लखनऊ का इमामबाड़ा किसी बात का मोहताज़ नहीं है यह अपने में ही एक ऐसा स्मारक है जो की अपनी एक अलग ही छाप भारतीय कला में छोड़ रखा है। पूरे लखनऊ भर में अनेकों निर्माण किये गए हैं। इस लेख में हम बड़ा इमामबाड़ा के विषय में जानेंगे। लखनऊ अपनी विशिष्ट इमारतों व उनकी विशेष कला के लिये जाना जाता है यहाँ पर अनेक अद्भुत महल, मस्जिद, इमामबाड़ा, मकबरों आदि का निर्माण किया गया है। लखनऊ में बने इमारतों का सीधा श्रेय अवध के चौथे नवाब असफ-उद-दौला को जाता है जिन्होंने लखनऊ को अवध की राजधानी बनायी। उनको लखनऊ के शुरूआती दौर के विकास के लिए भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। असफ-उद-दौला लखनऊ के पहले नवाब थे जिन्होंने यहाँ पर महल, बगीचे, धार्मिक व अन्य इमारतों की रचना करवाई। असफ-उद-दौला द्वारा बनवाये गए शुरूआती और सबसे बड़ी ईमारत लखनऊ का बड़ा इमामबाड़ा था। यह इमामबाड़ा-ए-असफी नाम से भी जाना जाता है, यह पुराने शहर की आज भी सबसे बड़ी इमारत है।
नवाब ने इस इमामबाड़ा का निर्माण 1783-84 में आये भुखमरी के दौरान लोगों को रोजगार देने के लिए किया था और इसके निर्माण कार्य में करीब बीस हज़ार लोगों को रोजगार मिला था। इसके निर्माण में कई मशहूर हस्तियाँ भी मजदूरी का कार्य कर रही थी तथा उनको दर था की कहीं उनको कार्य करते हुए कोई और देख न ले इस लिए नवाब ने इसका निर्माण शाम व रात्रि में कराने का फैसला लिया। रात्रि के समय का कार्य नौसीखियों द्वारा किया जाता था जिससे वह ठीक तरीके से नहीं होता था बाद में दिन के समय उसको तोड़ कर राजगीरों द्वारा उसको पुनः बनाया जाता था। यह इमामबाड़ा 6 सालों में तैयार हुआ तथा करीब इसपर एक करोड़ रूपए का खर्च हुआ। इस इमामबाड़े के आकर को किफ़ायत-उल्लाह के द्वारा बनाया गया था। इस इमामबाड़े की कला इंडो-सारसैनिक है जिसमे कुछ मुग़ल और राजपूत कला के अंग दिखाई देते हैं।
भूलभुलैया प्रकोष्ठों और मार्गों का ऐसा जाल है जो भ्रम में डाल देता है तथा जिसके कारण बहर निकलने का ज्ञान होना मुश्किल होता है। इसका आधुनिक नज़ारा है। भारत में लखनऊ के नवाब वजीर आसफुद्दौला ने 1784 ई0 में इमामबाड़ा नामक इमारत बनवाया जिसमें, भूलभुलैयाँ का एक भारतीय नमूना हैं। इस भूलभुलैय्या में एक जैसे घुमावदार रास्ता, कलाकारी, नक्काशी और कई शेहरो के लिए यहाँ से निकली सुरंगें जैसी बहतरीन कलाकारी का नमूना इसे ख़ास बनाती हैं। इसके अलावा इस भूलभुलैय्या की सबसे ख़ास बात इसके दीवारों के कान हैं। दरअसल यहाँ की दीवारें सरिया और सीमेंट का इस्तेमाल करके नहीं बनाई गयी हैं बल्कि इन दीवारों को उड़द व चने की दाल, सिंघाड़े का आटा, चूना, गन्ने का रस, गोंद, अंडे की जर्दी, सुर्खी यानि लाल मिट्टी, चाशनी, शहद, जौ का आटा और लखौरी ईट के इस्तेमाल से बनाया गया था। इस दीवार की खासियत ये हैं कि अगर आप किसी कोने में दीवार के फुसफुसा कर कुछ बोल रहे हैं तो उसे इन दीवारों पर कान लगा कर किसी भी कोने में सुना जा सकता हैं।
सिर्फ ये ही नहीं, इस इमामबाड़े के मध्य में बने पर्शियल हाल की लम्बाई 165 फीट हैं, जिसके एक कोने में अगर आप माचिस या काग़ज़ से आवाज़ भी निकलते हैं तो दुसरे कोने से आसानी से सुना जा सकता हैं। इसकी वजह इस हाल में बनी काली सफ़ेद खोखली लाइने, जिसके सहारे से ये आवाज़ एक कोने से दुसरे कोने आसानी से सुनाई देती हैं। इतिहास के मुताबिक आसफुद्दौला ने ये इंतज़ाम अपनी फौज में छिपे गुप्तचरों से बचने और पकड़ने के लिए किया था। अगर दुश्मन फ़ौज का कोई व्यक्ति यहाँ तक पहुँचने में सफल भी होता था तो ज्यादा देर तक बाख कर नहीं रह सकता था। और कहा जाता हैं कि जब नवाब आसफुद्दौला को खतरा महसूस होता था तो ये इसमें बनी सुरंग से घोड़े पे सवार होक निकल जाते थे। और इस भूलभूलैय्या की एक खासियत ये भी थी की इमामबाड़े के दरवाजे से आने वाला व्यक्ति दिखाई देता हैं। जिसके सहायता से आने वाले दुश्मन का पता चल जाता था और वही से उसको मौत की घाट उतार देते थे।
सन्दर्भ:-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Bara_Imambara
2. https://www.gounesco.com/bara-imambara-the-largest-arched-monument/
3. https://www.nativeplanet.com/travel-guide/bara-imambara-in-lucknow/articlecontent-pf14228-001904.html
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