क्या है भारत में दोहरी नागरिकता नीति?

अवधारणा II - नागरिक की पहचान
17-12-2019 02:08 PM
क्या है भारत में  दोहरी नागरिकता नीति?

किसी भी देश के समाज में रहने और वहां कार्य करने के लिए वहां की नागरिकता बहुत आवश्यक होती है क्योंकि इसके तहत ही देश से संबंधित विशेष नियम और अधिकार वहां के नागरिकों को प्राप्त होते हैं। नागरिकता के अभाव में कई अधिकारों से व्यक्ति वंचित हो जाता है तथा कुछ मामलों में उसे उस देश विशेष में रहने का अधिकार भी नहीं होता है। कुछ लोग जिनके पास एक देश की नागरिकता है और वे लम्बे समय से किन्हीं कारणों के चलते दूसरे देश में निवास करते हैं उनके लिए दोहरी नागरिकता का प्रावधान बनाया गया है। जब कोई व्यक्ति एक ही समय पर दो देशों का नागरिक होता है, तो उसे दोहरी नागरिकता कहा जाता है। इसके संदर्भ में आमुख व्यक्ति को कुछ विशेष अधिकार दिये जाते हैं तथा उनके लिए कुछ विशिष्ट नियम बनाए जाते हैं।

आमतौर पर, दोहरी नागरिकता प्राप्त करने वाले व्यक्ति को इस मामले में बहुत कम या कोई कार्यवाही की आवश्यकता नहीं होती है। संयुक्त राज्य अमेरिका दोहरी नागरिकता का पक्ष नहीं लेता है लेकिन फिर भी, यह अमेरिकी कानून द्वारा निषिद्ध नहीं है। दोहरी नागरिकता कुछ विशेष देशों के लिए ही दी जाती है, जिनमें संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, आयरलैंड, इज़रायल, इटली, नीदरलैंड, न्यूज़ीलैंड, पुर्तगाल, स्वीडन, स्विट्ज़रलैंड आदि शामिल हैं। अधिकांश देश दोहरी नागरिकता या एकाधिक नागरिकता को अवांछनीय मानते हैं। चूंकि किसी देश के पास केवल उसी नागरिक पर नियंत्रण होता है, जिसके पास उसकी नागरिकता होती है। किसी देश द्वारा व्यक्ति को आंशिक नागरिकता भी प्रदान की जाती है। इस अवस्था में विदेशी या पूर्व नागरिकों को किसी देश में अनिश्चित काल तक रहने और काम करने की अनुमति दी जाती है। भारत की विदेशी नागरिकता आंशिक नागरिकता का एक उदाहरण है। भारत का संविधान आमतौर पर भारतीय नागरिकता और किसी विदेशी देश की नागरिकता को एक साथ रखने की अनुमति नहीं देता है। इसके तहत कुछ नियम बनाए गये हैं जिनका पालन करके ही दूसरे देश में निवास किया जा सकता है।

वे लोग जो पहले भारत में रहते थे किंतु अब विदेशों में हैं, उन्हें भारत सरकार ने ओवरसीज़ सिटीज़नशिप ऑफ इंडिया- ओसीआई (Overseas Citizenship of India) की श्रेणी में रखा है। इसे आमतौर पर "दोहरी नागरिकता" के रूप में जाना जाता है। भारतीय मूल के वे व्यक्ति, जो भारत से चले गए तथा उन्होंने पाकिस्तान और बांग्लादेश के अलावा, एक विदेशी देश की नागरिकता हासिल कर ली है, उन्हें तब तक ओसीआई की पात्रता दी जाती है, जब तक कि उनका गृह देश अपने संबंधित कानूनों के तहत इस पर आपत्ति नहीं जताता। भारतीय मूल के लोगों को विदेशी नागरिकता देने के लिए भारतीय संसद ने 22 दिसंबर, 2003 को एक विधेयक पारित किया। इस विधेयक को 7 जनवरी, 2004 को राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त हुई। भारतीय मूल के सभी लोगों के लिए दोहरी नागरिकता उपलब्ध नहीं है। यह केवल कुछ विशिष्ट देशों के उन लोगों के लिए है जो अनुमोदित सूची में हैं। इसे मुख्य रूप से केवल सुरक्षा चिंताओं के कारण, मामले के आधार पर दिया जाता है। ओसीआई में पंजीकृत व्यक्तियों के पास न तो मताधिकार होगा और न ही वे लोकसभा, राज्यसभा या संवैधानिक पदों पर राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश आदि के चुनाव के लिए योग्य होंगे।

