भारतीय दर्शन और ज्ञान एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण और अनसुलझी पहेली है। भारतीय दार्शनिक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखे गए हैं, जिनमे ज्ञान के विभिन्न आयामों की संरचना का विवरण दिया गया है। पाश्चात्य ग्रंथों और भारतीय ग्रंथों में बड़ी विषमताएं हैं। जहाँ पाश्चात्य दर्शन में सत्य और मिथ्या के प्रस्तावों और विश्वासों का अंकन किया गया है वहीँ भारतीय परंपरा में सत्य और झूठ को एक संज्ञान या फिर यूँ कहें कि जागरूकता के रूप में वर्णित किया गया है। भारतीय ग्रंथों में ज्ञान का समुचित अनुवाद किया गया है। ज्ञान एक ऐसी इकाई है जिसे क्षण भर में नहीं अपितु जीवन के विभिन्न पडावों पर निरंतरता से अर्जित किया जा सकता है।
जल पृथ्वी पावक गगन समीरा पञ्च तत्त्व से बने शरीरा, यह भावना भारतीय धर्म ग्रंथ में प्रस्तुत होती है। वेदों और पुराणों में ज्ञान के विभिन्न आयामों को प्रस्तुत किया गया है। वेदों को चार की संख्या में लिखा गया है जैसे ऋग्वेद , यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद इन सभी में ज्ञान के सम उत्कृष्टता को प्रस्तुत किया गया है। इनमें वेदों को 6 सहायक विज्ञान कलात्मक, अभियोग, व्याकरण, व्युत्पत्ति विज्ञान, खगोल/ ज्योतिष तथा अनुष्ठान के माध्यम से प्रेषित किया गया है। भारतीय ग्रन्थ ज्ञान में कामसूत्र, कृषि, गणित, तर्क, अध्यात्मिक मुक्ति, चिकित्सा आदि के ज्ञान का भी समायोजन है। इस बसंत पंचमी अर्थात सरस्वती दिवस पर हम भारतीय दर्शन में वर्णित विभिन्न ज्ञान को उपरोक्त और निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर जानने की कोशिश करेंगे और इसके अलावां प्रत्यक्ष की धारणा को भी अविभूत करेंगे।
भारत से ही उदित हुए बौद्ध धर्म में भी ज्ञान के विभिन्न आयामों के विषय में जानकारियाँ प्रस्तुत की गयी हैं। बौद्ध धर्म में ज्ञान के 5 स्थानों का विवरण प्राप्त होता है जो यह बताता है कि बोधिसत्व के द्वारा आत्मज्ञान के रास्ते पर जाया जा सकता है। भारतीय दर्शन में तर्क का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है यह तर्क के माध्यम से ही आगे बढ़ने की प्रक्रिया को प्रस्तुत करता है। कला का भी रूप ज्ञान को प्रदर्शित करता है जो कि बौद्ध और सनातन दोनों तरफ समान मात्रा में महत्वपूर्ण बताया गया है। इसकी एक अत्यंत ही लम्बी सूची है जो कि कला को परिभाषित करती है जिसे अलग अलग स्थानों पर चौंसठ, सत्तर, नब्बे आदि की संख्या में प्रदर्शित किया गया है । इनमे मूर्ती बनाने से लेकर, संगीत, घुड़सवारी आदि का विवरण प्रस्तुत किया गया है। भारत में चार वेदों में ज्ञान के सबसे ज्यादा सिद्धांतों का विवरण प्रस्तुत किया गया है।
ज्ञान की इसी कड़ी में प्रत्यक्ष अत्यंत ही महत्वपूर्ण कारक है। यह एक संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है आँख या दृश्य। वर्तमान समय में इसका आशय आँख के सामने या दृष्टि सीमा के भीतर आने वाली तमाम वस्तुओं से है। यह अद्वैत वेदान्त में विवेक की अविभाज्य धारणा निर्विकल्प को प्रदर्शित करता है जो हमें बोध करता है कि जब सत्य की धारणा मुक्त होती है तब परम वास्तविकता ब्रह्माण्ड की सुविधाओं से रहित हो सकती है। प्रत्यक्ष को प्राप्त करने के पारंपरिक रूप से चार तरीके बताए जाते हैं। वो हैं:
इंद्रियप्रतिष्ठा - इंद्रिय बोध
मानस प्रत्याख्यान - मानसिक अनुभूति
स्वेदनाप्रतिष्ठा - आत्मचेतना
योग प्रतिपाद्य - अति-सामान्य अंतर्ज्ञान
योगाभ्यास का यह अंतिम तरीका केवल एक बार सुलभ है जब एक योगी ने योग के आठ-गुना पथ का अभ्यास किया और अपनी अशुद्धियों को हटा दिया, ताकि वे इस संसार में निहित ज्ञान को अधिक पूर्ण और विशुद्ध रूप से अनुभव कर सकें। इस प्रकार से ज्ञान के अन्य धारणा को भी परिभाषित किया जा सकता है।
सन्दर्भ:
1. https://bit.ly/36wFVrv
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Pratyaksha
3. https://www.yogapedia.com/definition/5156/pratyaksha
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.flickr.com/photos/jepoirrier/2052703080/in/pool-hindugods/
2. https://www.flickr.com/photos/celeste33/10315492993/in/pool-hindugods/
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