कालाबाज़ारी को बढ़ावा देता है भ्रष्टाचार

लखनऊ

 11-12-2019 11:34 AM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

वर्तमान समय में भ्रष्टाचार भारत की एक गम्भीर समस्या बना हुआ है। ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचार न होता हो। भ्रष्टाचार किसी व्यक्ति या संगठन द्वारा निजी और अवैध लाभ प्राप्त करने के लिए की गई बेईमानी या आपराधिक गतिविधि का एक रूप है। इस गतिविधि में व्यक्ति या संगठन को दी गयी शक्तियों का दुरूपयोग किया जाता है। भ्रष्टाचार में रिश्वतखोरी और गबन जैसी कई गतिविधियां शामिल होती हैं। इसे मुख्यतः दो रूपों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहला निजी क्षेत्र का भ्रष्टाचार और दूसरा सार्वजनिक क्षेत्र का भ्रष्टाचार। निजी क्षेत्र का भ्रष्टाचार केवल दो या कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित होता है किंतु सार्वजनिक क्षेत्र के भ्रष्टाचार में केवल एक व्यक्ति ही लाभांवित होता है जबकि अन्य सभी जनसमूह को हानि उठानी पड़ती है। इसका एक उदाहरण राजनीतिक भ्रष्टाचार है जो तब होता है जब एक कार्यालय-धारक या अन्य सरकारी कर्मचारी व्यक्तिगत लाभ के लिए आधिकारिक क्षमता का दुरूपयोग करता है। क्लेप्टोक्रेसी (Kleptocracies), ऑलिगार्की (Oligarchies), नार्को-स्टेट्स (Narco-states) और माफिया राज्यों में भ्रष्टाचार सबसे आम बात है। इस प्रकार भ्रष्टाचार विभिन्न पैमानों पर हो सकता है जो अब समाज की रोज़मर्रा की संरचना का हिस्सा बन गया है जो वैश्विक स्तर पर लगभग सभी देशों में नियमित आवृत्ति के साथ दिखाई देता है।

भ्रष्टाचार को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा जा सकता है:
1. तुच्छ भ्रष्टाचार (Petty corruption)

यह भ्रष्टाचार छोटे स्तर पर होता है। उदाहरण के लिए, कई छोटे स्थानों जैसे कि पंजीकरण कार्यालय, पुलिस स्टेशन, राज्य लाइसेंसिंग बोर्ड और कई अन्य निजी और सरकारी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार।
2. विराट भ्रष्टाचार (Grand corruption)
यह भ्रष्टाचार सरकार के उच्चतम स्तरों पर होने वाला भ्रष्टाचार है, जिसमें राजनीतिक, कानूनी और आर्थिक प्रणालियां महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित होती हैं। ऐसा भ्रष्टाचार आमतौर पर अधिनायकवादी या तानाशाही सरकारों वाले देशों में पाया जाता है।
3. प्रणालीगत भ्रष्टाचार (Systemic corruption)
यह वो भ्रष्टाचार है जो मुख्य रूप से किसी संगठन या प्रक्रिया की कमज़ोरियों के कारण होता है। यह उन अधिकारियों या एजेंटों (Agents) से सम्बंधित है जो प्रणाली के भीतर भ्रष्ट कार्य करते हैं।

घूस (रिश्वत), चुनाव में धांधली, हफ्ता वसूली, जबरन चन्दा लेना, भाई-भतीजावाद, अपने विरोधियों को दबाने के लिये सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग, न्यायाधीशों द्वारा गलत या पक्षपातपूर्ण निर्णय लेना, कालाबाज़ारी करना इत्यादि भ्रष्टाचार की श्रेणी में रखे गये हैं। भारत में व्यापक पैमाने के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा 8 नवंबर 2016 को रात आठ बजे 500 और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा की गयी जिसे नोटबंदी का नाम दिया गया। इस घोषणा में 8 नवंबर की आधी रात से देश में 500 और 1,000 रुपये के नोटों को खत्म करने का ऐलान किया गया था तथा इसका उद्देश्य काले धन पर तंज कसना तथा जाली नोटों से छुटकारा पाना था। इससे पहले 16 जनवरी 1978 में भी 1,000, 5,000 और 10,000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण किया था ताकि जालसाज़ी और काले धन पर अंकुश लगाया जा सके। नोटों के विमुद्रीकरण के नकारात्मक तथा सकारात्मक दोनों प्रभाव देखे गये। इस पूँजी को भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों में भी इस्तेमाल किया जा रहा था। इसके परिणाम स्वरुप नोटों को खत्म करने का निर्णय लिया गया था।

