सर्दियाँ के आगमन के साथ बाजारों में कश्मीरी स्वेटरों का आगमन भी शुरू हो जाता है। अगर देखा जाए तो सबसे साधारण कश्मीरी स्वेटर भी अन्य कपड़ों से बने सामान्य स्वेटर की तुलना में कई गुना अधिक गर्म होता है। कश्मीरी ऊन एक बेहद अद्भुत और शानदार प्राकृतिक पदार्थ है और ऐसा कहा जाता है कि यह साधारण ऊन के मुकाबले तीन गुणा गर्म और लंबे समय तक चलने वाला होता है। कई लोगों का मानना है कि कश्मीरी ऊन का उत्पादन मूल रूप से कश्मीर क्षेत्र में 13 वीं शताब्दी के आसपास शुरू हुआ था। 18 वीं शताब्दी में, यूरोपीय लोगों ने कपड़े की खोज की और इसे यूरोप और विशेष रूप से स्कॉटलैंड और फ्रांस में आयात करना शुरू कर दिया था। 19 वीं शताब्दी तक, कश्मीरी शॉलों का उपयोग ईरानी और भारतीय शासकों द्वारा धार्मिक और राजनीतिक समारोहों के लिए भी किया जाता था।
कश्मीरी ऊन का सबसे रोचक तथ्य यह है कि यह कश्मीरी भेड़ से नहीं बल्कि बकरियों से आती है। हालांकि नरम रेशाओं को किसी भी प्रकार के बकरी से लिया जा सकता है, लेकिन कश्मीरी रेशाओं को एक खानाबदोश नस्ल से लिया जाता है जो बहुत नरम होती हैं। यह नस्ल मंगोलिया, दक्षिण पश्चिम चीन, ईरान, तिब्बत, उत्तरी भारत और अफगानिस्तान के बीच पाई जाती है। दरअसल इन बकरियों के शरीर में सर्दियों में ठंड से बचने के लिए बहुत कम वसा होती है, इसलिए वे अपने शरीर में नरम, ऊन के तंतुओं को विकसित करते हैं।
वहीं जब तापमान बढ़ जाता है, तो बकरियां इन बालों को स्वाभाविक रूप से झाड़ने लग जाती हैं और निर्माताओं द्वारा इन बालों को कंघी कर प्राप्त किया जाता है जिसे वे साफ करने, परिष्कृत करने, गांठ बनाने के लिए भेज देते हैं। इन सब प्रक्रियाओं के बाद इन्हें कंपनियों को बेच दिया जाता है। वहीं आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि एक स्वेटर बनाने के लिए दो बकरियों से अधिक की ऊन का उपयोग किया जाता है। वहीं कश्मीरी ऊन के वैश्विक उत्पादन दर को देखा जाएं तो भेड़ की ऊन के 2 मिलियन मीट्रिक टन के विपरीत, इस बकरी से प्रति वर्ष लगभग 6,500 मीट्रिक टन शुद्ध कश्मीरी ऊन प्राप्त होती है।
एक बार जब शुद्ध कश्मीरी प्राप्त हो जाती है तो इसे संसाधित करने में बहुत समय और मेहनत लगती है। तंतुओं को पहले सही रंग में रंगा जाता है और उन्हें एक साथ घिसने से रोकने के लिए वातित किया जाता है। कश्मीरी की नरमी का मतलब है कि इसकी पूरी प्रक्रिया के दौरान इसे नाजुक तरीके से पकड़ा जाना चाहिए, ताकि किसी भी रसायन या अधिक प्रसंस्करण से रेशाओं को नुकसान न हो सके। वहीं रेशाओं में कंघी भी की जाती है ताकि उन्हें यार्न में काटने के लिए सुलझाया जा सकें। कश्मीरी की गुणवत्ता इसकी सुंदरता और लंबाई पर वर्गीकृत की जाती है, और उच्च गुणवत्ता वाले व्यक्तिगत कश्मीरी बाल लगभग 14 माइक्रोमीटर पतले होने चाहिए।
चीन कश्मीरी ऊन बनाने के लिए आवश्यक कच्चे माल का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है, लेकिन यूरोप ने कश्मीरी विनिर्माण विधियों में महारत हासिल की है, और महंगे गुणवत्ता वाले उत्पादों पर बाजार में कब्जा कर लिया है। कश्मीरी के महंगे होने के बावजूद इसकी उच्च मांग के पीछे का कारण इसके कपड़े का समय के साथ साथ और नरम होना है, ऐसा मान लीजिए कि एक व्यक्ति द्वारा इसे लेकर अपने बच्चों और नाती-पोतों के लिए निवेश किया गया है। लेकिन इन दिनों, तेजी से फैशन के आगमन के साथ, बहुत प्रतिस्पर्धी कीमतों पर कश्मीरी टोपियाँ, रूमाल और क्रूनेक्स (crewnecks) ढूंढना काफी आसान हो गया है।
लेकिन जैसा कि हम जानते ही हैं कि सस्ते में किसी चीज का मिलना मतलब उसकी कीमत किसी न किसी द्वारा चुकाई जा रही होगी। जी हाँ, यहाँ वो कीमत इन बकरियों द्वारा चुकाई जा रही है, जैसा कि हम जान चुके हैं कि इनमें बहुत कम वसा मौजूद होता है और कई निर्माताओं द्वारा इनके बालों कि सर्दियों के शुरुआती मध्य में ही कटाई कर दी जाती है। दूसरी ओर कई निर्माताओं द्वारा कश्मीरी में मिलावट कर उसे कम कीमत में बेचा जाता है। वहीं कुछ कथित तौर पर 100% कश्मीरी उत्पादों में याक के बाल या चूहे के बाल भी पाए गए हैं। यदि आप वास्तव में सस्ता उत्पाद पाते हैं जो कि कश्मीरी होने का दावा करता है, तो यह वास्तव में मिलावटी या बकरियों से जल्द बाल निकाला हुआ हो सकता है।
संदर्भ :-
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Cashmere_goat
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Cashmere_wool
3. https://bit.ly/33zoGUO
4. https://bit.ly/2scL8WF
5. https://goodonyou.eco/material-guide-how-ethical-is-cashmere/
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.pxfuel.com/en/free-photo-xfetl
2. https://bit.ly/38dy6sC
3. https://bit.ly/2P2XOIP
4. https://bit.ly/35ed37D
5. https://bit.ly/2t0gfW3
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