लखनऊ में विभिन्न फूलों की प्रचुर मात्रा उपलब्ध है। यहां के एक लोकप्रिय फूल बाजार चौक की फूल मंडी को हाल ही में गोमती नगर में स्थानांतरित किया गया है। ये फूल जहां वातावरण को सुगंधित करते हैं तो वहीं एक मधुमक्खीपालक के पेशे को भी अनुकूल बनाते हैं। मधुमक्खी-पालक उस व्यक्ति को कहा जाता है जो विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिए मधुमक्खियों को संग्रहित करता है या पालता है। कुछ मधुमक्खी-पालक इनका उपयोग शौक के लिए करते हैं जबकि कुछ इन्हें व्यावसायिक तौर पर उपयोग में लाते हैं। मधुमक्खियां शहद, मोम, पराग, शाही जैली आदि वस्तुओं का उत्पादन करती हैं, जिन्हें एकत्रित करके बाजारों में बेचा जाता है। कुछ मधुमक्खी पालक अन्य लोगों या पालककर्ताओं को बेचने और वैज्ञानिक जिज्ञासा को पूरा करने के लिए भी रानी और अन्य मधुमक्खियों को पालते हैं। मधुमक्खी-पालन से फल और सब्जी उत्पादन में वृद्धि होती है क्योंकि मधुमक्खियां परागण क्रिया में सहायता करती है, इसलिए इन्हें पालक कर्ताओं द्वारा किसानों को भी बेचा जाता है। इस प्रकार मधुमक्खी पालन लोगों की आय का स्रोत बन जाता है जो मधुमक्खी पालन को प्रोत्साहित करता है।
भारत में मधुमक्खी पालन एक बढ़ता हुआ चलन है। यहां फसलों की पैदावार बढाने और शहद उत्पादन से अतिरिक्त आय प्राप्त करने के लिए मधुमक्खी पालन किया जा रहा है। मधुमक्खी पालन को प्रायः एपीकल्चर (Apiculture) के नाम से जाना जाता है। यह प्रक्रिया सदियों पुरानी है जिसके प्रमाण साहित्य, दर्शन, कला, लोककथाओं और यहां तक कि वास्तुकलाओं में भी वर्णित हैं। मधुमक्खियां दुनिया में सबसे व्यापक रूप से अध्ययन किए जाने वाले कीड़ों में से एक हैं जोकि विशेषकर अपनी मेहनत करने की प्रवृत्ति, श्रम विभाजन और समन्वय व समूह में काम करने के लिए जानी जाती हैं। इसका सबसे उपयुक्त उदाहरण इनके द्वारा निर्मित किया जाने वाला छत्ता है।
मधुमक्खी पालन शुरू करने के लिए भारी निवेश, बुनियादी ढांचे या उपजाऊ भूमि की आवश्यकता नहीं है, जिस कारण भारत में यह मधुमक्खी पालकों के लिए एक प्रभावी आय का स्रोत बन सकता है। यहां यह कृषि के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है क्योंकि मधुमक्खी पालन फसल उत्पादकता बढ़ाने में मदद करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मधुमक्खियां कई पौधों को परागित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। परागण के लिए सूरजमुखी जैसी कई अन्य फसलें मधुमक्खियों पर अत्यधिक निर्भर हैं। भारत में मधुमक्खियों द्वारा उत्पादित शहद के भी उच्च वाणिज्यिक मूल्य हैं। इनके द्वारा उत्पादित शाही जैली में प्रोटीन (Proteins), लिपिड (lipids), कार्बोहाइड्रेट (carbohydrates), लोहा (iron), सल्फर (sulfur), तांबा और सिलिकॉन (silicon) जैसे खनिज होते हैं। यह मनुष्यों में जीवन शक्ति को बढ़ाता है। मधुमक्खियों द्वारा बनाए गये मोम का उपयोग क्रीम, मलहम, कैप्सूल (Capsule), डिओडोरेंट (deodorant), वार्निश (varnish), जूता पॉलिश आदि बनाने में किया जाता है। इसके अतिरिक्त इनके द्वारा उत्पादित शहद से कई आयुर्वेदिक और यूनानी औषधीयां तैयार की जाती हैं जिससे कुपोषण, अल्सर और पाचन समस्याएं दूर होती हैं।
भारत में मधुमक्खीपालन को बढाने के लिए सबसे पहले इसका उपयुक्त ज्ञान होना आवश्यक है। इसके लिए मधुमक्खी पालन प्रक्रिया, मधुमक्खियों का प्राणी विज्ञान, मधुमक्खी-मानव संबंध आदि का पर्याप्त ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। यह ज्ञान स्थानीय मधुमक्खी पालन प्राधिकरण से प्राप्त किया जा सकता है। कृषि विभाग और केंद्रीय मधुमक्खी अनुसंधान प्रशिक्षण संस्थान के तहत राष्ट्रीय मधुमक्खी बोर्ड जैसे सरकारी संगठन किसानों को कृषि में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं। एक बार पर्याप्त अनुभव प्राप्त करने के बाद अगला कदम एपिकल्चर प्रक्रिया की योजना बनाना है, जिसमें मधुमक्खी का प्रकार, उपयोग किए जाने वाले उपकरण, उचित स्थान आदि बातें शामिल हैं। जगह और वनस्पतियों की पारिस्थितिकी के बारे में अच्छी जानकारी होने से पालकों को भारत में शहद उत्पादन के लिए मधुमक्खियों के प्रकार को तय करने में मदद मिलती है।
नारियल, आम, ताड़, काजू, दालचीनी, लौंग, अदरक, हल्दी, खट्टे फलों के पेड़, शहतूत, रबर, आदि पौधे मधुमक्खी उत्पादन के लिए महत्वपूर्ण हैं। इमली, नीलगिरी, गुलमोहर, आदि के बागान भी शहद उत्पादन को बढ़ावा देते हैं। मक्का, ज्वार और बाजरा जैसी अनाज फसलों को पराग के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। मधुमक्खी पालने का स्थान सूखा होना चाहिए। नमी शहद की गुणवत्ता और मधुमक्खियों की उड़ान को प्रभावित करती है। चुनी गई जगह को कड़ी धूप से भी बचाना चाहिए क्योंकि मधुमक्खियां छायांकित क्षेत्रों में रखना पसंद करती हैं। पालन-पोषण के स्थान पर स्वच्छ पेयजल स्रोत भी होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता यह है कि छत्ते के आस-पास शहद और पराग का उत्पादन करने वाले पौधों की प्रचुरता होनी चाहिए। दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में मधुमक्खियों को मिट्टी के बर्तनों में पाला जाता है। इसके अतिरिक्त इन्हें पेड़ के तनों, दीवारों, आयताकार लकड़ी के बक्सों, आदि में भी पाला जाता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Beekeeper
2. https://www.farmingindia.in/beekeeping-in-india-honey-bee-farm/
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