प्रथम विश्व युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने युद्ध में यूरोपीय, भूमध्यसागरीय और मध्य पूर्व के युद्ध क्षेत्रों में अपनी अनेक डिवीजनों (Divisions) और स्वतन्त्र ब्रिगेडों (Brigades) का सहयोग दिया था। दस लाख भारतीय सैनिकों ने विदेशों में अपनी सेवाएं दी थीं जिनमें से 62,000 सैनिक मारे गए थे और अन्य 67,000 घायल हो गए थे। युद्ध के दौरान कुल मिलाकर 74,187 भारतीय सैनिकों की मौत हुई थी।
वहीं 1902 में हर्बर्ट किचनर को भारत का कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किये जाने के बाद भारतीय सेना में प्रमुख सुधार किये गए थे। जिसमें कि देश की तीनों सेनाओं को एकीकृत कर एक संयुक्त सैन्य बल बनाना शामिल था।
भारतीय सेना ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान विदेशों में सात अभियान बलों का गठन किया :-
भारतीय अभियान बल ए :- भारतीय अभियान बल ए के नाम से जाना जाने वाला बल जनरल सर जेम्स विलकॉक्स की कमान में था। बल ए को ब्रिटिश अभियान बल के साथ जोड़ा गया था और चार डिवीजनों का गठन दो सेना दल में किया गया था: एक पैदल सेना भारतीय दल और भारतीय घुड़सवार सेना।
भारतीय अभियान बल बी :- भारतीय अभियान बल बी में 9वीं (सिकंदराबाद) डिवीजन से 27वीं (बैंगलोर) दल और एक इंपीरियल सर्विस इन्फैंट्री दल (Imperial Service Infantry), एक अग्रणी बटालियन, पहाड़ी तोपखानों और इंजीनियरों को शामिल किया गया था, जिसे जर्मन ईस्ट अफ्रीका पर हमला करने के लिए तंगान्यीका भेजा गया था।
भारतीय अभियान बल सी :- भारतीय अभियान बल सी 1914 में ब्रिटिश पूर्वी अफ्रीका में सेवा के लिए इकट्ठा किया गया दूसरा बल था। इस भारतीय सेना बल को 29वीं पंजाबियों और साथ में आधे जींद, भरतपुर, कपूरथला और रामपुर की रियासतों के साथ स्थापित किया गया था।
भारतीय अभियान बल डी :- विदेश में सेवारत भारतीय सेना का सबसे बड़ा सैन्य बल लेफ्टिनेंट-जनरल सर जॉन निक्सन के कमान के तहत मेसोपोटामिया में भारतीय अभियान बल डी था।
भारतीय अभियान बल ई :- भारतीय अभियान बल ई को अक्टूबर 1914 में मिस्र भेजा गया था और इसमें 22वां (लखनऊ) दल शामिल था।
भारतीय अभियान बल एफ :- भारतीय अभियान बल एफ में, सुएज़ नहर की रक्षा के लिए 1914 में मिस्र में गठित 10वां भारतीय डिवीजन और 11वां भारतीय डिवीजन दोनों शामिल थे। अन्य संलग्न सूत्र 8वें लखनऊ डिवीजन से नियमित 22वां (लखनऊ) दल भी शामिल था।
भारतीय अभियान बल जी :- अप्रैल 1915 में, गेलिपोली अभियान को सुदृढ़ करने के लिए भारतीय अभियान बल जी को भेजा गया। इसमें 29वां ब्रिगेड शामिल था, जो अपने मूल 10वें भारतीय डिवीजन से दूर था। गोरखाओं और सिखों की तीन बटालियनों से मिलकर, दल को मिस्र से भेज दिया गया और इसे 29वें डिवीजन के साथ जोड़ा गया था।
लखनऊ दल 1907 में ब्रिटिश भारतीय सेना की एक पैदल सेना थी, जो किचनर सुधारों के परिणामस्वरूप बनी थी। इसे भारतीय अभियान बल ई के हिस्से के रूप में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान 22वें (लखनऊ) दल के रूप में संगठित किया गया था। वहीं जनवरी 1916 में दल के टूटने से पहले 1915 में इसे मिस्र में सेवा करने के लिए भेजा गया था। आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों के लिए और युद्ध के अंतिम वर्ष में भारतीय सेना के विस्तार में सहायता के लिए 1917 में भारत में इस दल में सुधार किया गया था। यह कई पदनामों के तहत युद्धों के बीच ब्रिटिश भारतीय सेना का हिस्सा बना रहा था।
लखनऊ ब्रिगेड को जुलाई 1917 में 8वें (लखनऊ) डिवीजन के रूप में फिर से स्थापित किया गया था। यह आंतरिक सुरक्षा कर्तव्यों को पूरा करने के लिए, बचे हुए युद्ध तक डिवीजन के साथ बना रहा। साथ ही युद्ध की समाप्ति के बाद यह दल ब्रिटिश भारतीय सेना का हिस्सा बन गया था। इसने विश्व युद्धों के बीच पदनाम के कई बदलावों को रेखांकित किया: 73वीं भारतीय इन्फैंट्री दल (मई से सितंबर 1920 तक), 19 वीं इन्फैन्ट्री दल (नवंबर 1920 से) और 6ठी (लखनऊ) इन्फैंट्री दल (1920 के दशक से)।
वहीं प्रथम विश्व युद्ध के अंत के बावजूद भी भारतीय सेना के लिए संघर्ष का अंत नहीं हुआ था। इन्हें 1919 में तीसरे अफगान युद्ध में और फिर 1919-1920 और 1920-1924 में वज़ीरिस्तान अभियान में शामिल किया गया था। 1930-1931 के बीच आफरीदियों के खिलाफ, 1933 में मोहमंदों के खिलाफ और फिर 1935 में तथा अंत में द्वितीय विश्व युद्ध के विद्रोह शुरू होने से ठीक पहले एक बार फिर से 1936-1939 के बीच वज़ीरिस्तान में किये गए युद्ध में भी इन्होंने अपना योगदान दिया था।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/8th_(Lucknow)_Division
2. https://bit.ly/2rcNcxm
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Indian_Army_during_World_War_I
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Lucknow_Brigade
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