ओसीआई के मुख्य लाभ ये हैं कि इसमें भारत आने के लिए आजीवन वीज़ा (VISA) की प्राप्ति होती है। ऐसे व्यक्ति पुलिस अधिकारियों को रिपोर्ट (Report) किए बिना किसी भी लम्बे समय तक भारत में रह सकते हैं। इसके साथ ही उन्हें वित्तीय, आर्थिक और शैक्षिक क्षेत्रों में समानता का अधिकार भी प्राप्त होता है। भारत में अध्ययन करने के लिए ओसीआई छात्रों को वीज़ा तथा नौकरी पाने के लिए रोज़गार वीज़ा की आवश्यकता नहीं होती। वे भारत में अपना एक विशेष बैंक खाता खोल सकते हैं तथा भारत में निवेश भी कर सकते हैं। इन लोगों को गैर-कृषि संपत्ति खरीदने का अधिकार भी होता है और वे संपत्ति के स्वामित्व के अधिकार का उपयोग भी कर सकते हैं। ड्राइविंग लाइसेंस (Driving License), बैंक खाता खोलने या पैन कार्ड (PAN Card) प्राप्त करने के लिए वे ओसीआई कार्ड का उपयोग कर सकते हैं। इस प्रकार ओसीआई (भारत के प्रवासी नागरिक) ऐसे गैर-भारतीय नागरिक हैं, जिनके पास भारत में कम प्रतिबंधों के साथ रहने और काम करने के लिए आजीवन वीज़ा है।

नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत भारत के विदेशी नागरिकों के पंजीकरण हेतु अनुच्छेद 1 [7A], 1 [7B] निर्मित किये गये हैं जिसके माध्यम से विदेशी नागरिकों के पंजीकरण के लिए कुछ नियम बनाए गये हैं जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
1. पूर्ण आयु और क्षमता का कोई भी व्यक्ति‌-
• जो किसी दूसरे देश का नागरिक है, लेकिन संविधान के प्रारंभ होने के समय या उसके बाद किसी भी समय भारत का नागरिक था।
• जो दूसरे देश का नागरिक है, लेकिन संविधान के प्रारंभ के समय भारत का नागरिक बनने के योग्य था।
• जो दूसरे देश का नागरिक है, लेकिन एक ऐसे क्षेत्र से संबंधित है जो 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत का हिस्सा बना।
• जो उपरोक्त तरह के नागरिक की संतान या पोता है।

2. कोई भी व्यक्ति जो भारतीय नागरिक की संतान हो तथा विदेश में निवास कर रहा हो-
दूसरे देशों में रह रहे अन्य भारतीय लोगों को एनआरआई (Non-Resident Indians / अनिवासी भारतीय) की संज्ञा दी जाती है। ये वे भारतीय नागरिक हैं जो कुछ समय से दूसरे देश में रह रहे हैं। वह भारतीय नागरिक जो एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 183 दिनों के लिए भारत से बाहर रहता है, एनआरआई कहलाता है। ये व्यक्ति भारतीय बैंकों से विशेष बैंक खाते प्राप्त कर सकते हैं, भारत में भूमि और संपत्ति का स्वामित्व रख सकते हैं। भारत के बाहर जो भी कमाई ये लोग करते हैं उस पर भारत सरकार द्वारा कोई कर नहीं लगाया जाता। अनिवासी भारतीयों के लिए आरक्षित भारतीय विश्वविद्यालयों में सीटों का एक विशेष कोटा है। इन्हें मत अधिकार प्राप्त होता है जिसे देने के लिए भारत में रहना आवश्यक है। इसी प्रकार से भारतीय मूल के वे लोग जो विदेशों में निवास करते हैं उन्हें पीआईओ (PIO-पर्सन ऑफ इंडियन ओरिजिन) की श्रेणी में वर्गीकृत किया गया था जिसमें 15 साल का वीज़ा हुआ करता था। हालांकि अब इसे हटा दिया गया है।

संदर्भ:
1.
https://www.immigrationlawadvisor.com/dual_citizenship.php
2. http://learningindia.in/nri-pio-oci/
3. https://mha.gov.in/PDF_Other/FAQ-%20OCI_25042017.pdf
4. https://indiankanoon.org/doc/305990/