कला मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण रचना है। यह मानव के इतिहास को बखूबी प्रदर्शित करती है। मानव अपने विकास के दौरान जब पत्थर की गुफाओं में रहता था, तब से ही कला का निर्माण करते आ रहा है। दुनिया भर में कला के ऐसे स्वरूपों को आसानी से देखा जा सकता है। अल्त्मीरा की गुफाएं जो कि स्पेन में स्थित हैं, से लेकर भारत के भीमबेटका की गुफाओं तक कला के इन रूपों को देखा जा सकता है। इनके अलावा मूर्तियों के निर्माण की अवधि को भी इस काल तक देखा जा सकता है जिसमें मिर्ज़ापुर के जंगलों से मिली मात्र्देवी की मूर्ती भारतीय आदिमानवों की कला को प्रदर्शित करती है।
कला की समय अवधि को देखें तो वह निम्न प्रकार से हो सकती है-
पाषाण युग, जिसकी तिथि करीब 30,000-2,500 ईसा पूर्व मानी जा सकती है। इसी में नवपाषाण काल जो कि करीब 10,000 से 4,500 ईसा पूर्व तक माना जा सकता है। भारत में बुर्जहोम में इस काल की चित्रकारी प्राप्त होती है। नव पाषाणकाल के बाद मेसोपोटामिया, सुमेर, हड़प्पा आदि का काल आता है जिसमें विभिन्न प्रकार के कला के स्वरूपों को देखा जा सकता है। भारत में हड़प्पा काल में नर्तकी, राजा, मातृदेवी, रंगीन पात्र आदि पाए गए जो कि कला के अनुपम उदाहरण माने जा सकते हैं।
सुमेर कला में कई विभिन्न कला के प्रमाणों को पाया जा सकता है जैसे कि हाम्मुरबी का कोड (Hammurabi Code), वहां के पिरामिडाकार मंदिर आदि। भारत के हड़प्पा का काल करीब 3,500 ईसा पूर्व से लेकर 1,500 ईसा पूर्व तक आता है। सन 1500 ईसा पूर्व के बाद भारत में वैदिक काल का आगमन होता है और वहीं पर विश्व में हित्ती और क्लियोपेट्रा का समय। वैदिक काल 600 ईसा पूर्व तक का माना जा सकता है। 600 ईसा पूर्व से 600 इस्वी तक का काल शुरुवाती इतिहास की श्रेणी में देखा जाता है और विश्व इतिहास में ग्रीक काल का आगमन होता है।
600 ईसा पूर्व से 600 इस्वी भारतीय कला का स्वर्णिम युग माना जाता है इस काल में बुद्ध, मौर्य साम्राज्य, जैन, गुप्त, कुषाण, सातवाहन, चोल आदि राज्यों का आगमन हुआ जिन्होंने भारत में कला की एक नयी परिभाषा गढ़ी। उदाहरण के रूप में साँची, उदयगिरी, मथुरा कला, सारनाथ कला, कुशाण कला आदि को लिया जा सकता है। विश्व इतिहास में 400 से लेकर 1400 सन तक को मध्यकाल का इतिहास माना जाता है जबकि भारत में इसे प्राचीन इतिहास माना जाता है और इसका समय काल 600 इस्वी से लेकर 1200 इस्वी है। इस काल में सकल भारत भर में अनेकों मंदिरों और वास्तुओं की रचना की गयी जो कि कला की महत्ता को प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण स्वरूप खजुराहो, देवगढ़, कोणार्क, वृहदेश्वर आदि को माना जा सकता है। भारत में मध्यकाल का इतिहास 1200 से लेकर करीब 1800 तक माना जा सकता है, यह काल भी इतिहास और कला के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है और इसी काल में ताजमहल, लाल किला, गोलगुम्बद आदि का निर्माण हुआ। विश्व इतिहास में मध्य युग के दौर में सेल्टिक काल, कैरोलिंगीयन पुनर्जागरण काल, रोमानेस्क, गोथिक आदि का विकास हुआ। 18वीं शताब्दी के आने के बाद पूरे विश्वभर में कला के क्षेत्र में समानता आनी शुरू हुयी।इस काल में क्रुसेड, सौ साल का युद्ध, नोट्रे डेम आदि की रचना हुयी जो कि कला के प्रमाण माने जाते हैं। लियोनार्डो डा विन्ची, माइकल एंजेलो, राफेल, गुटेनबर्ग आदि इस काल के प्रमुख कलाकार हुए। भारत में राजा रवि वर्मा, सीताराम आदि बड़े कलाकार हुए जिन्होंने भारतीय कला को एक आयाम प्रदान किया। वर्तमान समय में जो हम देवी-देवताओं के चेहरे अपने घर में देखते हैं उसकी प्रथम अभिव्यक्ति राजा रवि वर्मा ने ही की थी। कालांतर में कला के स्वरूपों में एक नया अध्याय भी जुड़ा जिसे डिजिटल (Digital) कला के नाम से जाना जाता है।
कला के क्षेत्र में नौकरियाँ आदि बड़ी संख्या में उपलब्ध हैं परन्तु यह पारंगतता मांगती हैं। भारत में ऐसे कई कोर्स (Course) एवं विद्यालय हैं जो कला की शिक्षा देते हैं जिनमें से कुछ प्रमुख हैं- जामिया मिलिया इस्लामिया, जे. जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट आदि। कला में बैचलर्स (Bachelors) और मास्टर्स (Masters) दोनों डिग्रियां उपलब्ध हैं और विस्तृत अध्ययन और रचना के लिए ललित कला अकादमी और अन्य संस्थाएं हैं जो कि छात्रवृत्ति और स्टूडियो (Studio) आदि प्रदान करती हैं।
संदर्भ:
1. https://www.dummies.com/education/art-appreciation/art-history-timeline/
2. https://www.invaluable.com/blog/art-history-timeline/
3. https://www.quora.com/What-is-the-scope-of-fine-arts-in-India
4. https://www.successcds.net/Career/fine-arts.html
5. https://www.youtube.com/watch?v=X00JH4YrUxI&t=408s
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