पारिस्थितिक तंत्र के लिए जरूरी हैं उभयचर

लखनऊ

 27-11-2019 12:55 PM
मछलियाँ व उभयचर

पृथ्वी पर जीवों की विभिन्न विविधताएं पायी जाती हैं। इन जीवों को विभिन्न श्रेणियों में बांटा गया है जिनमें से उभयचर भी एक हैं। उभयचर कशेरूकियों जीवों का एक समूह हैं जिनकी लगभग 7,140 प्रजातियां ज्ञात हैं। जीववैज्ञानिक वर्गीकरण के अनुसार उभयचरों को मछली और सरीसृप वर्गों के बीच की श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि इनमें कुछ गुण मछलियों के तथा कुछ सरीसृपों के होते हैं। इस समूह की विशेषता यह होती है कि ये समूह जल तथा थल दोनों में ही निवास कर सकते हैं जिसका महत्वपूर्ण उदाहरण मेंढक है। उभयचर जहां जीवों में विविधता तो उत्पन्न करते ही हैं, साथ ही साथ पारिस्थितिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। उभयचर खाद्य श्रृंखलाओं में द्वितीयक उपभोक्ताओं के रूप में पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा पोषण चक्र में अपना महत्वपूर्ण प्रभाव डालते हैं।

सर्वाहारी या शाकाहारी उभयचर अकशेरुकी और कशेरुकी दोनों जीवों के लिए शिकार के रूप में काम आते हैं। इसके अतिरिक्त उभयचर हानिकारक कीटों को खाकर पर्यावरण को शुद्ध और स्वच्छ बनाते हैं। पारिस्थितिक दृष्टिकोण से, उभयचरों को अच्छे पारिस्थितिक संकेतक के रूप में माना जाता है। मानव संस्कृति में, उभयचरों को कविता, गीत या कहानियों के माध्यम से चित्रित किया गया है। ये जीव एक अच्छा खाद्य स्रोत रहे हैं। कुछ साल पहले दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में भारत द्वारा मेंढक का निर्यात किया जाता था किंतु अब यह पूरी तरह से प्रतिबंधित है। उभयचरों की संख्या में आयी कमी से कीटों की आबादी बढ़ गई है जो पारिस्थितिकी तंत्र को असंतुलित करती है। इनकी त्वचा में एमाइन (Amines), एल्कलॉइड (Alkaloids) और पॉलीपेप्टाइड (Polypeptides) पाए जाते हैं जिनका विभिन्न औषधियों में उपयोग किया जाता है।

डेंड्रोबैटिडे (Dendrobatidae) परिवार से सम्बंधित मेंढक की त्वचा में बहुत ही विषाक्त यौगिक होते हैं जिसके सम्पर्क में आने से अन्य जीवों की सीधा मृत्यु होती है। कई शोधों के लिए प्रयोगशालाओं में उभयचरों का प्रयोग किया जाता है। मेंढकों की त्वचा पर पाये जाने वाला विषाक्त पदार्थ नई दवा की खोज के लिए बहुत बड़ा अवसर प्रदान करते हैं। सहस्राब्दियों से कुछ विशिष्ट प्रजातियों की त्वचा और कान के पास की पेरोटिड (Parotid) ग्रंथियों और हड्डियों तथा मांसपेशियों के ऊतकों से स्रावित होने वाले पदार्थ का उपयोग पारम्परिक चिकित्सा में संक्रमण, कैंसर (Cancer), हृदय विकार, रक्तस्राव, एलर्जी (Allergy), सूजन, दर्द आदि के उपचार के लिए किया जा रहा है। यह माना जाता है कि मेंढक की त्वचा में उत्पादित अधिकांश रसायन उन्हें शिकारियों से बचाते हैं।

पिछले दो दशकों से दुनिया भर में उभयचरों की आबादी में गिरावट आयी है। दक्षिण अमेरिका, यूरोप, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में इनकी संख्या में गिरावट के स्पष्ट प्रमाण प्राप्त हुए हैं। जलवायु परिवर्तन, विकिरण, रासायनिक प्रदूषण, विषाणु, कवक, जीवाणु संक्रमण आदि द्वारा उत्पन्न रोग तथा कीटनाशक और जीवनाशकों का प्रभाव इस गिरावट के महत्वपूर्ण कारक हैं। ज़ूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (Zoological Survey of India) द्वारा जारी एक सर्वेक्षण के अनुसार 19 उभयचर प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं और 33 प्रजातियां संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में हैं। आईयूसीएन (IUCN) के अनुसार, दुनिया भर में लगभग 40% उभयचरों को विलुप्त होने का खतरा है। 2009 में इन प्रजातियों की कुल संख्या 284 थी जबकि वर्ष 2009 में ही अन्य 148 प्रजातियों को सूची में जोड़ा गया। 2018 में उभयचर प्रजातियों की संख्या 432 आंकी गई थी।

शिक्षा की दृष्टि से देखा जाये तो उभयचरों का अध्ययन भी एक नया मार्ग प्रशस्त करता है। उभयचरों के अध्ययन को हर्पेटोलॉजी (Herpetology) कहा जाता है। हर्पेटोलॉजी जीव-विज्ञान की एक शाखा है जो साँप, कछुए, मेंढक आदि सरीसृपों और उभयचरों के अध्ययन से संबंधित है। यह उनके व्यवहार, भौगोलिक सीमाओं, शरीर विज्ञान, विकास, आनुवांशिकी आदि का गहनता से अध्ययन करता है। कई पशु चिकित्सक इन प्रजातियों के संरक्षण पर ध्यान केंद्रित करते हैं। अन्य इन जीवों का उपयोग किसी विशेष क्षेत्र में समग्र पर्यावरण स्थितियों का आंकलन करने के लिए करते हैं। इन जीवों से सम्बंधित चिकित्सक इन जानवरों की आबादी की सूची का अनुमान लगाते हैं। वे इनकी पारिस्थितिकी को बेहतर ढंग से समझने के लिए उनके व्यवहार, विकास, आनुवांशिकी और वितरण का अध्ययन करते हैं। वे इनकी रक्षा करने के लिए विभिन्न उपायों या तरीकों के सुझाव देते हैं। चूंकि कई सरीसृप और उभयचरों को "संकेतक प्रजाति" माना जाता है, इसलिए उनके शोध का उपयोग पर्यावरण में समग्र परिवर्तनों का मूल्यांकन करने के लिए किया जा सकता है।

संदर्भ:
1.
http://vc.bridgew.edu/cgi/viewcontent.cgi?article=1301&context=honors_proj
2. https://stri.si.edu/story/frog-toxins-medicine
3. https://bit.ly/2KWYbCo
4. https://bit.ly/2OqD25D
5. http://ces.iisc.ernet.in/biodiversity/amphibians/ecological.htm
6. https://www.environmentalscience.org/career/herpetologist
7. https://en.wikipedia.org/wiki/Herpetology
चित्र सन्दर्भ:
1.
https://www.maxpixels.net/Real-Toad-Animal-Frog-Toad-Amphibian-Common-Toad-1531065
2. http://www.peakpx.com/528299/green-gray-and-gray-beige-frog
3. https://www.maxpixels.net/Green-Frog-Water-Lake-Pond-Nature-Animal-4292064
4. https://www.maxpixels.net/Food-Adult-Frog-Tadpole-Amphibian-Pet-Frogs-82987
5. https://www.pexels.com/photo/frogs-1020520/



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