3 डी कला किसी भी वस्तु के 3 आयामों को एक बार में दिखाने की क्षमता रखती है। 3 डी कला को प्रिंट (Print) करने की भी सुविधा मिलती है और यह प्रक्रिया बनाई गई कला के प्रारूप को ठीक उसी तरह से प्रिंट करती है जैसा कि वह वास्तविकता में होता है। 3 डी कला एक कंप्यूटर एडेड डिजाईन (Computer Aided Design - CAD) से एक त्रि आयामी वस्तु का निर्माण करती है। आमतौर पर यह कला परत दर परत बनायी जाती है और यह प्रिंट भी परतों के आधार पर ही होता है। 3 डी प्रिंटिंग एक तरल पदार्थ या पाउडर (Powder) के दानों से जोड़ कर मज़बूत बनाई जाती है। 1990 के दशक में इस तकनीकी का प्रयोग बहुत ही सीमित आधार पर किया जाता था। इस दौर में मुख्य रूप से इसका प्रयोग प्रोटोटाइप (Prototype) आदि के निर्माण में ही किया जाता था। 2019 तक आते-आते यह कला और भी बेहतर हो गयी और इससे कई उत्पादों को भी बनाया जाना संभव हो पाया। इस कला से यह तो कहा जा सकता है कि भविष्य में इससे अत्यंत जटिल उत्पादों को भी बड़ी आसानी से बनाया जाना संभव हो जाएगा।
आइये अब बात करते हैं इसके विकास की-
1974 में डेविड ई. एच. जोंस ने 3 डी प्रिंटिंग की धारणा का प्रतिपादन ‘न्यू साइंटिस्ट’ (New Scientist) नामक पत्रिका में किया। 1981 में नागोया मुनिस्प्ल औद्योगिक अनुसन्धान संस्थान के हिडियो कोडामा ने दो तकनीकियों की खोज की जो 3 आयामी प्लास्टिक मोडल (Plastic Model) की रचना फोटो हार्डनिंग थर्मोसेट पॉलीमर (Photo Hardening Thermostat Polymer) के आधार पर करती थी। 1984 में तीन वैज्ञानिकों ने स्टीरियोलिथोग्राफी (Stereolithography) पर पेटेंट कराया, हालांकि इसे बाद में ख़ारिज कर दिया गया। 1988 में वर्तमान काल में जो तकनीकी ज़्यादातर 3 डी प्रिंटर में प्रयोग की जाती है, की खोज हुयी थी। इसके खोजकर्ता थे एस. स्कॉट क्रम्प। इसी प्रकार से 3 डी कला 2019 तक कई नयी खोजों और व्यवस्थाओं के आधार पर आगे बढ़ी।
3 डी कला और प्रिंटिंग इस समय एक बड़े बाज़ार और तकनीकी के रूप में उभरी है। इसका बाज़ार 2020 तक करीब 21 बिलियन डॉलर से अधिक होने की संभावना है जो कि एक अत्यंत ही बड़ा व्यवसाय हो सकता है। चिकित्सा क्षेत्र में भी 3डी प्रिंटिंग एक वरदान के रूप में साबित हुयी है। इस तकनीकी के आधार पर शरीर के कितने ही अंगों का प्रतिरूप बनाया जाना संभव हो पाया है। यह तकनीकी कई मरीज़ों के लिए वरदान साबित हुयी है। विमान या एयरोस्पेस (Aerospace) के क्षेत्र में भी यह तकनीकी मील का पत्थर साबित हुयी है। इस तकनीकी से कई मॉडलों (Models) का निर्माण करना अत्यंत ही आसान हो पाया है। वाहनों के उद्योग में भी 3 डी तकनीकी का प्रयोग बड़े पैमाने पर किया जाता है। यह कहा जाता है कि वाहन उद्योग में 3 डी प्रिंटिंग 2019 तक संयुक्त 1.1 बिलियन डॉलर उत्पन्न करेगी। इसके अलावा औद्योगिक उत्पाद आदि भी इस तकनीकी के आधार पर किये जाते हैं जो कि एक अत्यंत ही सुगम साधन है।
इस क्षेत्र में यदि देखा जाए तो रोज़गार का एक सुगम अवसर है। जैसा कि साल दर साल तकनीकी के आगमन से व्यवसाय में वृद्धि हो रही है तो उस स्तर पर इस क्षेत्र में बड़े तौर पर नौकरियों आदि के अवसर आ रहे हैं। इस क्षेत्र में पारंगत होने के लिए मुख्य रूप से इस तकनीकी का ज्ञान होने की आवश्यकता है। इस क्षेत्र में आने के लिए अनुभव बहुत ज़रूरी है पर कई ऐसे पढ़ाई के विषय मौजूद हैं जिनमें 3 डी प्रिंटिंग की पढ़ाई की जा सकती है। अभियांत्रिकी, एनीमेशन और डिज़ाईन (Animation & Design), बायो मेडिकल (Bio Medical) तकीनीकी, सॉफ्टवेयर डेवलपर (Software Developer) आदि विषय हैं जिन्हें पढ़ के इस क्षेत्र में कदम रखना आसान हो जाता है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/3D_printing
2. http://www.iamwire.com/2015/08/3d-printing-technology-scope/121210
3. https://bit.ly/332zueN
4. https://bit.ly/2WtjUWY
5. https://www.quora.com/Is-3D-printing-a-good-career-in-India
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