नोटबंदी के साथ बीएसई सेंसेक्स (BSE SENSEX) काफी नीचे गिरा। इसके साथ-साथ निफ़्टी (NIFTY) में भी भारी गिरावट दर्ज की गई। कई दुकानों को आय कर विभाग द्वारा छापे के डर की वजह से बंद कर दिया गया। देश के कई राज्यों में आय कर विभाग द्वारा छापे मारे गये। 500 और 1,000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण से उत्पन्न समस्या से निपटने के लिए भारत सरकार ने डिजिटल (Digital) भुगतान को प्रोत्साहन देना आरम्भ किया। प्रोत्साहन के लिए डिजिटल भुगतान करने पर सेवा कर में छूट और कई इनामों की घोषणा भी की गयी। इस प्रकिया द्वारा कई लोगों से काला धन बरामद किया गया।

8 नवंबर के विमुद्रीकरण के बाद कई समस्याओं ने भी जन्म लिया जिनमें से नौकरियों की गंभीर समस्या भी थी। श्रम भागीदारी दर में गिरावट स्पष्ट रूप से देखी गयी। फरवरी में यह दर गिरकर 44.5 फीसदी, फिर मार्च में 44 फीसदी और अप्रैल में 43.5 फीसदी रह गई। श्रम भागीदारी दर में गिरावट भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्था के लिए एक आर्थिक मंदी का संकेत है। बैंकों में नए नोटों के लिए अपनी विमुद्रीकृत मुद्रा का आदान-प्रदान करने के लिए लोगों को कई सप्ताह दिए गए। विमुद्रीकरण का मुख्य उद्देश्य धनी भारतियों द्वारा लाई जा रही अघोषित संपत्ति को बाहर उजागर करना था किंतु यह प्रयास व्यापक न बन सका। इस प्रकार इस योजना ने पूर्ण रूप से सफलता हासिल नहीं की। इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था ने विकास के मामले में सकल घरेलू उत्पाद में 1.5% की कमी महसूस की। इस साल लगभग 2.25 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ था तथा 15 करोड़ से भी अधिक लोगों ने कई हफ्तों के लिए अपनी आजीविका खो दी थी। इसके प्रभाव से डिजिटल लेन-देन में वृद्धि हुई तथा इसने भारत को एक डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर तेज़ी से बढ़ने में मदद की।

हालांकि कई पूंजीपतियों ने अपने काले धन को सुरक्षित करने के लिए मनी-लॉन्ड्रिंग (Money laundering) का सहारा लिया। मनी-लॉन्ड्रिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें कई बड़े पूंजीपति आय कर विभाग से बचने तथा कर न देने के लिए अपने काले धन को सफेद धन में परिवर्तित करते हैं। ये ऐसे लॉ फर्म (Law firm) होते हैं जो शेल कॉरपोरेशन (Shell Corporation) बनाने और संपत्ति को ऑफशोर टैक्स हेवन (Offshore tax haven) में संग्रहित करने में अपने ग्राहकों की सहायता करते हैं। इसका तंत्र बहुत व्यापक रूप से फैला हुआ है जिसमें कई लोग शामिल होते हैं। भ्रष्टाचार की व्यापकता को रोकने के लिए चुनावी बॉन्ड की प्रक्रिया पर भी ध्यान केन्द्रित किया गया है। चुनावी बॉन्ड एक ऐसा प्रतिबद्ध है जिसका उपयोग पैसा दान करने के लिए किया जाता है। इस बॉन्ड के ज़रिए आम आदमी, राजनीतिक पार्टी, व्यक्ति या किसी संस्था को पैसे दान कर सकता है। इसकी न्यूनतम कीमत एक हज़ार रुपए जबकि अधिकतम एक करोड़ रुपए होती है। इसका उद्देश्य चुनावों में राजनीतिक दलों के चंदा जुटाने की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाना है। सुप्रीम कोर्ट ने इस संदर्भ में अपना अंतरिम आदेश जारी किया है तथा आदेश दिया कि सभी दल, जिनको चुनावी बॉन्ड के ज़रिए चंदा मिलता है, वे सील कवर में चुनाव आयोग को इसका ब्योरा देंगे। सभी राजनीतिक दल चुनाव आयोग के साथ उस रकम की जानकारी को साझा करेंगे जो उन्हें चुनावी बॉन्ड के ज़रिये मिली है।

संदर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Corruption
2. https://en.wikipedia.org/wiki/2016_Indian_banknote_demonetisation
3. https://www.cmie.com/kommon/bin/sr.php?kall=warticle&dt=2017-07-11%2011:07:31&msec=463
4. https://bit.ly/2RQCGYj
5. https://bit.ly/2seQtNl
6. https://bit.ly/2sffsAh



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