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                                            भारत अनेकों धर्म और सम्प्रदायों को एक करके चलने वाला देश है। यहाँ पर इसके हज़ारों वर्षों के इतिहास में कितनी ही विदेशी जातियां और धर्म ऐसे हैं जो भारत में आये और आज वर्तमान समय में ये यहीं के हो गए हैं। भारत को पालन धरती के रूप में देखा जाता है। इन्हीं अनेकों जनजातियों और धर्मों में से एक हैं ‘सिदी’। सिदी अफ्रीकियों को कहा जाता है जिन्होंने भारत में 6ठी शताब्दी ईस्वी से आना शुरू किया। सिदीयों ने भारत के विविधिता भरे माहौल में एक और नग जोड़ने का कार्य किया। आज के वर्तमान परिदृश्य में सिदी एक अत्यंत बड़े संकट से गुज़र रहे हैं और वह संकट है उनके विलोपन का। भारत में वर्तमान काल में सबसे तेज़ी से विलोपन की ओर बढ़ता समूह सिदीयों का है। सिदीयों का अवध से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण रिश्ता रहा है। जैसा कि वाजिद अली शाह की तीसरी बीवी एक अफ़्रीकी ही थी, तो इससे यह तो सिद्ध हो गया कि लखनऊ में बड़ी संख्या में अफ़्रीकियों का आना जाना रहा था।
वर्तमान समय में भी लखनऊ में सिदी समुदाय मौजूद है। ऐतिहासिक रूप से यह कथन मान्य है कि शाही परिवार में अफ़्रीकी दासों को अंगरक्षक के रूप में भर्ती किया जाता था। ऐसा माना जाता है कि अफ़्रीकी दास अत्यंत ही वफादार थे और इसका उदाहरण तब देखने को मिला जब 1858 में अंग्रेज़ों ने लखनऊ पर कब्ज़ा कर लिया था। उस समय ये अफ़्रीकी दास ही थे जिन्होंने अपनी बहादुरी और कुशलता का परिचय दिया था। अफ़्रीकी महिलाओं को जनाना और महिला शाही महलों की रक्षा करने के लिए रखा गया था। लखनऊ में अफ्रीकियों को लाने के लिए अरब महासागर का प्रयोग किया जाता था। वाजिद अली शाह के पास कुल 1200 की संख्या की अफ़्रीकी हल्मी रिसाला रेजिमेंट हुआ करती थी। एक श्रोत के अनुसार यह भी माना गया कि 1847-48 के समय में 1000 से अधिक दास लखनऊ पहुंचे थे। लखनऊ के इतिहास में सिदीयों या यूँ कहें कि अफ्रीकियों का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा है। चाहे वह घरेलु कार्य हो या सैन्य, लखनऊ के ज़र्रे-ज़र्रे पर आज अफ़्रीकी दासों के बलिदान की बातों को देखा जा सकता है।
आज के वर्तमान समय में सिदी अपनी सांस्कृतिक पहचान भूलने लगे हैं, कारण कि उनको संरक्षण देने का कार्य किसी भी ओर से नहीं हो पाया। भारत में सिदी हिन्दू, मुस्लिम और इसाई तीनों धर्मों में विद्यमान हैं। इनका क्षेत्र मुंबई, लखनऊ, गुजरात, हैदराबाद आदि है। सिदीयों को भेदभाव का भी सामना करना पड़ता है जिस कारण से भी ये अपनी संस्कृति को भूलने लगे हैं। ऐसे में यह ज़रूरी हो जाता है कि इनका संरक्षण अत्यंत तेज़ी से किया जाये। जिस प्रकार से भारत भर में सिदी मात्र 25,000 की संख्या में ही हैं, तो ऐसे में यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि इनपर ध्यान दिया जाए, इससे पहले कि ये विलोपन में चले जाएँ।
संदर्भ:
1.	https://bit.ly/2SJHS0h
2.	https://en.wikipedia.org/wiki/Siddi
3.	https://bit.ly/2SIHAXC
चित्र सन्दर्भ:-
1.	Yasmin, wife of Wajid Ali Shah, the last king of Oudh in Uttar Pradesh. Royal Collection Trust / © HM Queen Elizabeth II 2013.
2.	https://www.rct.uk/collection/1005035/ishqnamah