरी - Pottery) हमें देखने को मिलते हैं। मृणपात्र या पॉटरी मानव हस्तशिल्प का एक आकर्षक और रंगीन हिस्सा है। यदि भारत की बात की जाए तो, यहां विभिन्न प्रकार की पॉटरी प्रसिद्ध है, जिनमें दिल्ली और जयपुर की ब्लू पॉटरी (Blue pottery), उत्तर प्रदेश की ‘चिनहट पॉटरी’ (Chinhat Pottery), अलवर की कागजी पॉटरी (Kagzi pottery) आदि शामिल हैं।
पॉटरी के जरिए मिट्टी से विभिन्न प्रकार की वस्तुएं जैसे दिये, फूलदान, प्लेटें, कटोरे, पानी के जग, सुराही इत्यादि बनाये जाते हैं। रामपुर अपनी कांचीय ओपयुक्त मृणपात्र या ग्लेज्ड पॉटरी (Glazed pottery) के लिए विशेष रूप से जाना जाता है, जो कि भारत के साथ-साथ विदेशों में भी प्रसिद्ध है। कुछ कुम्हारों ने इस परंपरा को निभाया तथा कांचीय ओपयुक्त मृणपात्र की कुछ ही चीजें अब रामपुर में बची हैं। इनमें से कई उत्कृष्ट कांचीय ओपयुक्त मृणपात्र के उदाहरण आज जयपुर के अल्बर्ट हॉल संग्रहालय में मौजूद हैं, जहां हम कांचीय ओपयुक्त मृणपात्र द्वारा निर्मित रामपुर की ‘सुराही’ के खूबसूरत नमूने भी देख सकते हैं।
समतल सतह पर समान हरे-नीले रंग की ग्लेज़ रामपुर की सुराही की विशेषता है, जिसके आधार को लाल मिट्टी (red clay) से तैयार किया गया है। रामपुर की कांचीय ओपयुक्त मृणपात्र कला का विकास यहां के नवाब के प्रोत्साहन से हुआ था। इसकी निर्माण विधि को ‘मुल्तान विधि’ कहा जाता है। यह तकनीक मेरठ और मुज्जफरनगर में भी काम आती थी, किंतु दिल्ली और जयपुर के इन बर्तनों का तरीका भिन्न था। रामपुर शैली के बर्तन लाल मिट्टी में बनाये जाते थे, जिस पर सफेद स्लिप लगाया जाता था तथा चित्र अलंकरण आदि बनाए जाते थे। इसके बाद पारदर्शी कांचीय ओप लगाकर ये बर्तन गर्म किये जाते थे। चित्रण मुख्यतः कोबाल्ट (Cobalt) और कांस्य के नीले रंगों द्वारा किया जाता था। किंतु यूरोपीय प्रभाव के कारण 19वीं सदी के मध्य से बैंगनी और पीले रंगों का भी उपयोग किया जाने लगा। रामपुर के पात्रों की पहचान इनकी ग्रीवा तथा मुख के किनारे पर चौडे बिंदुयुक्त पट्टी से की जा सकती है।
संदर्भ:
1. http://oneindiaonepeople.com/indias-enchanting-pottery/
2. https://www.swadesi.com/news/ceramics/
3. http://oneindiaonepeople.com/indias-enchanting-pottery/
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Albert_Hall_Museum
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