आजकल देश की अर्थव्यवस्था में मंदी की खूब चर्चा हो रही है। वित्त वर्ष 2018-19 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक की नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट ने पुष्टि की कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने वास्तव में एक मुश्किल रुख ले लिया है। वित्त वर्ष की पहली तिमाही में अर्थव्यवस्था की सकल घरेलू उत्पाद विकास दर 5% तक गिर गई है, जो पिछले छह वर्षों में सबसे कम है। ऑटोमोबाइल (Automobile) क्षेत्र में हाल ही की गिरावट हो या गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों की बढ़ती संख्या, सुस्त उपभोक्ता मांग या विनिर्माण क्षेत्र की विफलता, ये सभी विकास दर में गिरावट का कारण हैं।
यह पिछले एक दशक में भारत के लिए आर्थिक मंदी का तीसरा उदाहरण है। अर्थशास्त्र में मंदी को सकल घरेलू उत्पाद की लगातार तीन तिमाहियों में गिरावट से परिभाषित किया गया है। एक बढ़ती मंदी काफी आम होती है जहां एक निरंतर अवधि के लिए अर्थव्यवस्था बढ़ती तो रहती है परन्तु सामान्य से धीमी गति में। वैसे मंदी का मतलब ये नहीं होता है कि किसी भी चीज़ की बिक्री होना बंद हो चुका है। जैसे कि हाल ही में कई बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों (Companies) की भयानक स्थिति के बारे में बताया गया था, लेकिन यह ये संबोधित नहीं करता है कि गाड़ियों की बिक्री ही बंद हो गई है।
क्या आप जानते हैं कि ऑटोमोबाइल क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 7% और देश के विनिर्माण सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 49% योगदान देता है। वहीं यदि ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी होती है तो यह अन्य क्षेत्रों में भी प्रभाव डालेगा, जैसे कि टायर (Tyres), स्टील (Steel), हेडलाइट्स (Headlights), बीमा, चमड़ा उद्योग जो ऑटो उद्योग से निकटता से जुड़े हुए हैं। इस बार ऑटोमोबाइल क्षेत्र में मंदी का कोई सटीक कारण सामने नहीं आ पाया है, कुछ का मानना है कि यह एक ढीले त्यौहार के मौसम के कारण हुआ है तो जबकि कुछ लोगों का कहना है कि यह गैर-बैंकिंग वित्त कंपनियों में उत्पन्न हुए संकटों के कारण हुआ है।
वहीं पिछले कुछ वर्षों में, फास्ट मूविंग कंज़्यूमर गुड्स (Fast Moving Consumer Goods) के क्षेत्र की उत्पत्ति का श्रेय मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्र को दिया गया है। इस बार उम्मीद यह थी कि यह तिमाही निश्चित रूप से इस मौसम को देखते हुए पैक (Pack) सामानों की बिक्री में वृद्धि देखेगी। लेकिन भारत की सड़कों पर बहुत अधिक जनशक्ति के बावजूद भी, बिस्कुट (Biscuit) और सोडा (Soda) की कुछ खास बिक्री नहीं हुई। इस बीच, एक और अजीब घटना सामने आई है। ग्रामीण आर्थिक मंदी के बीच, इस वर्ष करीब 50 लाख लोगों का शहरी केंद्रों से दूर कृषि की ओर पलायन देखा गया।
जहां कई बड़ी कंपनियां पहले दिवाली में उपहार में सोना और चांदी देती थीं आज आर्थिक मंदी के कारण वे कुछ बड़ा देने में विफल रही हैं। उन्होंने दिवाली के लिए अपने कॉर्पोरेट उपहार बजट (Corporate Gift Budget) को गिरा दिया है। साथ ही कॉर्पोरेट उपहार बजट का गिरना साफ आर्थिक मंदी को दर्शाता है।संदर्भ:
1. https://bit.ly/2oz7z7i
2. https://bit.ly/2PjImbK
3. https://bit.ly/2qTKZqB
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.