भाई-दूज के पीछे निहित हैं बहुत-सी किंवदंतियाँ

विचार I - धर्म (मिथक/अनुष्ठान)
29-10-2019 12:16 PM
भाई-दूज के पीछे निहित हैं बहुत-सी किंवदंतियाँ

भारत में प्रायः भाई-बहनों के प्रेम का प्रतीक रक्षाबंधन को माना जाता है। किंतु इसके अतिरिक्त एक अन्य पर्व भी है जो भाई-बहन के बीच प्रेम एवं सौहार्द को अभिव्यक्त करता है। जी हां, वह पर्व भाई-दूज है जिसे दीपावली उत्सव के ठीक 2 दिन बाद मनाया जाता है। किसी भी भाई-बहन के लिए यह पर्व महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह पर्व मुख्य रूप से उनसे ही जुड़ा हुआ है। इस प्रसिद्ध प्रमुख हिंदू त्योहार में महिलाएं अपने भाइयों के लंबे और समृद्ध जीवन के लिए देवताओं से प्रार्थना करती हैं। देश के विभिन्न भागों में यह भिन्न-भिन्न नामों जैसे भाऊ बीज, भाई टेका या भाई फोता से जाना जाता है। जैसे कि हर पर्व को मनाने के पीछे कोई न कोई किंवदंती छुपी होती है उसी प्रकार से इस पर्व को मनाने के पीछे भी कई किंवदंतियाँ मौजूद हैं तो चलिए जानते हैं इन्हीं में से कुछ प्रमुख किंवदंतियों के बारे में।

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन से मुलाकात करने गये। उनकी बहन यमी, जिन्हें यमुना के नाम से भी जाना जाता है, ने उनका स्वागत आरती के साथ किया और माथे पर तिलक लगाकर उन्हें मिठाई खिलाई। बदले में यम ने अपनी बहन को प्रेम और स्नेह के प्रतीक के रूप में एक सुंदर उपहार दिया तथा यह घोषणा की, कि जो कोई भी इस दिन अपनी बहन से आरती और तिलक प्राप्त करेगा उसे कभी भी मृत्यु से डरने की आवश्यकता नहीं होगी। इसलिए देश के कई हिस्सों में इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।

पर्व के लिए एक और लोकप्रिय मूल कहानी यह है कि, जब भगवान कृष्ण ने राक्षस राजा नरकासुर का वध किया तो उसके बाद उनकी बहन सुभद्रा ने भगवान कृष्ण का आरती, तिलक, मिठाई और फूलों से स्वागत किया। इसके अतिरिक्त एक अन्य कहानी के अनुसार जब जैन धर्म के संस्थापक महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया, तो उनके भाई राजा नंदीवर्धन उनकी याद में बहुत व्याकुल हुए। इस समय उनकी बहन सुदर्शना द्वारा ही उन्हें सांत्वना दी गयी थी जिस कारण वे व्याकुलता से उभर पाये थे। तब से, भाई दूज के दौरान महिलाएं पूजनीय रही हैं।

एक अन्य किंवदंती के अनुसार एक बार महाबलि ने भगवान विष्णु से वरदान मांगा कि, भगवान विष्णु पाताललोक के हर दरवाज़े पर उपस्थित हों। भगवान विष्णु ने उनकी बात मान ली और उनके द्वारपाल बन गए। जब देवी लक्ष्मी को यह बात पता चली तो वे बहुत परेशान हुईं तथा भगवान विष्णु को उनके मूल धाम में वापस लाने के लिए एक गरीब महिला का वेष धारण किया और बलि के समक्ष उपस्थित होकर एक भाई की मांग की। राजा बलि ने उसे स्वयं अपनी बहन के रूप में स्वीकार किया और बदले में उसे एक इच्छानुसार वरदान मांगने को कहा। इस प्रकार महिला ने भगवान विष्णु को उनकी सेवा से मुक्त करने की मांग की जिसके फलस्वरूप बलि को भगवान विष्णु को स्वतंत्र करना पड़ा। इस प्रकार यह पर्व भाई और बहन के बीच के बंधन की ताकत का प्रतीक बन गया।

भारत के विभिन्न हिस्सों में इसे मनाने की विधियां भी अलग-अलग हैं। बहनें अपने भाइयों के माथे पर एक शुभ तिलक या सिंदूर लगाकर अपने प्रेम का इज़हार करती हैं, प्रेम की निशानी और बुरी ताकतों से सुरक्षा के प्रतीक के रूप में पवित्र ज्योति के साथ उनकी आरती कर उन्हें मीठा खिलाती हैं। भाई भी अपनी बहनों को उपहार देकर अपने प्रेम को अभिव्यक्त करते हैं। परंपरागत रूप से, बहनें चुपचाप कथाएं भी पढ़ती हैं जिन्हें सुनने की अनुमति भाईयों को नहीं होती है।

यह एक अद्भुत महत्वपूर्ण पर्व है जिसमें बहनें अपने प्यारे भाई की लंबी उम्र, कल्याण और समृद्धि के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। यह कार्तिक मास की आमावस्या का दूसरा दिन होता है जो दीपावली के ठीक दूसरे दिन आता है। हालांकि ऐसे कई विशेष दिन या अवसर हैं जो भाई और बहन के बीच प्यार को मज़बूत करने के लिए समर्पित हैं। किंतु भाई-दूज का यह पर्व विभिन्न भाई-बहनों के बीच शाश्वत प्रेम को परिभाषित करता है।

संदर्भ:
1.https://www.ndtv.com/india-news/bhai-dooj-2017-history-and-significance-1764166
2.https://www.fnp.com/article/bhai-dooj
3.https://www.quora.com/What-is-the-significance-of-Bhai-Dooj-in-Indian-culture
4.https://bit.ly/33XTzTF
5.http://www.bhaidooj.org/bhai-teeka-on-bhai-dooj.html