इन्सुलिन (Insulin) एक ऐसी दवा है जो कि मधुमेह के टाइप 1 के मरीज़ों को दी जाती है। यह एक प्रकार का हारमोन (Hormone) है जो कि रक्त में ग्लूकोस (Glucose) या शक्कर की मात्रा को नियंत्रित करता है और यह उस प्रकार से ही शरीर में शर्करा या शक्कर का स्राव करता है जिस प्रकार से शरीर को ज़रूरत होती है। प्राकृतिक रूप से मानव शरीर में इन्सुलिन अग्नाशय में कोशिकाओं द्वारा निर्मित होती है जिसे कि लैंगरहंस (Langerhans) के आइलेट्स (Islets) के नाम से जाना जाता है।
ये कोशिकाएं शरीर में उस मात्रा में ही इन्सुलिन का स्राव करती हैं जितना कि शरीर को आवश्यकता होती है। अभी तक हांलाकि वैज्ञानिकों को इसके कार्य के विषय में उतनी जानकारी नहीं है लेकिन यह साफ़ है कि जब शरीर मधुमेह की बिमारी से जूझ रहा होता है तो उस समय इन्सुलिन का शरीर में बनना लगभग रुक सा ही जाता है जिस कारण से रोगी को इन्सुलिन का इंजेक्शन (Injection) लेने की आवश्यकता पड़ती है। कोई भी रोगी इन्सुलिन को रक्त में ग्लूकोस की मात्रा की रीडिंग (Reading) के अनुसार ही लेता है। एक बार इन्सुलिन का इंजेक्शन ले लेने पर यह करीब 15 मिनट के अन्दर रक्त में पहुँच जाता है और शरीर को उस हिसाब से कार्य करने को मजबूर कर देता है जो कि सामान्य लोग करते हैं।
अब बात करते हैं इन्सुलिन के इतिहास के बारे में। सन 1921 में कनाडा के वैज्ञानिक फ्रेडरिक जी. बैंटिंग और चार्ल्स एच. ने पहली बार कुत्ते के अग्नाशय से इन्सुलिन को शुद्ध किया। यह वह समय था जब इन्सुलिन के ऊपर विश्व के कई वैज्ञानिकों ने इसके उत्पाद पर कई सुधार किये। सन 1936 में शोधकर्ताओं ने रक्त में धीरे छूटने के साथ इन्सुलिन बनाने का तरीका खोजा। 1950 में इस क्षेत्र में एक और बड़ी सफलता प्राप्त हुयी। यह ऐसा तरीका था जिसमें इन्सुलिन तेज़ी से उत्पादित किया जा सकता था। 1970 में इस क्षेत्र में और भी बदलाव आये, लेकिन शुरूआती दिनों में मवेशियों आदि के शरीर से इन्सुलिन निकाला जाता था और उसको शुद्ध किया जाता था। फिर एक दशक बाद 1980 में जैव प्रद्योगिकी ने इस क्षेत्र में क्रान्ति ला दी।
2001 में दुनिया के अधिकाँश हिस्सों में 95% इन्सुलिन लेने वाले लोग, मानव इन्सुलिन का प्रयोग करने लगे और जानवरों से इन्सुलिन बनाने का कार्य कई कंपनियों ने बंद कर दिया। इन कंपनियों ने मानव इन्सुलिन और इन्सुलिन एनालोग (Insulin Analogs) पर अपना ध्यान केन्द्रित कर लिया। मानव इन्सुलिन आम बैक्टीरिया के अन्दर प्रयोगशाला में बनाया जाता है। एशेरीशिया कोलाई (Escherichia Coli) अभी तक बैक्टीरिया का सबसे बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया जाने वाला प्रकार है, लेकिन इसके अलावा खमीर का भी प्रयोग बड़ी संख्या में किया जाता है।
इन्सुलिन का उत्पादन करने के लिए मानव प्रोटीन (Protein) की आवश्यकता होती है जो कि अमीनो एसिड (Amino Acid) अनुक्रमण मशीन के माध्यम से आसानी से प्राप्त हो जाता है। इन्सुलिन बनाने के लिए अमीनो एसिड को एक दूसरे से अनुक्रमण मशीन जोड़ती है। इस प्रक्रिया में करीब 20 आम एमिनो एसिड होते हैं। बाद में इन्सुलिन को संश्लेषित करने के लिए बैक्टीरिया की आवश्यकता होती है जिसे कि बड़े-बड़े टैंकों (Tanks) में तैयार किया जाता है।
इस प्रकार से मधुमेह के टाइप 1 में प्रयोग में लायी जाने वाली दवा इन्सुलिन का उत्पादन अति सूक्ष्म जीवों द्वारा किया जाता है।
संदर्भ:
1. https://care.diabetesjournals.org/content/4/1/64
2. http://www.madehow.com/Volume-7/Insulin.html
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Genetically_modified_bacteria
4. https://ari.aynrand.org/brewing-insulin-using-genetically-modified-bacteria-gmomonday/
चित्र सन्दर्भ:
1. https://www.maxpixels.net/Disease-Diabetes-Bless-You-Syringe-Feed-Insulin-2331764
2. https://bit.ly/2QW8ytW
3. https://bit.ly/2q1V6tw
4. https://pixabay.com/pt/photos/diabetes-sangue-glicose-teste-2424105/
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.