प्रदुषण आज के वर्तमान काल की एक बड़ी समस्या है जिससे मात्र मनुष्य ही नहीं बल्कि जीव और वनस्पनियाँ भी प्रभावित हैं। वर्तमान में लखनऊ का शहरीकरण दर 64 फीसद है और शहरीकरण से इस पर्यावरण पर कई प्रभाव देखने को मिलते हैं। इस लेख के माध्यम से हम शहरीकरण के लाभ, हानि, प्रदुषण, पर्यावरण पर प्रभावों आदि के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। औद्योगिक क्रान्ति की शुरुआत से ही लोग शहरों की तरफ जाने की शुरुआत किये। वैश्विक स्तर पर लोगों ने शहरों की तरफ अपना ध्यान खींचा और वहां पर जाने की कोशिश करने लगे, शहरों की तरफ जाने का एक प्रमुख कारण था रोजगार की उपलब्धता। शहरों में उद्योगों आदि और गाड़ियों के कारण वायु प्रदुषण एक ऐसा अस्त्र है जो की बड़े स्तर पर इन शहरों को नुक्सान पहुचाता है। शहरीकरण के कारण कुछ उत्पादित प्रदूषणों की बात करें तो उनमे से एक है ठोस अपशिष्टों का प्रभाव। किसी भी बड़े शहर में ठोस अपशिष्टों का उत्पादन बड़ी संख्या में होता है जिसके संचयन में और जिसके प्रबंधन को करना एक अत्यंत ही जरूरी कार्य होता है। ठोस अपशिष्ट का यदि संचयन सही से नहीं किया गया तो इससे पर्यावरण पर एक बड़ा ही गहरा प्रभाव देखने को मिलता है। ठोस अपशिष्ट ही आज वर्तमान में प्रदुषण के सबसे बड़े मानक के रूप में देखे जाते हैं।
फिक्की द्वारा किये गए सर्वेक्षण से यह पता चलता है की दिल्ली 6800 टन कचरा प्रतिदिन निकलता है जो की देखा जाए तो अत्यंत ही वृहत है। वहीँ अगरतला में 200 टन प्रतिदिन के तौर पर कचरा निकलता है। पंजाब का चंडीगढ़ कचरे की अधिकतम मात्रा उत्पन्न करता है अब इतनी बड़ी कचरे की दर किसी भी शहर के पर्यावरण को नष्ट करने के लिए काफी होते हैं। वहीँ ठोस अपशिष्ट के बाद देखें तो जल प्रदुषण दूसरा कारक है जो की शहरीकरण या नगरीकरण से होता है। शहरों के जल श्रोतों में बड़ी मात्रा में अपशिष्ट पदार्थ मिलते हैं जिस कारण से जल प्रदुषण की संख्या नगरों में ज्यादा बढ़ जाती है। बड़ी संख्या में घरों कल कारखानों का पानी नदियों और जल श्रोतों में जाता है जिससे भी जल प्रदुषण में वृद्धि होती है उदाहरण स्वरुप लखनऊ में गोमती, दिल्ली में यमुना, कानपुर में गंगा और भरूच में नर्मदा को ले सकते हैं। कचरे और नगरीकरण के कारण ही हिंडन नाम की नदी जो की दिल्ली में यमुना से मिलती थी पूर्ण रूप से मृत हो चुकी है। हवा में भी विभिन्न प्रकार की गैसों और धुओं आदि के उत्सर्जन से वायु प्रदुषण की संख्या बड़े पैमाने पर यहाँ पर बढ़ी है।
अभी हाल ही में शहरों की वायु प्रदुषण के बारे में कई शोध पात्र आये थे। अब जैसा की हम सब जानते हैं की नगर देश की अर्थव्यवस्था के लिए जरूरी हैं तो प्रदुषण से कैसे लड़ा जाए ऐसे में एक बड़ा ही सुगम विचार है जिसमे प्रकृति और संस्कृति के संयोग की बात की जाती है। इनके अलावां शहरों का निर्माण ऐसी तरीके से किया जाए जिससे प्रदुषण पर रोक लग सके। विभिन्न प्रदूषणों को रोकने के लिए अपशिष्ट संयोजन, नदियों में पहुचने से पहले जल का शुद्धिकरण और हरित तरीकों का प्रयोग मुख्य हैं। वायु प्रदुषण एक बहुत ही बड़ा मुद्दा है लेकिन यह एक मिथक है की केवल यह बड़े शहरों में है, इससे छोटे शहर भी प्रभावित हैं। दुनिया भर की एक बड़ी ग्रामीण आबादी शहरों की ओर विस्थापित हो रही है ऐसे में एक बड़ी आबादी भारत में भी विस्थापन कर रही है। यह विस्थापन शहर को बढ़ाती है। एक नवीन शब्द है रिवर्स उर्बनाइजेशन का, इस शब्द के मायने ये हैं की गावों में ही कृषि आदि के माध्यम से रोजगार का उत्पादन करना और शहरों की तरफ हुए विस्थापन को रोकना।वर्तमान में भारत के 9 शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित 20 शहरों में है, यह आंकड़ा वास्तव में हिलाकर रख देने वाला है। स्थाई शहरीकरण एक ऐसा विकल्प है जिससे कई समस्याओं का समाधान हो सकता है लेकिन ऐसे स्थित में पहुचने के लिए एक मायने की आवश्यकता है। जब रोजगार और रहने के साधन न हो और शहरों का निर्माण बेतरतीब तरीकों से हो रहा हो तो ऐसे में यह एक अत्यंत ही कठिन कार्य के रूप में परिवर्तित हो जाता है। पेट्रिक गेडिस के मायनों को अपना कर इस तरफ कदम बढ़ाया जा सकता है और ऐसे शहर का निर्माण किया जा सकता है जहाँ पर संस्कृति और प्रकृति दोनों का संयोग समान हो।
सन्दर्भ:-
1. https://eos.org/features/urbanization-air-pollution-now
2. https://www.researchtrend.net/ijet/pdf/25-%2010.pdf
3. https://bit.ly/2DrsmgT
4. https://www.youthkiawaaz.com/2016/01/urbanisation-and-environment-conference-bangalore/
5. https://bit.ly/33vvK4N
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