दुनिया भर में कुछ ऐसे कला के प्रमाण हैं जो की एक स्थान को प्रदर्शित करते हैं जैसे की ताजमहल= भारत, पीसा की मीनार= इटली, कोलोसियम= रोम आदि। ब्राज़ील देश के बारे में जब हम बात करते हैं या फिर जब ब्राजील का जिक्र किसी भी फिल्म या प्रचार में होता है तो एक प्रतिमा का अंकन जरूर होता है और यह प्रतिमा है क्राइस्ट द रिडीमर की।
यह एक ऐसी प्रतिमा है जिसमे एक व्यक्ति को अपनी दोनों बाहें फैलाए पहाड़ की चोटी पर दिखाया गया है। लेकिन क्या आपको पता है की ऐसी ही दो प्रतिमाये भारत में भी उपस्थित हैं जो की ठीक उसी तर्ज पर बनायी गयीं हैं जिस तर्ज पर ब्राजील की प्रतिमा बनायी गयी है? तो आइये पहले ब्राजील में स्थित उस प्रतिमा के इतिहास के बारे में और उसके आकार प्रकार के बारे में पढ़ते हैं फिर उसके बाद भारत में इन प्रतिमाओं के स्थानों के बारे में पढेंगे। यह प्रतिमा दक्षिणपूर्वी ब्राजील के रियो डी जेनेरियो के कोरकोवाडो नामक पहाड़ी पर स्थित है।
इस मूर्ती का निर्माण कार्य 1922 में शुरू हुआ जिसमे 4 अप्रैल के दिन इसकी आधारशिला राखी गयी थी। यह मूर्ती सन 1931 में बन कर तैयार हुयी थी और बनने के बाद इस मूर्ती का आकार लम्बाई में कुल 30 मीटर या 98 फीट की हुयी और इसकी चौड़ाई करीब 28 मीटर या 92 फीट हैं। यह मूर्ती हजारों सोपस्टोन टाइलों के संयोग से बनायी गयी हैं जो की पच्चीकारी या मोसाक तकनिकी में लगाई गयी हैं। यह मूर्ती अन्दर से कंकरीट की है। इस मूर्ती का आधार करीब 26 फीट ऊंचा है जो की वर्गाकार आकार में निर्मित है। यह मूर्ती पहाड़ के शिखर पर निर्मित है।
इस मूर्ती को दुनिया का सबसे बड़ा आर्ट डेको शैली का नमूना माना जाता है। इस मूर्ती के निर्माण का सुझाव सबसे पहले 1850 में विन्सेंटीयन पादरी पेद्रो मारिया बॉस द्वारा इसाबेल जो की ब्राजील की राजुमारी है जो की सम्राट पेड्रो द्वितीय की बेटी हैं को सम्मानित करने के लिए दिया था तथा उसने कोरकोवाडो पहाड़ पर एक इसाई स्मारक बनाने का सुझाव दिया था। हांलाकि उस समय इस परियोजना को मंजूरी नहीं मिली थी लेकिन 1921 में रिओ डी जेनेरियो के कैथोलिक अभिलेखागार ने एक प्रस्ताव दिया जिसमे 704 मीटर के शिखर पर ईसा मसीह के एक प्रतिमा के निर्माण की बात की गयी।
इस मूर्ती के डिजाइन के लिए एक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया थे जिसमे ब्राजील के एक अभियंता हेइटर डी सिल्वा कोस्टा के सुझाव को माना लेकिन उनके डिजाइन में जीसस के दाहिने हाथ में एक क्रॉस दिखाया गया था जिसे की बाद में ब्राजील के एक कलाकार कार्लोस ओसवाइल्ड के सहयोग से डी सिल्वा ने संसोधन किया और वर्तमान मूर्ती का आकार और प्रकार निर्धारित किया गया।
इस मूर्ती का अंतिम आकार और प्रकार फ्रांसीसी मूर्तिकार पॉल लैंडोव्हिस्की ने भी इस आकार प्रकार में डी सिल्वा के साथ मिलकर कुछ फेर बदल किये और इस मूर्ती का तेज़ी के साथ कार्य 1926 में शुरू हुआ। यह मूर्ती 12 अक्टूबर को तैयार हुयी और देश को समर्पित की गयी थी। इस मूर्ती के ताल पर एक चर्च का भी निर्माण किया गया है। अब बात करते हैं भारत की तो आँध्रप्रदेश के नेल्लोर, त्रिवेंद्रम केरल के कोवलम और आबू पर्वत पर भी इस मूर्ती की नक़ल बनायी गयी है जिसे देखने बड़ी संख्या में पर्यटक आते रहते हैं।
संदर्भ:-
1. https://bit.ly/2XGg9hm
2. https://www.britannica.com/topic/Christ-the-Redeemer
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Christ_the_Redeemer_(statue)
4. http://mentalfloss.com/article/84546/11-facts-about-rios-christ-redeemer-statue
5. https://travelparable.com/2018/03/22/the-indian-redeemer/
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