भारत में नदियों को मां की संज्ञा दी जाती है क्योंकि इनका शांत प्रवाह सभी को लाभ पहुंचाता है किंतु स्थिति तब बदलती है जब ये अपना विशाल रूप धारण करती हैं और विनाश का कारण बनती हैं। यही हाल कुछ घाघरा नदी का भी होता है, जब बारिश का मौसम शुरू होता है। हिमालय से निकलकर यह नेपाल से होती हुई भारत के बिहार और उत्तर प्रदेश राज्य में प्रवाहित होती है। बरसात के मौसम में घाघरा नदी बहुत चर्चा में होती है जब इसका अनियंत्रित प्रवाह बाराबंकी और आस-पास के अन्य इलाकों में बाढ़ का कारण बनता है। बाराबंकी जिला फ़ैज़ाबाद डिवीज़न के चार जिलों में से एक है तथा अवध क्षेत्र के केंद्र में स्थित है। यह मुख्य रूप से घाघरा और गोमती की लगभग समानांतर धाराओं से घिरा हुआ है। इसकी उत्तर-पूर्वी सीमा में घाघरा नदी प्रवाहित होती है जिसके पीछे बहराइच और गोंडा जिला स्थित हैं। फतेहपुर तहसील में चौका और सरदा नदियों के संगम से बनने वाली धारा घाघरा कहलाती है। गर्मियों के मौसम में नदियाँ सूख जाती हैं किंतु बारिश के मौसम में जल-स्तर इतना बढ़ जाता है कि पूरा क्षेत्र बाढ़ से प्रभावित होता है। घाघरा नदी के बदलते स्वरूप के चलते जिले के भूमि क्षेत्र में साल-दर-साल बदलाव होता है।
प्रत्येक वर्ष बरसात के मौसम में नेपाल द्वारा कुछ लाख क्यूसेक (Cusec) पानी छोड़ा जाता है जिससे तराई के हालात बिगड़ने लगते हैं। क्यूसेक नदियों या जल के प्रवाह दर का एक माप है और "क्यूबिक फीट प्रति सेकंड" के लिए अनौपचारिक रूप से प्रयोग किया जाता है। यह आमतौर पर जल प्रवाह की माप के लिए उपयोग किया जाता है (विशेष रूप से नदियों और नहरों में)। नेपाल द्वारा छोड़े गये पानी की वजह से नदी का पानी खतरे के निशान से ऊपर पहुंच जाता है तथा विनाश का कारण बनता है। नदी का पानी तराई के गांवों में पूरी तरह से पहुंच जाने के कारण यहां के लोगों को सुरक्षित स्थानों के लिए पलायन करना पड़ता है। बाढ़ के कारण गांवों को जोड़ने वाले मार्गों पर पानी भर जाता है जिससे लोगों को आवागमन में भी दिक्कतें होने लगती हैं। इन गांवों में करीब 35 हज़ार की आबादी बाढ़ की समस्या से प्रभावित होती है। बाढ़ से पीड़ित लोगों का कहना होता है कि पानी भर जाने से गांवों में रुकना संभव नहीं है जिससे उन्हें ऊंचे स्थानों में पलायन करना पड़ता है। इस तरह 35 हज़ार की आबादी के सामने कई तरह की समस्याएं शुरू होने लगती हैं।
इस समस्या से निपटने के लिए लोगों ने बाराबंकी से बहराइच को सीधे जोड़ने के लिए एक पुल बनाए जाने की मांग की है। उनका कहना है कि यदि पुल बन जाता है तो इससे कई समस्याओं का निवारण हो सकेगा। क्षेत्रीय लोगों ने मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक से इस संदर्भ में गुहर लगाई है, किंतु उन्हें निराशा ही प्राप्त हुई है। इलाके के लोगों का कहना है कि बहराइच जाने के लिए उन्हें 80-90 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है, किंतु अगर पुल बन जाए तो यह दूरी कुछ किलोमीटर तक सिमट जाएगी। हर साल घाघरा नदी बाढ़ का कहर ढाती है तथा गांव के गांव उजड़ जाते हैं, यदि पुल बन जाए तो एक लाख लोगों की आधी समस्या हल हो जाएगी।
प्रशासन का कहना है कि ये प्रोजेक्ट बहुत बड़ा है और इसमें अरबों रुपये खर्च होंगे। पुल करीब तीन किलोमीटर का होगा और 10 किलोमीटर की सड़क बनेगी। ऐसे में एक निश्चित आबादी के लिए इतने रुपये खर्च करना कहां तक ज़रुरी है? लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि यही पुल उद्योग और संसाधन से विहीन इस इलाके के लिए विकास की राह खोलेगा। पुल के न होने से इलाके का विकास रुका हुआ है। पुल नहीं है तो सड़क नहीं है, सड़क नहीं है तो काम-धंधा भी नहीं है। पढ़ाई-लिखाई में तो समस्या है ही साथ ही लोगों की शादियां होने में भी दिक्कतें आती हैं। पुल के बन जाने से दोनों जिलों के लाखों लोगों को रोज़गार के नए साधन मिल जाएंगे और क्षेत्र विकास की ओर अग्रसर होगा।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Cusec
2. https://bit.ly/2Pjyy14
3. https://bit.ly/2PE43ls
4. https://familypedia.wikia.org/wiki/Barabanki_district
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Ghaghra_river_in_Sitapur.jpg
2. https://bit.ly/35m560a
3. https://commons.wikimedia.org/wiki/File:Floods.jpg
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