रामपुर में, इत्र का विक्रय भारत के कई स्थानों से किया जाता था और आज भी यह शहर की एक महत्वपूर्ण वस्तु बनी हुई है क्योंकि इत्र की सुगंध हमारे हर क्षण को अत्यधिक सुखद बना सकती है। महक या गंध चाहे किसी सड़े हुए सेब की हो या ताज़े गुलाब जल की, उसे सूंघने या अनुभव करने की क्षमता का संबंध हमारी विशेष संवेदी कोशिकाओं से होता है। अर्थात यदि हम किसी भी महक को सूंघ रहे हैं या अनुभव कर रहे हैं तो उसे सूंघने या अनुभव करने की क्षमता हमारी विशेष संवेदी कोशिकाओं से उत्पन्न होती है, जिसे घ्राण संवेदी न्यूरॉन्स (Olfactory sensory neurons) कहा जाता है। किसी भी महक या गंध का सम्बंध केवल उसको अनुभव करने या सूंघने तक ही सीमित नहीं है। जब भी हम किसी महक को सूंघते या अनुभव करते हैं तो उसके साथ-साथ हमारे शरीर में मज़बूत भावनात्मक प्रतिक्रियाएं भी पैदा होती हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार किसी भी गंध या महक के लिए हमारी विभिन्न प्रतिक्रियाएं ये बताती हैं कि हमारी घ्राण संवेदी कोशिकाओं की कई पसंद और नापसंद पूरी तरह से भावनात्मक साहचर्य पर आधारित है।
सुगंध और भावना का सम्बंध या मेल कवियों या इत्र बनाने वालों का आविष्कार नहीं है, बल्कि इसके लिए हमारी घ्राण ग्रंथियों से संबंधित लिम्बिक प्रणाली (Limbic system) उत्तर दायी है। हमारी घ्राण ग्रंथियां सीधे लिम्बिक प्रणाली से जुड़ी हुई हैं जोकि हमारे मस्तिष्क का सबसे मूल हिस्सा है। इस मूल हिस्से को ही हमारी भावनाओं का केंद्र माना जाता है। हमारी गंध संवेदनाएं कॉर्टेक्स (Cortex) से संबंधित हैं। दिमाग के सबसे गहरे हिस्सों को उत्तेजित करने के बाद ही इस हिस्से में संज्ञानात्मक पहचान (Cognitive recognition) होती है। इस प्रकार, जब हम किसी भी गंध का नाम भी लेते हैं, तो उसके महसूस होने से पहले ही हमारी लिम्बिक प्रणाली सक्रिय हो जाती है तथा हमारे अंदर की भावनात्मक प्रतिक्रियाएं बाहर आने लगती हैं। इसके अलावा इस बात के भी साक्ष्य प्राप्त हुए हैं कि एक सुखद सुगंध हमारी मनोदशा और भावना में भी सुधार कर सकती है। हाल ही के अध्ययनों से पता चला है कि किसी भी महक को प्रत्यक्ष रूप से सूंघे बिना भी केवल उसके नाम मात्र या अहसास मात्र से ही हमारे सकारात्मक विचारों और स्वास्थ्य लाभ में वृद्धि हो सकती है। एक प्रयोग में, शोधकर्ताओं ने पाया कि सिर्फ ऐसी महकों के बारे में बताना जो केवल प्रिय या अप्रिय गंध को प्रशासित कर रही थी हालांकि उसे सूंघने में लोग सक्षम नहीं थे, वह लोगों की मनोदशा और स्वास्थ्य को परिवर्तित कर रही थी। अर्थात एक सकारात्मक महक की व्याख्या मात्र ही खराब स्वास्थ्य से संबंधित लक्षणों को कम करने में मदद करती है तथा हमारी मनोदशा को सकारात्मक बनाती है।
हालांकि हमारी घ्राण संवेदनशीलता आम तौर पर उम्र के साथ कम होती जाती है, किंतु सुखद सुगंध का प्रभाव सभी आयु समूहों की मनोदशा पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इस प्रकार गंधों की सुखदता हमारे भावनात्मक प्रसंस्करण को प्रभावित कर सकती है। हमारा शरीर सकारात्मक और परिचित गंध के साथ एक समग्र शांत अवस्था में होता है। ऐसे लोग जो अपनी भावनाओं को आसानी से प्रदर्शित नहीं कर पाते, उन लोगों की भावनाओं को भी कुछ सुगंधों के माध्यम से पहचाना जा सकता है। यह एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसे अलेक्सिथिमिया (Alexithymia) के रूप में जाना जाता है। अलेक्सिथिमिया से ग्रसित लोग मुश्किल से अपनी भावनाओं को व्यक्त कर पाते हैं तथा विभिन्न प्रकार की सुगंध इनके मन के भावों को जानने में सहायक हो सकती है। इसके अलावा कोई भी गंध हमारे जीवन के सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों को भी निर्धारित कर सकती है। कभी-कभी अगर किसी गंध का अनुभव हमें हुआ हो या नहीं, यह तब भी हमारे निर्णयों को निर्धारित कर सकती है। इसका भी प्रमुख कारण हमारे नाक की सूंघने की क्षमता ही है। उदाहरण के लिए किसी भी पदार्थ को खाना है या नहीं इसका निर्णय हम उसकी सुगंध से ही कर लेते हैं।
संदर्भ:
1. http://www.sirc.org/publik/smell_emotion.html
2. https://sites.tufts.edu/emotiononthebrain/2014/12/07/smell-and-emotion/
3. https://www.livescience.com/60813-sense-of-smell-emotion-alexithymia.html
4. https://www.weizmann-usa.org/news-media/in-the-news/we-base-the-most-important-decisions-of-our-lives-on-smell
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://pxhere.com/en/photo/1428405
2. https://www.needpix.com/photo/32877/smell-rose-flower-fragrant-aroma-woman-girl-female-lady
3. https://www.pikrepo.com/fwwbo/woman-smelling-red-flowers
4. https://www.pxfuel.com/en/free-photo-jnngj
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