साथी नागरिकों को मकर संक्रांति, भोगली बिहू, पोंगल, उत्तरायण और पौष की बधाई और शुभकामनायें। जैसे ही सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है और मौसम बदलना शुरू होता है, हमारे देश के कई हिस्सों में फसलों की कटाई का मौसम शुरू हो जाता है। इस त्यौहार के अवसर को पूरे भारत में विविध तरीकों से मनाया जाता है। यह हमारे देश के सभी लोगों के परिश्रम और दृढ़ता को स्वीकार करने का क्षण है - विशेष रूप से हमारे देश के किसानों के।
हमारे देश में लगभग सभी ने कभी न कभी मकर संक्रांति के बारे में सुना होगा, लेकिन वास्तव में संक्रांति का अर्थ क्या है?
आइए संक्रांति के अर्थ और अन्य महत्वपूर्ण संक्रांतियों पर चर्चा करें।
‘संक्रांति’ का अर्थ है, सूर्य का एक राशी (भारतीय खगोल विज्ञान में नक्षत्र) से अगली राशि में संचरण। इसलिए, एक वर्ष में कुल 12 संक्रांतियां होती हैं। प्रत्येक संक्रांति को आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, ओडिशा, पंजाब, गुजरात और नेपाल में सौर कैलेंडर (Calendar) में एक महीने की शुरुआत के रूप में चिह्नित किया गया है। दूसरी ओर, बंगाली सौर नक्षत्र कैलेंडर और असमिया कैलेंडर में, एक संक्रांति प्रत्येक महीने के अंत और एक नए महीने की शुरुआत के बाद के दिन के रूप में चिह्नित की जाती है।
मकर संक्रांति: यह सूर्य के मकर राशि में परिवर्तन का मार्ग, आकाशीय मार्ग और छह महीने का उत्तरायण काल है। मकर संक्रांति को ‘उत्तरायण’ भी कहा जाता है, अर्थात् जिस दिन सूर्य अपनी उत्तरवर्ती यात्रा शुरू करता है। पारंपरिक भारतीय कैलेंडर चंद्र स्थितियों पर आधारित है, संक्रांति एक सौर घटना है। मकर संक्रांति की तिथि दीर्घावधि, 14 जनवरी या कभी-कभी 15 जनवरी तक स्थिर रहती है क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशी में उदय होता है।
मेष संक्रांति: मेष संक्रांति को पारंपरिक हिंदू सौर कैलेंडर में नए साल की शुरुआत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन, सूर्य मेष नक्षत्र या मेष राशी में प्रवेश करता है। यह आम तौर पर 14 या 15 अप्रैल को होता है। इस दिन क्षेत्रीय त्यौहार जैसे पंजाब क्षेत्र में वैसाखी, ओडिशा में पान संक्रांति और बंगाल क्षेत्र में पोहेला बैसाख के अगले दिन ‘महा संक्रांति’ के नाम से मनाई जाती है।
धनु संक्रांति: ‘धनु संक्रांति’ चंद्र पौष माह के पहले दिन मनाई जाती है। दक्षिणी भूटान और नेपाल में इसे जंगली आलू खाकर मनाया जाता है।
कर्क संक्रांति: ‘कर्क संक्रांति’ सूर्य के कर्क राशि में परिवर्तन का संकेत है। यह हिंदू कैलेंडर के छह महीने के उत्तरायण काल के अंत और दक्षिणायन की शुरुआत का भी प्रतीक है, जो खुद मकर संक्रांति पर समाप्त होता है।
उत्तरायण और मकर संक्रांति के बीच अंतरआम धारणा है कि मकर संक्रांति ही उत्तरायण है। ऐसा इसलिए है क्योंकि एक समय में स्याना और निरयण राशि समान थे। हर साल नक्षत्र और उष्णकटिबंधीय विषुव अक्षीय पुर्वगमन की अधिकता के कारण 50 सेकंड तक खिसक जाते हैं, यह अयनांश को जन्म देते हैं, जिसके कारण मकर संक्रांति भी आगे की तरफ बढ़ जाती है। 272 ईसा पूर्व में, मकर संक्रांति 21 दिसंबर को थी। 1000 ईस्वी में, मकर संक्रांति 31 दिसंबर को थी और अब यह 14 जनवरी को पड़ती है। परिणामस्वरूप, मकर संक्रांति 9000 साल बाद जून में आएगी। फिर मकर संक्रांति से दक्षिणायन की शुरुआत होगी। इसके अलावा जब उत्तरायण शुरू होता है, तो यह हमेशा सर्दियों की शुरुआत के दौरान होता है।
सन्दर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Sankranti
2. https://www.templepurohit.com/sankranti-importance-sankrantis-hinduism/
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Uttarayana
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