लखनऊ को अपने अवधी व्यंजनों के लिए विशेष रूप से जाना जाता है। कोरमा और कबाब से लेकर ब्रेड (Bread), चावल, मिठाइयाँ आदि को यहां बहुत विशिष्ट तरीके से बनाया गया है तथा इसे बनाने की विधि को कई विशिष्ट पेशेवर रसोइयों द्वारा संरक्षित भी किया गया है। इन व्यंजनों की विशेषता केवल इसमें मिलायी जाने वाली सामग्रियां ही नहीं हैं, बल्कि इनकी विशिष्ट सुगंध भी है जो इन्हें औरों से अलग तथा विशेष बनाती है। यह ज़रूरी नहीं है कि, कोई भी व्यंजन केवल उसमें मिलायी जाने वाली सामग्रियों के कारण ही विशेष बने। व्यंजन की सुगंध भी उसे विशेष या विशिष्ट बना सकती है।
किसी भी भोजन या व्यंजन के लिए उसकी महक उसके पाक अनुभव का एक प्रमुख हिस्सा है। भोजन के लिए जितना ज़रूरी स्वाद है उतना ही ज़रूरी उसकी महक भी है क्योंकि ये दोंनों एक-दूसरे से संबंधित हैं। भारतीय व्यंजनों में यह अंतरसंबंध पश्चिमी देशों की अपेक्षा अधिक दिखायी देता है, क्योंकि प्राचीन काल से ही भारतीय व्यंजनों में स्वाद के साथ-साथ उसकी महक पर भी ध्यान केंद्रित किया जाता रहा है। राजसी तौर पर बनाए गये पकवानों में किसी विशिष्ट महक का इस्तेमाल अवश्य किया जाता था जोकि उन्हें आम जनता के लिए पकाए गए व्यंजनों से भिन्न बनाती थी। व्यंजन को महक देने के लिए अंत में प्राकृतिक सामग्रियों जैसे फूलों, जड़ों, फलों इत्यादि के रस को व्यंजन में मिलाया जाता था। यह परम्परा मुगल काल में अत्यधिक लोकप्रिय थी। भोजन की महक और स्वाद व्यक्ति के व्यवहार, धारणा और समग्र स्वास्थ्य पर भी आश्चर्यजनक रूप से व्यापक प्रभाव डालती है। किसी महक को सूंघने की क्षमता अल्ज़ाइमर्स (Alzheimer's) और पार्किंसंस (Parkinson's) के बारे में भी कुछ चीजें बता सकती है। वहीं स्वाद में आनुवांशिक अंतर यह अनुमान लगाने के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है कि हम क्या खाते हैं, हमारा चयापचय कितना अच्छा है, और यहां तक कि हम अधिक वज़न वाले हैं या नहीं।
विशेषज्ञों का कहना है कि रोजमर्रा की कुछ बुनियादी संवेदनाओं का उत्पादन करने के लिए स्वाद और महक एक साथ काम करते हैं, भले ही हम इसे महसूस न कर पायें। स्वाद की संवेदना या अनुभव वास्तव में स्वाद और गंध का ही एक संयोजन है। जब हम भोजन को चबाते हैं, तो भोजन की महक वायु के साथ हमारे नासिका मार्ग तक जाती है। स्वाद और महक की परस्पर क्रिया के बिना आप जटिल स्वादों को नहीं समझ पाएंगे। महक के अभाव में आप मूल स्वाद संवेदनाओं (जैसे नमकीन, खट्टा, मीठा, कड़वा आदि) तक ही सीमित रहेंगे। स्वाद और महक के इस सम्बंध के कारण ही भोजन स्वादिष्ट प्रतीत होता है। यदि सूंघने की क्षमता में कमी आ जाये, तो इसका असर भोजन के स्वाद पर भी पड़ेगा और आप कहेंगे कि भोजन अब इतना स्वादिष्ट नहीं है। इसी प्रकार से महक और स्मृतियों के बीच में भी गहरा सम्बन्ध है। यदि आपके सूंघने की क्षमता कम हो गयी है तो इसका असर आपकी स्मृति पर भी पड़ेगा तथा यह पार्किंसंस और अल्ज़ाइमर जैसे अपक्षयी न्यूरोलॉजिकल (Neurological) रोगों के प्रारंभिक लक्षणों की ओर इशारा कर सकती है।
इसके अलावा खाने की सुगंध और स्वाद का सीधा संबंध हमारे द्वारा लिये जाने वाले बाइट साइज़ (Bite size) से भी है। बाइट साइज़ हमारे द्वारा एक बार में खाये जाने वाले भोजन के टुकड़ों के माप को संदर्भित करता है। हमारे द्वारा खाये जाने वाले भोजन के टुकड़ों के आकार उसकी बनावट और उससे हम कितने परिचित हैं, इस पर निर्भर करता है। प्रायः भोजन को छोटे-छोटे टुकडों के रूप में तब ग्रहण किया जाता है, जब उन्हें चबाने की अधिक आवश्यकता होती है। किंतु एक शोध के अनुसार भोजन को छोटे-छोटे टुकडों के रूप में ग्रहण करना, भोजन की महक पर भी आधारित है। या यूं कहें कि खाने की खूशबू, भोजन को छोटे-छोटे टुकडों के रूप में खाने का नेतृत्व करती है। शोध के अनुसार जब भोजन में महक का अभाव होता है या फिर महक कम होती है तो भोजन को छोटे-छोटे निवालों के रूप में खाया जाता है। किंतु जब महक परिचित और अच्छी होती है तो भोजन के बड़े निवाले खाये जाते हैं। इस प्रकार सुगंध के द्वारा हमारे बाइट साइज़ को नियंत्रित किया जा सकता है।
संदर्भ:-
1. https://www.livescience.com/2737-surprising-impact-taste-smell.html
2. https://bit.ly/2RJwZLd
3. https://www.sciencedaily.com/releases/2012/03/120321094137.htm
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Lucknowi_Delicacy-_Sheermal,_Kulcha,_Naan.jpg
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