रामपुर की मस्जिदों में सुलेखन कला और ज्यमित्यिक सजावट का महत्व

लखनऊ

 07-01-2020 10:00 AM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन

रामपुर भारत का एक प्रमुख इस्लामी वास्तु कला का केंद्र है, यह शहर करीब 18वीं शताब्दी में फलना फूलना शुरू किया था। यहाँ के नवाबों ने इस शहर को बड़े पैमाने पर विकसित किया था और यहाँ पर कई बड़े वास्तु इमारतों का निर्माण किया था। यह शहर आज अपने कला के लिए पूरे विश्व भर में जाना जाता है। यहाँ की मस्जिदें, महल और अन्य इमारतें यहाँ के अतीव सुन्दर इतिहास की गाथा गाते हैं। इस्लामी कला में सबसे महत्वपूर्ण भाग सुलेख कला का होता है। जैसा की इस्लामी कला में जीवों और मनुष्यों का अंकन नगण्य होता है तो उस खाके के पूर्ण करने के लिए सुलेख का कार्य किया जाता है। सुलेख लिखने का प्रकार यहाँ पर एक नयी ही व्यवस्था को दर्शाता है। इस लेख के माध्यम से हम जानने की कोशिश करेंगे की आखिर सुलेख कला होता क्या है और इसका रामपुर के वास्तु पर क्या प्रभाव है।

इस्लामी कला में सुलेख के माध्यम से ही हमें ज्यामितीय, पुष्पों आदि के मध्य में छिपे सन्देश को देखा जा सकता है। जैसा की ऊपर हम बात कर चुकें हैं की इस्लामी कला के इस भाग को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है और वे हैं पुष्प, ज्यामीतीय और सुलेख। रामपुर की मस्जिदों की बात करें तो हमें पता चलता है की यहाँ पर सुलेख कला का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया गया है। यहाँ की बड़ी मस्जिद के मेहराबों के चारों ओर बड़े पैमाने पर सुलेख से सजाया गया है। सुलेख के इन कलाओं में कुरान की विभिन्न आयते लिखी हुयी हैं। ये आयते कुरान के विभिन्न अध्यायों से ली गयी हैं।

इस्लामी कला या इसी का एक भाग है अराबिक कला जो की सजावट का एक रूप है। इसमें सतही सजावट का प्रमुख अंग होता है। ये सतही सजावट लयबद्ध रैखिक पैटर्नों के आधार पर बनाया जाता है। यह मूर्तिकला की तरह नहीं होता जिसमे पूरे पत्थर को छेद कर बनाया जाता था बल्कि यह पत्थरों को उकेर कर बनाया जाता था।

इस्लामी कला में टाइलों का भी बड़ा महत्वपूर्ण योगदान होता है जिसे हम रामपुर में देख सकते हैं। सुलेख कला की बात करे तो यह एक बिंदु से शुरू होता है और यह एक बिंदु पर जा कर ख़त्म होता है। ये लाइने अत्यंत ही बड़ी हो सकती हैं और इनको देख कर ऐसा लगता है जैसे की इनमे कहीं पर पंक्ति टूट नहीं रही है। सुलेख कला में सभी शब्द एक दूसरे से जुड़े हुए लगते हैं। भारत में यदि देखे तो यहाँ की इस्लामी कला में भारतीय कला का भी एकीकरण देखा जा सकता है।

ये कला के प्रतिमान रामपुर की रजा पुस्तकालय के वास्तु में, यहाँ की मस्जिदों और महलों में देखा जा सकता है। यहाँ के इस कला को इंडो-इस्लामिक कला के रूप में देखा जा सकता है। ये दोनों कलाओं के मिल जाने से यहाँ पर सुलेख कला में एक अत्यंत ही विस्तृत सौन्दर्य दिखने लग जाता है। इस्लामी कला के इतिहास के बारे में बात करें तो यह करीब 11वीं से 13वीं शताब्दी के करीब में ही शुरू हो जाती है। समय के साथ साथ यह कई स्थानों और कलाओं को आत्मसात करते हुए वर्तमान काल में उपस्थित है।

सन्दर्भ:-
1.
https://muslimheritage.com/introduction-to-muslim-art-and-ornaments/
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Arabesque
3. https://bit.ly/2rUydsX
4. https://link.springer.com/referenceworkentry/10.1007%2F978-1-4020-4425-0_8634
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_architecture#Ornaments
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Islamic_geometric_patterns#Purpose



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