वर्तमान समय में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें सरकार के लिए चिंता का विषय बन गयी हैं। कच्चे तेल का उपयोग जहां पेट्रोल (Petrol), डीज़ल (Diesel) इत्यादि बनाने में किया जाता है, वहीं दैनिक जीवन में प्रयोग आने वाली कई वस्तुओं के निर्माण के लिए भी कच्चे तेल को प्रयोग में लाया जाता है, जैसे पेंट (Paint), प्लास्टिक (Plastic) इत्यादि। इस प्रकार से जीवन में कच्चे तेल की उपयोगिता को बखूबी समझा जा सकता है। किंतु जिस प्रकार से कच्चे तेल की कीमतें लगातार बढ़ती जा रही हैं, तो वह दिन दूर नहीं है जब सामान्य नागरिकों के लिए इसकी पहुंच बहुत कठिन हो जायेगी। कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें जहां सरकार को प्रभावित कर रही हैं वहीं आम लोगों को इससे दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
कच्चे तेल की घटती-बढ़ती कीमतों का प्रभाव सीधा भारतीय अर्थव्यवस्था पर पड़ता है क्योंकि कीमतों का बढ़ना चालू खाते और राजकोषीय खाते पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है जिससे दोनों में दोहरे घाटे की समस्या उत्पन्न होती है। भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की 7वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तथा इसने 2013 और 2015 के बीच कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का लाभ उठाया था जिससे वर्तमान खाते में घाटा भी कम था। किंतु कुछ वर्षों में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने अर्थव्यवस्था के साथ-साथ मौद्रिक नीति, उपभोग और निवेश को भी गहरा धक्का दिया है। कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल (Barrel) की वृद्धि से चालू खाते के घाटे पर 10-11 बिलियन डॉलर (GDP का 0.4%) का प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। तेल की बढ़ती कीमतें आयात बिल को भी बढ़ाती हैं। भारत बढ़ती ऊर्जा लागतों में सबसे कमज़ोर माना जाता है क्योंकि यह अपनी तेल आवश्यकताओं का 80% से अधिक आयात करता है और इसलिए उच्च तेल की कीमतें भारत के राजकोष के लिए एक स्पष्ट जोखिम पैदा करती हैं।
ईरान पर सख्त प्रतिबंधों के मद्देनज़र कच्चा तेल 2019 में पहली बार 75 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर पहुंचा। इस साल अप्रैल 2019 तक कच्चे तेल की कीमतों में करीब 33% की वृद्धि हुई थी जबकि सेंसेक्स (Sensex) 8% से ज्यादा ऊपर पहुंच गया था। चूंकि तेल और ईंधन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index) के प्रमुख घटक हैं इसलिए उच्च तेल की कीमतों के प्रभाव से मुद्रास्फीति भी उच्च होती है। उच्च तेल की कीमतों ने आय में वृद्धि की उम्मीदों के बीच भारतीय कंपनियों के मार्जिन (Margin) को भी नुकसान पहुंचाया है। 2008 के बाद से भारत का तेल आयात लगभग 125 मिलियन टन से 225 मिलियन टन हुआ है। इसी अवधि के दौरान, तेल आयात बिल में भी लगभग 3.5 गुना बढ़ोतरी हुई है। कच्चे तेल की कीमतों में 75 डॉलर प्रति बैरल से अधिक की बढ़ोतरी से भारत की वृहद आर्थिक स्थिति पर और भी अधिक दबाव पड़ सकता है।
इससे रुपया सालाना आधार पर 3-4% तक नीचे जा सकता है जबकि डॉलर ने दुनिया के बाज़ारों में अपनी मज़बूत पकड़ बना ली है। तेल की कीमत को प्रायः दो कारक प्रभावित करते हैं। पहला आपूर्ति और मांग तथा दूसरा बाज़ार की धारणा। जैसे ही मांग बढ़ती है (या आपूर्ति कम हो जाती है) कीमतें बढ़नी शुरू हो जाती हैं तथा जैसे ही मांग घटती है (या आपूर्ति बढ़ती है) कीमत कम होनी लगती हैं। तेल की कीमतें निर्धारित करने में अन्य महत्वपूर्ण कारक उस भावना को भी माना जाता है जो यह विश्वास कराती है कि भविष्य में किसी समय भी तेल की मांग में वृद्धि हो सकती है। इसलिए तेल की कीमतों को संतुलित रूप प्रदान करने के लिए इन धारणाओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/33iSPaP
2. https://bit.ly/2XKg24H
3. https://bit.ly/37DBIE4
4. https://bit.ly/2Oks0yD
5. https://www.investopedia.com/articles/economics/08/determining-oil-prices.asp
6. https://en.wikipedia.org/wiki/Petroleum
7. https://bit.ly/35yGPmZ
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://pxhere.com/en/photo/728052
2. https://www.maxpixels.net/Crude-Petroleum-Pump-Oilfield-643836
3. https://www.maxpixels.net/Production-Gas-Industry-Oil-Production-Oil-Pump-41214
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.