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विश्व में भारत खनिजों के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है और यह महत्वपूर्ण खनिज भंडार के साथ संपन्न है। सरकार द्वारा देश में दिए जाने वाले 9,244 खनन पट्टे हैं, जिनमें लिग्नाइट (Lignite), कोयला और अन्य खनिजों सहित 64 खनिज शामिल हैं। इन खनिजों में से एक खनिज यूरेनियम (Uranium) है जिसके अयस्कों की मदद से परमाणु ईंधन बनाया जा सकता है।
यूरेनियम पृथ्वी की पपड़ी में एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला तत्व है। इसके चिह्न लगभग हर जगह देखे जा सकते हैं, हालांकि खनन उन स्थानों पर होता है जहां यह स्वाभाविक रूप से केंद्रित है। यूरेनियम से परमाणु ईंधन बनाने के लिए पहले चट्टान से यूरेनियम को निकाला जाता है, जिसके बाद यह यूरेनियम-235 समस्थानिक (Isotope/आइसोटोप) में समृद्ध होता है। यूरेनियम की कुछ बीस देशों में खदानें संचालित होती हैं, हालांकि विश्व का लगभग आधा उत्पादन छह देशों (कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, नाइजर, कज़ाकिस्तान, रूस और नामीबिया) में सिर्फ दस खानों से होता है। वहीं लखनऊ से कुछ ही दूर स्थित ललितपुर में भी यूरेनियम भंडार पाया जाता है।
परंपरागत खानों में यूरेनियम के अयस्क को एक चक्की के माध्यम से पहले पीसा जाता है। उसके बाद इसे महीन अयस्क कणों के रूप में चूरा करके पानी में घोल दिया जाता है। यूरेनियम ऑक्साइड (Uranium Oxide) को घोलने के लिए घोल में सल्फ्यूरिक एसिड (Sulphuric Acid) को मिलाया जाता है। हालांकि विश्व की लगभग आधी से ज़्यादा खदानें अब सीटू (Situ) घोल नामक खनन विधि का उपयोग करती हैं। इसका मतलब है कि खनन में निर्माण प्रक्रिया को धरती में बिना किसी बड़ी गड़बड़ी के पूरा किया जाता है।
ये दोनों खनन विधियाँ एक तरल उत्पाद (जिसमें यूरेनियम घुला हो) का उत्पादन करती हैं। इस तरल उत्पाद को छाना जाता है और फिर आयन (Ion) विनिमय द्वारा यूरेनियम को अलग किया जाता है, जिसके बाद इसे यूरेनियम ऑक्साइड का उत्पादन करने के लिए सुखाया जाता है। यह घोल चमकीले पीले रंग का होता है, इसलिए इसे 'येलोकेक (Yellowcake)' के रूप में जाना जाता है और यदि इसे उच्च तापमान पर सुखाया जाता है तो इसका रंग खाकी होता है। साथ ही यूरेनियम ऑक्साइड केवल मामूली रूप से रेडियोधर्मी होता है।
सभी परमाणु ऊर्जा क्षेत्रों में विशाल बहुमत में समृद्ध यूरेनियम ईंधन की आवश्यकता होती है जिसमें यूरेनियम-235 समस्थानिक का अनुपात प्राकृतिक स्तर 0.7% से बढ़ाकर लगभग 3.5%-5% कर दिया जाता है। संवर्धन प्रक्रिया को गैसीय रूप में यूरेनियम की आवश्यकता होती है, इसलिए खदान से रास्ते में यह एक रूपांतरण संयंत्र के माध्यम से गुज़रता है जो यूरेनियम ऑक्साइड को यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड (Uranium Hexafluoride) में बदल देता है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 1000 मेगावाट परमाणु रिएक्टर (Nuclear Reactor) द्वारा प्रत्येक वर्ष लगभग 27 टन ताज़ा ईंधन का उपयोग किया जाता है। वहीं लगभग 11% विश्व की बिजली परमाणु रिएक्टरों में यूरेनियम की मदद से उत्पन्न होती है। इसके विपरीत, एक कोयला बिजली स्टेशन को ढाई मिलियन टन से अधिक कोयले की आवश्यकता होती है ताकि अधिक बिजली का उत्पादन किया जा सके। समृद्ध UF6 को एक ईंधन निर्माण संयंत्र में ले जाया जाता है जहां इसे यूरेनियम डाइऑक्साइड पाउडर (Uranium Dioxide Powder) में बदल दिया जाता है। फिर इस पाउडर को छोटे ईंधन के छर्रों को बनाने के लिए दबाया जाता है, जिसे बाद में ठोस सिरेमिक (Ceramic) सामग्री बनाने के लिए गर्म किया जाता है। यही आगे चलकर ईंधन का काम करती हैं।
संदर्भ:
1.https://bit.ly/315Eyyz
2.https://bit.ly/2oolT2r
3.https://bit.ly/30L7kn1
4.http://www.geosocindia.org/index.php/jgsi/article/view/63184
5.https://bit.ly/2BAAqei
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.flickr.com/photos/nrcgov/16016668166
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Uranium#/media/File:HEUraniumC.jpg
3. https://bit.ly/2PfoLJZ
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Uranium#/media/File:UraniumCubesLarge.jpg