लखनऊ अर्थात नवाबों की नगरी, जहाँ मिलती है खाने के साथ-साथ पहनने वाली चिकन। यह एक ऐसा शहर है जिसे अवध के नवाबों ने नाज़ों से सजाया था। लखनऊ का नाम आते ही यहाँ का संगीत, नवाबियत, तहज़ीब आदि की महक दिमाग को तरोताज़ा कर देती है। यहाँ पर बना इमामबाड़ा, मस्जिदें, दरवाज़े, घंटाघर, वानस्पतिक और जैव उद्यान आदि नवाबों की ही सोच के नमूने हैं। यह शहर गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है जो कि अवध क्षेत्र की राजधानी के रूप में जाना जाता है। यहीं से अवध की शुरुआत होती है। अवध एक क्षेत्र ही ना होकर अपनी एक अत्यंत खूबसूरत भाषा भी रखता है जिससे तुलसीदास से लेकर कितने ही कवी अछूते न रहे। यहाँ पर वैसे तो अनेकों इमामबाड़े और मस्जिदें हैं पर उन्हीं इमामबाड़ों में से एक है ‘मुग़ल साहेबा का इमामबाड़ा’।
मुग़ल साहेबा का इमामबाड़ा प्लास्टर (Plaster) के अलंकरण से सुसज्जित एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण इमारत है। यह जिस कला में बनाया गया है उस कला को स्टक्को (Stucco) कला के रूप में जाना जाता है। स्टक्को कला को एक विदेशी कला के रूप में भी जाना जाता है जिसमें प्लास्टर के माध्यम से विभिन्न प्रकार के आकार प्रकार बनाए जाते हैं। इस कला में एक इमारत को प्लास्टर के द्वारा विभिन्न पौधों, नक्काशीदार ज्यामितीय कलात्मक प्रयोगों आदि के द्वारा सजाया जाता है। इस कला में सुलेख कला का भी प्रयोग किया जाता है। रोमन (Roman), कुषाण, अंग्रेज़ी आदि कला में स्टक्को का प्रयोग बड़ी मात्रा में देखने को मिलता है। यह एक ऐसा प्रकार होता है जिसमें इमारत वज़न में हल्की होती है। इस प्रकार के प्लास्टर में चूने का बड़ी मात्रा में प्रयोग किया जाता है जिस कारण से इस प्रकार की इमारतें अत्यंत ही चिकनी और सजावटी बनती हैं। यह एक ऐसा विकल्प था जो की संगमरमर को टक्कर देने वाला था, कारण कि प्लास्टर की तुलना में संगमरमर ज्यादा वज़नी होता है। यह कला मूर्तिकला, वास्तुकला और चित्रकारी को समाहित करके चलती है। आधुनिक अफगानिस्तान और उत्तरी पकिस्तान में ग्रेको बौद्ध (Greco-Buddhist) कला में त्रिआयामी मूर्तिकला की भी प्राप्ति होती है जो कि स्टक्को कला का ही नमूना है।
कुछ उर्दू के लेखकों ने वृहद् रूप से इस इमारत को अपने लेखों में सराहा है। इस इमामबाड़े की वर्तमान स्थिति दयनीय है जिसका प्रमुख कारण है इसका शहर से दूर होना। पुराने शहर के वज़ीर बाग़ में स्थित रुस्तम नगर के हज़रत अब्बास की दरगाह से परे यह इमामबाड़ा लोगों से अछूता रहा है। यह इमामबाड़ा एक सड़क के किनारे बना हुआ है जहाँ पर इसका प्रथम प्रवेश द्वार स्थित है जो कि इमारत की ओर जाता है। यह एक अत्यंत ही सजावटी इमारत है जो कि लोगों को चकाचौंध कर देने वाली है। वर्तमान समय में यह बुरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है परन्तु इसकी जितनी भी कलात्मक शैली आज बची हुयी है वह इस इमारत की खूबसूरती को बताने में कोई कसर नहीं छोड़ती। इस इमामबाड़े में हमें यूरोपीय कला के भी नमूने देखने को मिलते हैं। यह इमामबाड़ा अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह की एक बेटी द्वारा बनवाया गया था जिनका नाम उम्मत-उस-सुघरा या ‘मुग़ल साहिबा’ के नाम से जाना जाता था। 3 दिसंबर 1893 में उनकी मृत्यु के बाद उनको इस इमामबाड़े में दफनाया गया था। इस इमामबाड़े में कुल 5 बड़े दरवाज़े हैं तथा इसमें तीन बड़े हॉल (Hall) हैं जो चमकीले रंगों और सुनहरे रंगों से सजाए गए हैं।
सन्दर्भ:
1. https://lucknow.me/Imambara-of-Moghul-Saheba.html
2. https://bit.ly/2V6S98d
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Stucco
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